चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश में `लम्बा राग`नामक एक लोकगीत-शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रचलित है,जो आदिम अवस्था की एक गायनकला मानी गई है।
भीतरी मंगोलिया की युवा समूह-गायन मंडली ने बिना वाद्यों के इस तरह के एक गीत की प्रस्तुति से ऑलम्पिक अंतर्राष्ट्रीय समूह-गायन प्रतियोगिता में स्वर्ण-पदक जीता है। वर्ष 2005 में यूनेस्को ने `लम्बा राग`शैली वाले गीतों को मानव मौखिक व अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किया है।
सुश्री मोतक भीतरी मंगोलिया के `लम्बा राग` गायनकला में सर्वाधिक माहिर हैं।सुश्री मोतक 75 वर्ष की हो चुकी हैं,लेकिन `लम्बा राग` गाने में किसी युवा गायिका से कम नहीं लगती ।खुली आवाज और एक ही सांस में इतना लम्बा राग गा कर उन्हों ने आप को मंगोल जाति की इस विशेष गायनकला में गर्भित महत्व का एहसास कराया है।
सुश्री मोतक को पिछली सदी के चौथे और पांचवें दशक में चीन के प्रधान मंत्री और अन्य राजनेताओं से मिलने के अनेक मौके मिले और उन्हों ने निमंत्रण पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में `लम्बा राग` पेश किया ।वर्ष 2004 में उन्हें चीनी संस्कृति मंत्रालय के जातीय व लोक संस्कृति व कला विकास केंद्र द्वारा विशेष गायिका नियुक्त किया गया।उन के द्वारा गाए गए `लम्बा राग` शैली वाले गीतों को विश्व के श्रेष्ठ गीतों की सूची में शामिल किया गया है।इस से जाहिर है कि `लम्बा राग ` जीवन और प्रकृति के प्रति मानव की प्रेम-भावना अभिव्यक्त करने वाले गीत के रूप में काफी लोकप्रिय है।
भीतरी मंगोलिया के चरवाहों में सुश्री मोतक के बहुत से दीवाने हैं।गायिका चाकानफ़ उन में से एक है।सुश्री मोतक के बारे में उन्हों ने कहाः
"मेरी नजर में सुश्री मोतक `लम्बा राग`की रानी है।`लम्बा राग`गाने में उन का कोई सानी नहीं है।मैं उन की अनुयायी हूं और किसी भी तरह मैं उन से आगे नहीं निकल सकती हूं।"
49वर्षीय चाकानफ़ हालांकि सेवानिवृत्त हो चुकी हैं,लेकिन वह अक्सर भीतरी मंगोलिया के विभिन्न क्षेत्रों और मंगोलिया गणराज्य जाकर `लम्बा राग` से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं।`लम्बा राग`गाने के अपने स्तर को उन्नत करने के लिए वह अक्सर चरागाह भी जाती है और वहां चरवाहों से इस कला पर महारत हासिल करने और संबंधित गीत इकठ्ठा करने की कोशिश करती हैं।
वर्ष 2005 में यूनेस्को द्वारा `लम्बा राग`शैली वाले गीतों को मानव मौखिक व अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किये जाने के बाद इस गायनकला ने व्यापक रुप से अपनी ओर ध्यान आकर्षित किया है। सुश्री चाकानफ़ ने अन्य गायक-गायिकाओं के साथ `लम्बा राग` प्रशिक्षण कक्षाएं चलानी शुरू की हैं। भीतरी मंगोलिया के शिलिनकलो प्रिफेक्चर के अनेक स्कूलों में `लम्बा राग` के पाठ्यक्रम भी शुरू किए गए हैं। इस की चर्चा करते हुए सुश्री चाकानफ़ ने कहाः
"शिलिनकलो प्रिफेक्चर की तुंगऊ यानी कि चूमूशिन काऊंटी में छात्र दो साल से `लम्बा राग`की शिक्षा ले रहे हैं।`लम्बा राग` को मानव-जाति की एक आध्यात्मिक संपति के रूप में भारी महत्व और संरक्षण मिलना चाहिए।अब इतने ज्यादा छात्र इस गायनकला सीख रहे हैं,मैं इस से बहुत खुश हूं।"
