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(GMT+08:00) 2007-10-12 20:37:56    
उइगुर युवा मामुती की स्वावलंबन की कहानी

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विकलांग उइगुर युवा सिराली मामुती की स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की कहानी का पहला भाग पिछले अंक में प्रस्तुत हुआ था । इस अंक में उन की कहानी का आगे का भाग प्रस्तुति हैः

कविता और लघु लेख लिखने के साथ साथ सिराली ममुती ने स्वाध्ययन से हान भाषा सीखना आरंभ किया । हान भाषा पर अधिकार करने के बाद उस ने कुछ सरल अनुवाद के काम भी किए । जब उस ने अनुवाद से कमाए गये पैसे मां के हाथ में थामे , तो उसे अपने पर बहुत गर्व महसूस भी हुआ । इस पर उस ने कहाः

वर्ष 1993 में मैं जुनियर मीडिल स्कूल से स्नातक हुआ । उस वक्त मुझे गहरा अनुभव हुआ कि हान भाषा सीखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । मैं ने हान भाषा सीखना आरंभ किया , और हान भाषा में प्रकाशित सुन्दर लेखों का उइगूर भाषा में अनुवाद करने की कोशिश की । इस कोशिश में मेरे दो लक्ष्य थे । पहला , अनुवाद के माध्यम से मैं अच्छी तरह हान भाषा पर महारत हासिल कर सकता हूं । दूसरा , अनुवाद से जो कुछ पैसा कमाता हूं , वह घर का खर्च चुकाने में मददगार हो सकता है । जुनियर मीडिल स्कूल से स्नातक होने के बाद मेरी एक कविता ऊरूमुची रात्रि पत्र में छपी । इस का पारिश्रमिक मिलने पर मुझे अपार खुशी हुई । मैं ने यह पैसा मां जी को दिया , आज तक वे इस बात की भी याद करती हैं ।

हान भाषा से उइगुर भाषा में अनुवाद करने के काम से सिराली ममुती को मालूम हुआ है कि हान भाषा के कुछ शब्दों और वाक्यों का सटीक रूप से उइगुर भाषा में अनुवाद करना बेहद मुश्किल है । किन्तु उसे पता चला कि उइगूर भाषा और तुर्क भाषा में बहुत सी समानताएं होती हैं । इसलिए सिराली ममुती के दिल में तुर्क भाषा सीखने की इच्छा हुई । वर्ष 1999 से सिराली ममुती ने दो सालों का समय निकाल कर तुर्क भाषा सीखी । इस के बाद उस ने फारसी भाषा सीखना शुरू किया । उस समय ऊरूमुची में फारसी भाषा पढ़ाने की पाठ्य सामग्री मुश्किल से मिलती थी । किन्तु सौभाग्य की बात थी कि एक बार वह ऊरूमुची रात्रि पत्र प्रकाशन गृह के एक दोस्त की दफतर गया , वहां दोस्त के मेज पर फारसी भाषा का बुनियादी पाठ नामक पुस्तक पड़ी देखी , उसे देख कर सिराली ममुती को अपार प्रसन्नता हुई । उस ने अपने पास की इस दोस्त की मनपसंद पाठ्यपुस्तक तुर्क भाषा पाठ्य सामग्री को उसे देने के बदले में दोस्त की इस फारसी पाठ्य पुस्तक को अपने हक में रख लिया । सिराली ममुती की छोटी बहन हुरगुल.ममुती की नजर में उस का बड़ा भाई हमेशा सीखने के काबिला आर्दश मिसाल है । उस ने कहाः

