चीनी सत्तारूढ़ पार्टी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 17 वीं कांग्रेस होने वाली है । पिछली कांग्रेस से लेकर अब तक के पांच वर्षों के चीनी राजनयिक व्यवहारों का सिंहावलोकन करने से यह पता चला है कि चीनी कम्युनिस्ट द्वारा प्रस्तुत सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की धारणा चीनी कुटनीति के प्रमुख मुद्दों में से एक बन गयी है , ठीक इसी धारणा के निर्देशन में पिछले पांच वर्षों में चीनी कुटनीतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल हो गयी हैं ।
पांच वर्ष से पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपनी 16 वीं कांग्रेस में यह विचार पेश किया है कि हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ समान प्रयास के जरिये विश्व के बहुध्रुवीकरण और विविधतापूर्ण शक्तियों के साथ सामजस्यपूर्ण रूप से सहअस्तित्व को बढावा देने को तैयार हैं , सामजस्य का शब्द चीनी विदेश नीति के वर्णन में उभर आया है । सितम्बर 2005 में चीन के सर्वोच्च नेता श्री हू चिन थाओ ने संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की 60 वीं वर्षगांठ पर हुए प्रथम शिखर सम्मेलन में चिरस्थायी शांति व समान समृद्धिशाली सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना करो नामक महत्वपूर्ण भाषण दिया , इस भाषण में उन्हों ने प्रथम बार सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की परिकल्पना पेश की और इस धारणा का तफसील से ख्याख्यान किया । उन्हों ने इसी संदर्भ में कहा हमारे लिये यह जरूरी है कि आपसी विश्वास , पारस्परिक लाभ , समानता और सहयोग का नया सुरक्षा दृष्टिकोण कामय किया जाये , युक्तिसंगत और सार्थक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना की जाये , स्वस्थ खुली , न्यायपूर्ण और भेदभाव रहित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की स्थापना को बढ़ावा दिया जाये , विकासमान देशों के विकास को पुरजोर से प्रेरित किया जाये ।
सामजस्यपूर्ण विश्व की धारणा के मार्गदर्शन में चीन और बड़े देशों के बीच संबंध दिन ब दिन परिपक्व होते गये हैं , पास पड़ोस के देशों के साथ अच्छे पड़ोसियों जैसे मैत्रीपूर्ण संबंध व क्षेत्रीय सहयोग उत्तरोत्तर सघन हो गये हैं और व्यापक विकासमान देशों के साथ मैत्री में नया निखार आया है । पेइचिंग विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध कालेज के प्रोफेसर श्री चू फूंग का विचार है कि सामंजस्यपूर्ण विश्व की धारणा से चीनी कुटनीति की नयी बुलंदी और नयी पहचान जाहिर हो गयी है , साथ ही वह विश्व के शांतिपूर्ण , स्थिर और समृद्धिशाली कार्य के लिये चीन के योगदान का एक नया दायित्व और कर्तव्य भी है । उन्हों ने कहा कि सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की धारणा चीनी कुटनीति का एक अत्यंत असाधारण केंद्रीय मुद्दा बन गयी है । साथ ही इस से यह भी जाहिर है कि चीन वर्तमान पेचीदा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थिति के सामने अपनी दिशा पर कायम है , एक जिम्मेदाराना बड़ा देश होने के नाते विश्व शांति , सहयोग व स्थिर कार्य को समान रूप से विकसित करने का हमारा सकल्प व विश्वास और पक्का हो गया है ।
सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की चीन की धारणा को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से व्यापक मान्यता प्राप्त है । अमरीकी मारिलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री अनिल गुप्ता का मानना है कि चीन सरकार की सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की धारणा का मतलब है कि चीन और दूसरे देशों के बीच संबंधों का विकास समान जीत होगा । उन्हों ने कहा मेरा विचार है कि सामंजस्यपूर्ण विश्व की धारणा शांतिपूर्ण विकास के विचार के बराबर है । शांतिपूर्ण विकास का अर्थ है चीन व दूसरे देशों के बीच का सामंजस्यपूर्ण संबंध । शांतिपूर्ण विकास का केंद्रीय अर्थ समान जीत की धारणा ही है , न कि एक तरफा जीत की है , चीन के विकास से दूसरे देशों को क्षति नहीं पहुंचेगा ।
चीन स्थित सीरिया के राजदूत मोहमद वादी का विचार है कि चीन की सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना की धारणा विश्व शाति की रक्षा के लिये फायदेमंद है ।
सामंजस्यपूर्ण विश्व की स्थापना और शांतिपूर्ण विकास का रास्ता चीन सरकार की कुटनीतिक व्यवहार की एक मूल नीति ही है । गत तीन मई को चीनी प्रधान मंत्री श्री वन च्या पाओ ने सरकारी कार्य रिपोर्ट में फिर एक बार जताया कि चीन अविचल रूप से शांतिपूर्ण विकास के रास्ते पर कामय रहेगा ।
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