चीन के सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश की राजधानी उरूमुची में विकलांग उइगुर युवक सिराली .ममुती रहता है । यों वह केवल जुनियर मिडिल स्कूल तक पढ़ा और उस का शिक्षा स्तर ऊंचा नहीं है । किन्तु उस ने कड़ी मेहनत व लगन से चीन की मुख्य भाषा हान भाषा , तुर्क और फारसी जैसी अनेक भाषाएं सीखी हैं , इस तरह वह अपनी रिहाईशी बस्ती में बहु भाषाएं जानने वाला सुयोग्य व्यक्ति बन गया । अब स्वावलंबन के लिए उस की दिलचस्प कहानी प्रस्तुत है ।
शरीर के अपाहिज होने के कारण विकलांगों को सामान्य मनुष की तुलना में अनगिनत कठिनाइयों और असुविधाओं का सामना करना पड़ता है । लेकिन जीवन में असाधारण कष्ट झेलने के बावजूद बड़ी संख्या में विकलांगों ने अद्मय दृढ़ता और महाकांक्षा का परिचय कर सामान्य लोगों के लिए अप्रत्याशीत मुसिबतों पर काबू पाया और असाधारण योगदान किया । इधर के दशकों में विकलांग ओलिंपिक खेलों और पैरो ओलिंपिक खेलों में बहुत से चीनी व विदेशी विकलांग खिलाड़ियों ने विश्व कीर्तिमन कायम कर दुनिया को चौंकाया । खेल क्षेत्र की भांति अन्य क्षेत्रों में भी बेशुमार चीनी विकलांगों ने विभिन्न कामों में करिश्मा कर दिखाया । सिन्चांग के उइगुर युवक सिराली ममुती उन में से एक है ,जो बहुत सी विदेशी भाषाओं पर महारत हासिल करने की वजह से नामी गिरामी हो गया ।
सिराली .ममुती की आवाज में जो फारसी भाषा की कविता प्रस्तुत है , इस का मतलब हैः खुदा ने हमें गरीबी और दोस्त दिए हैं , मैं गरीबी की परवाह नहीं करता हूं , लेकिन जब मेरे दोस्त के सामने कठिनाई आयी , फिर मैं उसे मदद नहीं दे सकता । तो लगता है कि हाय , मानव कितना कमजोर है ।
सिराली ममुती द्वारा पढ़ी यह फारसी कविता मानव की बेबसी जाहिर है , लेकिन जीवन में उइगूर युवक सिराली ममुती स्वाभाव में एक पक्का संकल्पबद्ध और दृढ़ आदमी है । सिराली ममुती का जन्म वर्ष 1975 में सिन्चांग के उरूमुची शहर के एक उइगुर परिवार में हुआ । दुर्भाग्य है कि दो साल की उम्र में वह बीमारी से ग्रस्त हुआ , जिस के कारण वह सामान्य बच्चे की तरह ठीक से चल नहीं पाता और एक विकलांग बन गया। सामान्य बच्चों की भांति खेलने कूदने के काबिले तो नहीं हुआ , किन्तु इस से उसे दूसरों से ज्यादा पढ़ने लिखने का समय मिला । उस ने बचपन में ही बड़ी मात्रा में पुस्तकें पढ़ीं . इस की याद करते हुए उस ने कहाः
मुझे बालावस्था में ही पुस्तकें पढ़ने में गहरी रूचि आयी । याद है कि एक बार मां जी सिन्चांग के शहेची शहर से अरब लोक कथाओं की किताब एक हजार एक रात की कहानी यानी दे अरबियन नाइटस् लायी , मुझे इन कहानियों में बड़ी दिलचस्पी आयी । यों उस समय मैं इन अरबी कहानियों को समझ नहीं पाता था , लेकिन स्कूल में प्रथम साल की पढाई पूरी होने के बाद मैं उसे पढ़ने समझने में समर्थ हो गया । शीतकालीन छुट्टी के दौरान मैं ने एक हजार एक रात की सभी कहानियां पढ़ चुकी थीं । कहानियों के विषयों ने मुझे गहराई से मोहित कर दिया ।
एक हजार एक रात नामक पुस्तक में बेशुमार अरब लोक कथाएं शामिल हैं । कहानियों की सुन्दर भाषा और अनुठी कल्पनाओं ने सिराली ममुती को साहित्य के प्रति अथाह मोह पैदा कर दिया । पांचवें साल की कक्षा पढ़ने के समय ही छोटे सिराली ममुती ने कविता और लघु लेख लिखने की कोशिश शुरू की । और स्थानीय अखबार में उइगुर भाषा की अपनी प्रथम रचना प्रकाशित करवायी ।
कविता और लघु लेख लिखने के साथ साथ सिराली ममुती ने स्वाध्ययन से हान भाषा सीखना आरंभ किया । हान भाषा पर अधिकार करने के बाद उस ने कुछ सरल अनुवाद के काम भी किए । जब उस ने अनुवाद से कमाए गये पैसे मां के हाथ में थामे , तो उसे अपने पर बहुत गर्व महसूस भी हुआ । इस पर उस ने कहाः
वर्ष 1993 में मैं जुनियर मीडिल स्कूल से स्नातक हुआ । उस वक्त मुझे गहरा अनुभव हुआ कि हान भाषा सीखना अत्यन्त महत्वपूर्ण है । मैं ने हान भाषा सीखना आरंभ किया , और हान भाषा में प्रकाशित सुन्दर लेखों का उइगूर भाषा में अनुवाद करने की कोशिश की । इस कोशिश में मेरे दो लक्ष्य थे । पहला , अनुवाद के माध्यम से मैं अच्छी तरह हान भाषा पर महारत हासिल कर सकता हूं । दूसरा , अनुवाद से जो कुछ पैसा कमाता हूं , वह घर का खर्च चुकाने में मददगार हो सकता है । जुनियर मीडिल स्कूल से स्नातक होने के बाद मेरी एक कविता ऊरूमुची रात्रि पत्र में छपी । इस का पारिश्रमिक मिलने पर मुझे अपार खुशी हुई । मैं ने यह पैसा मां जी को दिया , आज तक वे इस बात की भी याद करती हैं ।
दोस्तो , उपरोक्त विवरण से विकलांग उइगुर युवा सिराली ममती के स्वावलंबन और आत्म निर्भरता की कहानी का पहला भाग यहीं तक , अगले दिन के इस स्तंभ में सिराली ममती की कहानी का दूसरा भाग यानी अंतिम भाग प्रस्तुत है , आप उसे भी पढ़िए ।
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