जब मैं पांच छह साल की उम्र में थी , तो मुझे लगता था कि बड़ा भाई पढ़ना लिखना बहुत पसंद करते थे । घर में हम अकसर इकट्ठे हो कर पढ़ते थे । भाई हमें पढ़ने में निर्देशन करते थे , क्या क्या सीखना चाहिए और किस तरह सीखना चाहिए , ऐसा ऐसा वे हमें बताते नहीं थकते थे । उन्हों ने पढ़ने में हमें बड़ी सहायता दी । मेरे शिक्षक और दोस्त कहा करते हैं कि तुम्हारे बड़े भाई बहुत श्रेष्ठ हैं ,सुन कर मुझे बहुत गर्व महसूस हुआ । मैं भी भाई की तरह लगन से पढ़ने की कोशिश करती हूं । अब मैं सिन्चांग विश्विद्यालय के पर्यटन कालेज में पढ़ती हूं । मेरी उम्मीद है कि भाई की मदद से मैं भी अनेक भाषाएं सीख लूंगी ।

पढ़ने के अलावा सिराली ममुती विदेशी भाषाओं में रेडियो प्रसारण सुनना भी पसंद करते हैं । विदेशी भाषा में रेडियो कार्यक्रम सुनने से वे अपने विदेश भाषा का स्तर उन्नत करना चाहते हैं । वर्तमान में सिराली ममुती उरूमुची के एक रिहाईशी सामुदायिक बस्ती क्षेत्र में हान व उइगूर भाषाओं में अनुवाद का काम करता है । इस सामुदायिक क्षेत्र के संबंधित विभाग जब विदेशों से संबंधित काम करते हैं . तो अनुवाद के सभी काम सिराली ममुती करता है । वह वहां का प्रधान दोभाषिया और अनुवादक हो गया है । उस की मां आयेनियाजान को अपने बेटे के काम पर बहुत गर्व महसूस करती है । उन्हों ने कहाः

सिराली ममुती मेरा सब से बड़ा बेटा है , शरीर में वह विकलांग है , लेकिन बचपन से ही वह पढ़ना पसंद करता आया है . उस ने बहुत कुछ सीखे है और अच्छा काम किया है . अब वह हमारे परिवार का स्तंभ है , मेरी किस्मत खिली है कि मेरा ऐसा असाधारण बेटा हुआ । उस की मौजूदगी के कारण मेरे परिवार में सुखमय जीवन चल रहा है ।

वर्तमान में सिराली ममुती की एक अभिलाषा संजोए हुई है कि वह आगे गहन अध्ययन के लिए पढ़ेगा , ताकि खुद ज्यादा ज्ञान से परिपूर्ण हो जाए । इस पर उन्हों ने कहाः

मेरी सब से बड़ी अभिलाषा है कि कभी विश्वविद्यालय में पढ़ने का मौका मिले , मैं ज्यादा विदेशी भाषा सीखना चाहता हूं । उच्च शिक्षा लेने के बाद मैं विदेश में पढ़ने जाना चाहता हूं । मैं प्राचीन फारसी भाषा पर अधिकार करने का इच्छुक हूं . इस के बाद अंग्रेजी , फ्रांसीसी , रूसी और अरबी भाषा सीखने की कोशिश करूंगा ।

श्री सिराली ममुती की अभिलाषा से जाहिर है कि वह एक महाकांक्षी युवक है । हालांकि वह शरीर में अपाहिज हुआ , लेकिन मनोभाव व मानसिकता में वह एक स्वस्थ और दृढ़ संकल्पबद्ध पुरूष है । वह अपने चुने गए रास्ते पर अडिग रूप से चलता रहता है । हमें विश्वास है कि वह अपना करियर को अवश्य ही साकार कर देगा और हमारी कामना है कि वह और ज्यादा विदेशी भाषाएं सीख कर अधिक से अधिक योगदान करें ।

हमें विश्वास है कि एक विकलांग होने के बावजूद सिन्चांग के उइगुर जातीय विकलांग युवक सिराली ममुती ने जो स्वावलंबन और सुयोग्यता पाने के लिए कोशिश की है , उस की कहानी से आप जरूर बहुत प्रभावित हो गया हो और आप को यह कहानी पसंद हुई हो । आशा है कि सिराली ममुती की कहानी सुनने के बाद आप हमें लिख कर अपना अनुभव बतायेंगे ।