चीन का तिब्बत स्वायत प्रदेश भारत, नेपाल, भूटान आदि अनेक देशों से जुडता है। पुराने समय में भी तिब्बत स्वायत प्रदेश और उक्त देशों के बीच सीमांत व्यापार होता था । 18वीं शताब्दी के मध्य काल से पहले, तिब्बत में सीमांत व्यापार का मुख्य साझेदार भारत था, जबकि 20वीं शताब्दी के 60 के दशक के बाद सीमांत व्यापार जांमू पोर्ट तक स्थानांतरित किया गया। तिब्बत व नेपाल के बीच व्यापार भी तिब्बत के सीमांत व्यापार की कुल रक्म का 90 प्रतिशत तक पहुंचा है।तिब्बत में सीमांत व्यापार अभी भी तिब्बत के विदेशी व्यापार का एक बहुत महत्वपूर्ण भाग बना हुआ है।
तिब्बत स्वायत प्रदेश चीन के दक्षिण पश्चिमी सीमांत क्षेत्र में स्थित है, इसलिए, सीमांत व्यापार तिब्बत के विदेशी व्यापार का एक प्रमुख भाग है। इधर के वर्षों में तिब्बत में सीमांत व्यापार का बड़ा विकास हुआ है। सीमांत व्यापार के विकास ने तिब्बत में विशेषता वाले अर्थतंत्र के विकास को आगे बढ़ाया है और स्थानीय लोगों की आमदनी में भी वृद्धि हुई है। तिब्बत में सीमांत व्यापार की रक्म पहले के लाखों अमरीकी डॉलर से बढ़कर आज के दस करोड़ से ज्यादा अमरीकी डॉलर तक पहुंची है।तिब्बती वाणिज्य विभाग के उप प्रधान श्री फाबाछ्वनजडं ने परिचय देते समय बताया,वर्ष 2006 में तिब्बत स्वायत प्रदेश के सीमांत व्यापार की कुल आयात-निर्यात रक्म 17 करोड़ 61 लाख 90 हजार अमरीकी डॉलर तक जा पहुंची थी, जो पहले की तुलना में 44.22 प्रतिशत अधिक है। इस वर्ष की जनवरी से जुलाई तक, आयात-निर्यात सीमांत व्यापार की कुल रक्म 11 करोड़ 95 लाख 70 हजार अमरीकी डॉलर थी, जो गत वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 71.48 प्रतिशत अधिक रही।
इतना ही नहीं, तिब्बत में सीमांत व्यापार के निर्यात के माल के ढांचे में भी निरंतर सुधार हुआ है। निर्यात माल की किस्मों में भी परिवर्तन हुआ है। दैनिक घरेलू उपकरणों के अलावा, विद्युत उपकरण आदि सामान का निर्यात भी निरंतर बढ़ा है।आयातित माल में अनाज, खाने का तेल और कांस्य बर्तन आदि शामिल हैं।
वर्ष 2006 तिब्बत ने कुल 16 विदेशी कारोबारों को अपने यहां पूंजी निवेश की लिए अनुमति दी थी।इस वर्ष की जनवरी से जुलाई के अंत तक, तिब्बत ने 12 और विदेशी कारोबारों को अनुमति दी है, और विदेशी पूंजी की वास्तविक रक्म एक करोड़ 6 लाख 82 हजार अमरीकी डॉलर थी। श्री फाबाछ्वनजडं ने संवाददाता को बताया ,विदेशी पूंजी मुख्यतः चीन के हांगकांग, नेपाल, भारत, अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, डैनमार्क, कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों व क्षेत्रों से आयी है, जो खनिज, होटल व रेस्तरां, चिकित्सा आदि व्यवसाय में लगी है।
श्री फाबाछ्वनजडं के अनुसार, हाल में दक्षिण एशियाई देशों में केवल नेपाल व भारत ने तिब्बत में पूंजी निवेश किया है। तिब्बत में पूंजी निवेश करने वाले नेपाली कारोबारों की संख्या 93 हैं, जबकि भारत के कारोबारों की संख्या केवल तीन हैं। आम तौर पर ये कारोबार पर्यटन, रेस्तरां व होटल और ब्यूटी आदि व्यवसाय में हैं। हालांकि आजकल ये कारोबार बहुत बड़े नहीं है, फिर भी वे तिब्बत में अच्छा व्यापार कर रहे हैं। तिब्बत यात्रा के दौरान, हमारी मुलाकात होटल व ब्यूटी का व्यवसाय करने वाली एक भारतीय कंपनी की मैनेजर से हुई। वास्तव में यह होटल एक पारिवारिक होटल है, जिस में दो मैनेजर हैं। होटल की मैनेजर तिब्बती सुश्री सीरनदेजी ने होटल का परिचय देते समय बताया,होटल का व्यवसाय इस वर्ष के जून माह से शुरु हुआ है। हमारे होटल में तिब्बती शैली और पश्चिमी शैली के रेस्तरां हैं। इतना ही नहीं, हमारे यहां ब्यूटी सैलून भी हैं। ब्यूटी सैलून में सभी सामान हम ने भारत से आयात किया है और वे शत-प्रतिशत जड़ी-बूटियों से बनाया गया सामान है।
