"एक अध्यापिका बनना मेरे जीवन का एक सपना रहा है । पहाड़ी क्षेत्र में बच्चों का स्वप्न होता है स्कूल जाना । मैं अपने सपने के जरिए बच्चों के स्वप्न को मूर्त रूप देने की कोशिश करूंगी ।"यह है उत्तर पूर्वी चीन के चीलिन प्रांत के ह्वेइछुन शहर के यिंगआन कस्बे में स्थित नए क्वोशू शिनछुन गांव के प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका सुश्री मा श्येनह्वा का कथन।
क्वोशू शिनछुन गांव एक बहुत गरीब गांव है । इसी गांव के प्राइमरी स्कूल के सामने अनेक मुश्किलें मौजूद हैं । सुश्री मा श्येनह्वा मुश्किलों को दूर करने के लिए अपनी पूरजोर कोशिश करती रहती हैं । प्राइमरी स्कूल का क्लासरूम एक फल वृक्ष उगाने वाले किसान के घर के दस वर्गमीटर से कम वाले मिट्टी मकान में है , जिस के भीतर खिड़की से सूर्य की किरणें अंदर नहीं आ सकती हैं । सुश्री मा श्येनह्वा ने अपने पैसे पर कमरे में लाइट लगवाई । उन की सेहत अच्छी नहीं है, लेकिन उन्होंने कभी एक कक्षा को भी नहीं छोड़ा ।
पिछले ग्यारह वर्षों में सुश्री मा श्येनह्वा के चार खेपों में साठ से ज्यादा विद्यार्थी श्रेष्ठ अंकों से क्वोशू शिनछुन गांव के प्राइमरी स्कूल से स्नातक हुए हैं । उन्हें चीलिन प्रांत की श्रेष्ठ अध्यापिका, राष्ट्रीय आदर्श अध्यापिका और राष्ट्रीय श्रेष्ठ महिला मज़दूर के रुप में सम्मानित किया गया है ।
वर्तमान में क्वोशु शिनछुन गांव के प्राइमरी स्कूल की स्थिति में बड़ा सुधार हुआ है । विद्यार्थी एक सौ वर्गमीटर वाले नए क्लासरूम में पढ़ते हैं । सुश्री मा ने कहा कि हालांकि मैं ने अनेक पुरस्कार हासिल किए और मशहूर हो गयी । लेकिन मैं पहले की तरह ही हूँ । मैं पहले की ही तरह अपने विद्यार्थियों को पढ़ाना जारी रखूंगी ।
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