एक छोटी नदी थी। कराहते हुए उस की आंखों में पानी निकला , जो जल-कण के रूप में चारों ओर उछल पड़े।
उस ने सिर उठा कर पहाड़ को घूरते हुए यो शिकायत की , मैं मुलायम रेतों से गुजरी हूं , चिकड़ी कीचड़ी भूमि से भी , जंगली फूल मेरे स्वागत में गाता है , घास पौधा मेरे साथ मिल कर क्रिड़ा करता है , मैं ऊंचे पेड़ों की जड़ लांघ कर चलती हूं , घनी झाड़ी से हो कर निकलती हूं , सभी मेरे साथ स्नेह का बर्ताव करते हैं और मुझे प्यार करते हैं ।
महज एक ही आप है , ऊंचा और विशाल बन कर मुझे टक्कर मार कर दुख देते है ।
ऊंचा पहाड़ हंस पड़ा , उस ने स्नेह के साथ कहा , रोना मत , प्यारी छोटी नदी , मेरी सुनो , मार्ग रौंदने से नहीं डरता है , जितना ज्यादा उस पर रौंदा जाता , उतना वह मजबूत बन जाएगा ।
बहते बढ़ते पानी में ताकत होती है , थोड़ा बहुत टक्कर खाने में क्या हर्ज है , इस से तुझे शक्ति मिल सकती है ।
तुम देखो , पहाड़ी झरना , जो पहाड़ी चोटी से निकल कर नीचे की ओर बहती जाती है , रास्ते में न जाने कितनी टक्करें खाती है , फिर भी वह लगातार आगे चली जाती है और बड़े उमंग से गाते हुए दृढ़ता के साथ बहती जाती है , वह कभी शिकायत नहीं करती है ।
पहाड़ की बात सुन कर छोटी नदी खिल गई , उस ने आंसू को पोछते हुए कहा , झरना , प्यारी पहाड़ी झरना , तुम बहुत बहादुर हो , हम दोनों दोस्त होंगे , मंजूर , हां , हम हाथ में हाथ डाले साथ साथ आगे बढ़ें ।
पहाड़ी झरना ने हामी भरी , अच्छा ख्याल है , तुम मुझे ले कर दूर , बहुत दूर चले जाओ , हम मिल कर मैदान से हो कर जाएंगे , जमीन को सुन्दर वस्त्र पहनवाएंगे , हम समुद्र में जा मिलेंगे , जहाज को आगे बढ़ने में गति देंगे , वाह , बड़ा मजा आएगा ।
छोटी नदी ने कहा, तुम सचमुच बहादुर हो , मुझे तुम से सीखना चाहिए ।
पहाड़ी झरना बोला , नहीं , ऐसा नहीं हूं , जल-प्रताप मुझ से ज्यादा बहादुर है ।
देखो , वह ऊंची सीधी खड़ी पहाड़ी चट्टान से नीचे कूद कर आता है , जरा भी डर नहीं है ।
और तो वह बुलंद आवाज में हंसता है और पुकारता है , मेरा साहस देखो , जो किसी भी तरह की बाधा से नहीं डरता है ।
तुम देखो , छोटी नदी , उस ने सख्त पत्थर को भी पानी मार मार कर समतल बना देता है ।
छोटी नदी उल्लाह से उछल उठी , बहादुर जल-प्रताप , तुम बड़ा असाधारण लगता है , आओ , हम भी दोस्त बन जाएं , हाथ में हाथ थामे आगे बढ़ जाएं ।
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