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(GMT+08:00) 2007-10-23 15:50:28    
चीन तिब्बती जाति के गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों के बचाव व संरक्षण करने की कोशिश कर रहा है

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लम्बे अर्से से चीन सरकार ने सांस्कृतिक संरक्षण के क्षेत्र में भारी धनराशि व मानव शक्ति लगाई है और उल्लेखनीय उपलब्धियां भी हासिल कीं हैं। इधर के वर्षों में भौतिक सांस्कृतिक संरक्षण के साथ-साथ चीन सरकार विभिन्न जातियों की गैरभौतिक संस्कृतियों के संरक्षण को ज्यादा महत्व दे रही है ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक व वैज्ञानिक अकादमी के निदेशक श्री त्सेवांग च्युनमई का विचार है कि चीन ने तिब्बती जाति समेत विभिन्न जातियों की परम्परागत संस्कृतियों का कारगर संरक्षण किया है। उन का कहना है

"हमारे देश ने विभिन्न जातियों की परम्परागत संस्कृतियों व कलाओं के संरक्षण के क्षेत्र में पर्याप्त कार्य किया है । उदाहरण के लिए तिब्बती जाति का महाकाव्य महान राजा कैसर को लेकर सरकार ने विशेष बचाव कार्यालय की स्थापना की । विभिन्न प्रांतों की सामाजिक व वैज्ञानिक अकादमियों, सांस्कृतिक व कलात्मक इकाइयों तथा उच्च स्तरीय कॉलेजों में जातीय परम्परागत संस्कृति के बचाव, सर्वेक्षण, संरक्षण व विकास करने वाले विशेष विभाग हैं । चीन ने विभिन्न जातियों की संस्कृतियों के संरक्षण के लिए विशेष नीति बनायी और धनराशि व मानव शक्ति के क्षेत्र में समर्थन दिया । मुझे लगता है कि हमारे देश की सारी जातियों की संस्कृतियों का अच्छी तरह संरक्षण किया जा रहा है।"

《महान राजा कैसर》तिब्बती जाति का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है , जिस में पौराणिक कथा, लोक काव्य तथा लोककथा आदि विषय शामिल हैं । इस महाकाव्य में प्राचीन तिब्बत में दसियों स्थानीय राज्यों के बीच जटिल संबंधों व घमासान लड़ाइयों का वर्णन किया गया है, जिस से प्राचीन तिब्बती जाति का जीवन उजागर हुआ है । यह महाकाव्य प्राचीन यूनान के महाकाव्य《इलियड》और भारत के《महाभारत》से दस गुना से भी ज्यादा लम्बा है । लेकिन सामाजिक विकास और जीवन के परिवर्तन के कारण इस महाकाव्य के नष्ट होने का खतरा बना है । इस महान तिब्बती साहित्य के संरक्षण के लिए तिब्बती सामाजिक विज्ञान अकादमी समेत अनेक चीनी सांस्कृतिक संस्थाओं ने इस सांस्कृतिक अवशेष को बचाने के लिए सक्रिय कोशिश की और उपलब्धियां भी हासिल कीं । वर्ष 2006 की मई में《महान राजा कैसर》को चीन में प्रथम खेप वाली गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की प्रतिनिधि नामसूची में शामिल किया गया ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश एक ऐसा स्थल है, जहां प्रचुर गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेष हैं । वर्ष 2005 के 31 दिसम्बर को चीन द्वारा पारित की गई प्रथम खेप वाली गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की नामसूची में 501 किस्में शामिल हैं जिन में अल्पसंख्यक जातियों की 165 किस्में हैं, जो कुल मात्रा का 33 प्रतिशत बनता है । इन 165 अल्पसंख्यक जातीय गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों में तिब्बत की 21 किस्में हैं, जिन में तिब्बत के《महान राजा कैसर》, तिब्बती ऑपेरा, लोका प्रिफैक्चर का मनबा ऑपेरा , श्यावनज़ी नृत्य, क्वोच्वांग नृत्य, रबा नृत्य, लोका प्रिफैक्चर का चोवू नृत्य, शिकाज़े के जाशलंबू मठ के छ्यांगमू, तिब्बती जाति के थांग खा चित्र, लाह्सा की पतंग, तिब्बती जाति की काग़ज़ बनाने की कला तथा तिब्बती कालीन बनाने की तकनीक आदि शामिल हैं । उक्त गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेष साहित्य, नृत्य, नाटक, ललितकला और परम्परागत औषधि से जुड़े हुए हैं । इस की चर्चा में चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के प्रोफैसर श्री सो वनछिंग ने कहा

"हमारी पार्टी व हमारे देश के समर्थन व प्रोत्साहन से तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार और व्यापक तिब्बती जनता ने सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण को अपना महत्वपूर्ण दायित्व समझा है । सुधार व खुले द्वार की नीति लागू की जाने के पूर्व तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के छ प्रिफैक्चरों व लाह्सा शहर ने क्रमशः जातीय सांस्कृतिक अवशेष के बचाव कार्यदलों की स्थापना की है। इस के तहत समूचे स्वायत्त प्रदेश में सांस्कृतिक अवशेषों से जुड़े बड़े पैमाने वाला योजनात्मक सर्वेक्षण कार्य किया गया । तिब्बत में सुरक्षित लोक साहित्य, लोककथा, लोककाव्य तथा विभिन्न किस्मों वाली प्रदर्शन कलाओं का आकलन, संग्रहण, अनुसंधान व प्रकाशन किया गया । बीस से ज्यादा वर्षों की कोशिशों के जरिए तिब्बती जातीय लोक गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों का सर्वांगीण व कारगर संरक्षण किया गया ।"

सूत्रों के अनुसार वर्ष 2000 तक तिब्बत में इन्टरव्यू लिए गए लोक कलाकारों की संख्या दस हज़ार से ज्यादा थी, छ सौ से ज्यादा विभिन्न किस्मों वाली रिकॉर्डिंग सामग्री और एक हज़ार से ज्यादा संगीत, गीत व हास्य कलात्मक वस्तुओं का संग्रहण किया गया । चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के प्रोफैसर श्री सो वनछिंग ने परिचय देते हुए कहा

"तिब्बत की श्रेष्ठ संस्कृतियों के भावी विकास को सुनिश्चित करने के लिए चीन ने सांस्कृतिक अवशेषों के बचाव व संरक्षण के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक व कलात्मक सुयोग्य व्यक्तियों के निर्माण पर भी जोर दिया है। देश ने तिब्बती कला स्कूलों की स्थापना की और मध्यम व उच्च स्तरीय पेशेवर कलात्मक सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण किया । इस के साथ ही तिब्बत के अनेक श्रेष्ठ तिब्बती कलाकारों को आगे अध्ययन के लिए देश के भीतरी इलाके में पहुंचाने की व्यवस्था की गई है ।"