सुश्री चाकानफ़ के अनुसार ये सभी छात्र चरवाहों की संतान हैं,जो `लम्बा राग`सुनते-सुनते बड़े हुए हैं। उन की उम्र 10 से 20 साल तक की है।वे स्कूलों में संबंधित विशेष ज्ञान प्राप्त करते हैं और अवकाश के समय व्यावहारिक प्रदर्शन करते हैं। उन में से अनेकों को देश के सब से बड़े राष्ट्रीय त्योहार—वसंतोत्सव के अवसर पर आयोजित भव्य रात्रि समारोह में अभिनय करने का मौका मिला है।
भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के शिसिनकलो प्रिफेक्चर के शिलिहाओथ शहर के एक चाय-घर में हमारे संवाददाता आलिमा नामक एक लड़की से मिले।यह लड़की सुश्री चाकानफ़ की एक छात्रा है।वह बहुत सुन्दर हैं और फैशनबल भी।उस की बोलचाल और वेशभूषा से आप यह अंदाज नहीं लगा सकते कि उस का `लम्बा राग` जैसी आदिम अवस्था वाली कला से कोई लेना-देना हो सकता है।आलिमा ने बताया कि सीनियर मीडिल स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने अध्यापिका चाकानफ़ से `लम्बा राग`सीखना शुरू किया है।अब पूरा एक साल हो चला है।उस ने कहाः
"मुझे गीत गाना बहुत पसंद है।`लम्बा राग`मेरी पहली पसंद है।मैं इस कला में महारत हासिल करना चाहती हूं। इस के लिए मैं किसी कला प्रतिष्ठान में दाखिला लेने की कोशिश कर रही हूं।"
आलिमा ने यह भी कहा कि वह सुश्री चाकानफ़ की तरह अध्यापिका बनकर `लम्बा राग`का प्रचार व विकास करना चाहती हैं,ताकि मावन-जाति की यह मूल्यवान संपति पीढ़ी-दर-पी़ढ़ी सुरक्षित हो सके।
आज के दौर में फॉस्ट फूड संस्कृति प्रचलित है।ऐसे में क्या `लम्बा राग` पसंद करने वाले युवा लोग कम हो रहे हैं ? और क्या यह गायनकला लुप्त हो रही है? इस पर शिलिनकलो प्रिफेक्चर के कला सृजन व अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता श्री वे फिन ने कहा कि भीतरी मंगोलिया की बहुत सी चरागाहों में लोगों ने सचेत रूप से `लम्बा राग` परिषद और `लम्बा राग` अनुसंधान सोसाइटी स्थापित की है। उन के अनुसार कहा जा सकता है कि `लम्बा राग` के उत्तराधिकारी कम नहीं होंगे।भीतरी मंगोलिया में यह कहावत प्रचलित है कि जिसे चलना आता है,उसे `लम्बा राग` गाना आता है। इस से पता चलता है कि मंगोलियाइयों में `लम्बा राग ` की गहरी परंपरा है। परंपरा की समाप्ति कोई आसान काम नहीं है।वैसे `लम्बा राग` की अपनी विशेष लोकप्रियता है। इसलिए वह हमेशा के लिए सुरक्षित हो सकता है।
`लम्बा राग` के जन्मस्थान—भीतरी मंगोलिया की शिनबार्हू काऊंटी ने इस गायनकला के अच्छे संरक्षण के लिए `गायक औबआओ` निर्मित किया।`औबाओ `मंगोल जाति का एक प्रकार का बलि-वास्तु है,जो पहाड़ पर पत्थरों से बनाया जाता है।`गायक औबाओ `भीतरी मंगोलिया के मशहूर `लम्बा राग` गायिका सुश्री बाओईनतलीकर के प्रवर्तन में बनाया गया है।वह चाहती हैं कि इस के निर्माण से अधिकाधिक लोगों को `लम्बा राग` के संरक्षण व विकास की ओर आकर्षित किया जाए।
भीतरी मंगोलिया विश्विविद्यालय के प्रोफेसर श्री करीलथू ने कहाः
"`लम्बा राग` के लिए निर्मित यह `गायक औबआओ` विश्व में अपनी किस्म का प्रथम है,जिस का इस गायनकला के संरक्षण के लिए खासा महत्व है।इस के निर्माण से जाहिर है कि स्थानीय लोग `लम्बा राग `को बहुत पसंद करते हैं, इस का विकास करने के बड़े इच्छुक हैं और इस पर महारत हासिल करने वाले बहुत से गायकों व गायिकाओं को तैयार करने की आशा करते हैं। "
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