सुश्री सीरनदेजी ने कहा कि यह होटल खोलने में स्थानीय सरकार के विभिन्न विभागों का समर्थन प्राप्त हुआ है। आजकल चीन के भीतरी इलाके के शांगहाई, छन तु आदि बड़े शहरों के व्यापारियों ने भी यहां आकर उन के साथ सहयोग करने का इरादा प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि मौका मिलेगा , तो वह अवश्य ही देश के अन्य शहरों में भी अपने ब्यूटी सैलून खोलेंगी।
होटल की अन्य एक मैनेजर नामक्याटोगा बहुत युवा हैं, जो अभी अभी अमरीका के विश्वविद्यालय से स्नातक हुई हैं। उन्होंने हमें बताया कि सुश्री सीरनदेजी उन की मां की छोटी बहन हैं। उन के पिता जी भारतीय हैं, जबकि उन की माता जी तिब्बती हैं। उन्होंने कहा कि वे अपने परिवारिक व्यवसाय की देखभाल करने के लिए अमरीका से वापस लौटी हैं। उन के अनुसार,यह हमारे परिवार का व्यवसाय है, इसलिए, मेरा कर्त्तव्य है कि मैं इस का प्रबंध करुं। चूंकि मैं अनेक भाषाएं बोल सकती हूं , इसलिए, एक दो वर्षों के बाद मैं तिब्बत में पर्यटन एजेंसी भी खोलूंगी।
आजकल ज्यादा से ज्यादा विदेशी व्यापारी तिब्बत में पूंजी निवेश कर रहे हैं। सीमांत बाजार में व्यापार करना अनेक विदेशी व्यापारियों का विकल्प है। तिब्बत में अनेक सीमांत बाजार हैं। ना-थुला दर्रा उन में से एक है। गत वर्ष चीन व भारत सरकार के आह्वान में नाथुला दर्रा 44 वर्षों तक बंद रहने के बाद फिर एक बार खोला गया। हालांकि वह अब जान्मू पोर्ट की ही तरह का पोर्ट नहीं है, फिर भी चीन व भारत इसे एक पोर्ट के रुप में विकसित करना चाहते हैं। तिब्बती वाणिज्य विभाग के उप प्रधान श्री फाबाछ्वनजडं ने कहा,नाथुला दर्रे को फिर एक बार खोलना एक ऐतिहासिक मामला है। हालांकि आजकल का पैमाना बहुत बड़ा नहीं है, फिर भी इस के विकास के भविष्य के प्रति हमारा पक्का विश्वास है। हम बहुत आशावान हैं। हम चीन व भारत के एकमात्र थल पास नाथुला दर्रे के जरिये सीमांत व्यापार को अच्छी तरह अंजाम देंगे।हमें विश्वास है कि भविष्य में तिब्बत में जांमू पोर्ट जैसे अनेक बड़े पोर्ट निर्मित किए जाएंगे।
तिब्बत में सीमांत व्यापार के उज्ज्वल भविष्य की चर्चा में श्री फाबाछ्वनजडं ने बताया,श्री फाबाछ्वनजडं ने बताया कि तिब्बत सीमांत आयात-निर्यात के ढांचे को श्रेष्ठ बनाकर अपनी विशेषता वाले माल के निर्यात का विस्तार करेगा और तिब्बत की अंतरराष्ट्रीय बाजार प्रतिस्पर्द्धा शक्ति को उन्नत करेगा। भविष्य में तिब्बत पोर्टों व बाजारों का प्रबंध करने वाले कर्मचारियों व वैज्ञानिकों का प्रशिक्षण करेगा और अपने प्रबंध स्तर को उन्नत करेगा।इन के अलावा, तिब्बत केंद्रीय सरकार की नीति से लाभ उठाकर विभिन्न माध्यमों से अपने कारोबारों को विदेशों में मेले या संगोष्ठी का आयोजन करने को प्रेरित करेगा और उन्हें और ज्यादा विदेशी व्यापार के मौके देगा।
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