दोस्तो,अक्तूबर 2006 में चीनी अनुवादक संघ ने चीन के मशहूर 95 वर्षीय अनुवादक एवं शिक्षक प्रोफेसर ची श्यैन-लिन को अनुवादित संस्कृति के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया,ताकि चीन और विदेशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान खासकर भारतीय संस्कृत के अनुवाद में उन के असाधारण योगदान की प्रशंसा की जाए।
प्रोफेसर ची श्येन-लिन ने बहुत सी विदेशी पुस्तकों का चीनी में अनुवाद भी किया है।इन पुस्तकों में मुख्य तौर पर संस्कृत समेत प्राचीन भारतीय भाषाओं,भारत के इतिहास व संस्कृति,बौद्धसूत्रों और टोघारोई भाषा जैसे विषय शामिल हैं।उन्हों ने अंग्रेजी में भी अनुवाद का काम किया है। दुनिया के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में संस्कृत व बौद्धसूत्रों की जो अंग्रेजी में अनुवादित पुस्तकें देखने को मिलती हैं, उन में से अनेक प्रोफेसर ची श्येन-लिन की कृतियां हैं। उल्लेखनीय है कि उन्हों ने जर्मन कहानियों का भी चीनी में अनुवाद कर उन से चीनी पाठकों को परिचित कराया है।
चीनी अनुवादक संघ के उपाध्यक्ष श्री क्वो श्याओ-युंग ने प्रोफेसर ची श्येन-लिन को अनुवाद के सर्वोच्च पुरस्कार प्रदान करने की रस्म में कहा कि श्री ची श्येन-लिन पूर्वतत्व के ही नहीं,बल्कि पश्चिमतत्व के भी विशारद हैं। उन्हें तरह-तरह की विद्याओं का समृद्ध ज्ञान प्राप्त है।चीन की प्रमुख सांस्कृतिक विभूतियों में उन का नाम अग्रिम पंक्ति में है।उन्हों ने कहाः
"प्रोफेसर ची श्येन-लिन जिन्दगी भर शिक्षा और अकादमिक अनुसंधान में लगे रहे हैं। उन्हों ने चीनी संस्कृति व पूर्वी सभ्यता के विकास और पूर्व व पश्चिम के बीच सांस्कृतिक पुल खड़ा करने में असाधारण योगदान किया है। वह शिक्षा व बुद्धिजीवी जगत में देशभक्त विशेषज्ञों व विद्वानों के आदर्श हैं। उन में ऐसे अनेक गुण हैं,जो सभी जागृत बुद्धिजीवियों के लिए सीखने लायक हैं।"
इधर के वर्षों में प्रोफेसर ची श्येन-लिन स्वास्थ्य के कारण अस्पताल में रहे हैं।
अनुवादित संस्कृति का सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त करने पर उन्हें बड़ी खुशी हुई है।
अस्पताल में उन्हों ने संवाददाताओं से कहा कि चीन में अनुवादित संस्कृति का कोई 2000 वर्ष पुराना इतिहास है।चीनी संस्कृति के बने रह सकने का एक कारण अनुवादित संस्कृति को महत्व देना है। प्रोफेसर ची ने विनम्रता से कहा कि इस क्षेत्र में उन के द्वारा किया गया काम अपर्याप्त हैं।उन्हों ने कहाः
"अनुवाद का काम एक तरह से इतिहास को नोट करना है, इसलिए वह सांस्कृतिक इतिहास का अभिन्न अंग है।युग के विकास के साथ-साथ उस में नया संचार होता है।अनुवाद के क्षेत्र में मैं ने पर्याप्त काम नहीं किया है और जो किया है,वह उतना नहीं है,जितना लोगों ने प्रशंसा की।मैं समझता हूं कि इस क्षेत्र में मुझे और मेहनत करनी चाहिए।हालांकि मैं शतायु होने वाला हूं,पर मुझे विश्वास है कि मैं मेहनत के लिए और एक दशक प्राप्त कर सकता हूं।"
वर्ष 1998 में प्रोफेसर ची श्येन-लिन ने《शक्कर का इतिहास》 नामक एक पुस्तक लिखकर प्रकाशित करवाई।इस पुस्तक ने अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक जगत में धूम मचा दी ,क्योंकि इस से पहले संबंधित विषय पर अनुसंधान नहीं के बराबर था। कोई 8 लाख शब्दों वाली यह पुस्तक देशी-विदेशी इतिहासों व भाषाओं के अनुसंधान के आधार पर शक्कर के पीछे छिपे संस्कृति से जुड़े जटिल व दिलचस्प अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान की ऐतिहासिक कहानी सुनाती है।प्रोफेसर छाई च्येन-हुंग के विचार में यह पुस्तक अनुसंधान-काम के प्रति श्री ची श्येन-लिन के गंभीर व बारीक रवैए की संकेतक है।उन का कहना हैः
"प्रोफेसर ची श्येन-लिन ने सब से पहले प्राचीन तुंगह्वांग संबंधी एक ग्रंथ में शक्कर के बारे में थाड़ी सी जानकारी प्राप्त की थी।शक्कर का जन्म स्थान कहां है,उसे कैसे बनाया जाता है और उस का किस तरह से चीन व भारत के बीच आयात-निर्यात होता है? तथा उस ने विश्व विज्ञान-तकनीक के विकास के इतिहास में कौन सी भूमिका अदा की है? इस के बारे में ज्यादा जानकारी पाने के लिए वह संबंधित सामग्री को ढूंढकर इकठ्ठा करने के काम में जुट गए।《 शक्कर का इतिहास 》लिखने का निर्णय लेने के बाद उन्हों ने कई साल अपना जीवन पुस्तकालय में बिताया ।विशेषज्ञता प्राप्त इस पुस्तक का विश्व विज्ञान-तकनीक के विकास के इतिहास के अनुसंधान में भी भारी योगदान है"।
प्रोफेसर ची श्येन-लिन एक नम्र व सीधे इंसान हैं।विश्व स्तर की उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद अपना सरल व ईमानदार स्वभाव बनाए रखे हुए हैं और अनुसंधान-काम में तन-मन से लगे हुए हैं। वृद्धावस्था में भी उन्हों ने 11 अकादमिक पुस्तकों के अलावा बड़ी संख्या में विभिन्न ढंग के निबंध भी लिखे हैं,जो अपनी विशिष्ट शैलियों के लिए काफी लोकप्रिय हैं।अब उन की तमाम कृतियां 24 ग्रंथों वाले《ची श्येन-लिन की रचनाओं का संग्रह》में शामिल की गई हैं।इस संग्रह को चीनी राजकीय किताब-पुरस्कार से विभूषित किया गया है।खुद उन के पास विश्वविख्यात उच्च शिक्षालयों द्वारा प्रदत्त मानद-प्रोफेसर के प्रमाण-पत्र बहुतायत में हैं। आज स्वास्थ्य के कारण वह अस्पताल में है,तो भी उन का मन सांस्कृतिक अनुसंधान के कार्य में लगा हुआ है।
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