पिछले कुछ दिनों में अमेरिका के कुछ पर्यटक चीन का भ्रमण करने आए और इन पर्यचकों में कई लोग पूंजिनिवेशक थे। ये सभी लोग इस बात को लेकर काफी उत्सुक थे कि चीन में ओलम्पिक की तैयारियाँ कैसे चल रही हैं और ये खेल किस तरह चीन की आर्थिक क्षेत्र में अपना प्रभाव डालेंगी। वे जानना चाहते थे की क्या चीन की अर्थ-व्यवस्था अपने चरम-सीमा को छू कर फिर क्या पतन की ओर बढ़ेगी। या फिर इन खेलों की वजह से चीन के आर्थिक व्यवस्था को और भी नयी बुलंदियों को पहुँचा कर एक नये अध्याय का आरंभ करेगी।
लेकिन ऐसे सवाल और उनके जवाब महज एक अनुमान या अंदाजा के आधार पर किये या दिये जा सकते हैं। वास्तव में कोई भी खेल प्रतियोगिता और अर्थ-व्यवस्था के बीच में कोई गहरा रिशता नहीं है। लेकिन चीन में राजधानी पेइचिंग और दूसरे प्रमुख शहरों में हो रहे बदलाव को हम मुद्देनजर रखते हैं तो हमें जरुर कई बदलाव देखने को मिलते हैं।
ओलम्पिक खेलों के एक वर्ष पूर्व ही हमें देखने को मिल रहा है की आर्थिक विकास के नियम-कानून और दृषि्टिकोण में कई सारे बदलाव आ गये हैं। जब चीन को ओलम्पिक खेलों की मेजबानी करने के लिए चुना गया तो खेल प्रेमी और आम आदमी काफी हर्षोल्लास के साथ इस घोषणा का स्वागत किये लेकिन शायद ही किसी को यह अंदाज था की ये खेल किस तरह चीन पर अपना असर दिखायेंगे। किस तरह ये खेल आम आदमि के जिवन स्थर में सुधार लायेंगे।
ज्यादा से ज्यादा लोगों का अनुमान था की ओलम्पिक खेलों से सड़कों में सुधार किये जायेंगे, पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारखानों को बंद कर दिया जायेगा या स्थानान्तरण किया जायेगा। आज तक चीन में सबसे बड़ी औद्योगिक स्थानांतरण कार्यक्रम कैपिटल आइरन और स्टील कोर्पोरेशन की थी जिसके अंतर्गत हजारों में कर्मचारियों और उनके परिवारों को स्थानांतरित किया गया।
ओलम्पिक खेलों से खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता में सुधार किया जा रहा है। इन खेलों के वजह से चीन के मध्य क्रम वालों की विकास के ओर दृष्चिकोण में बदलाव आ रहे हैं जिसमें पर्यावरण को काफी उच्च प्राथमिकता दी जा रही है। उद्योगपतियों को इस बात का एहसास हो रहा है की अगर वे कामयाब होना चाहते हैं तो उन्हें नये बदलाव लाने होंगे। ओलम्पिक खेलों से चीन के शहरों में निवास करने वालों के जीवन में और उनके दृष्टिकोण में एक नया बदलाव आ रहा है जो आगे चलकर पर्यावरण की सुरक्षा की ओर लिये गये कदमों में एक महत्तवपूर्ण उपलब्धि सिद्ध हो सकती है।
पर यह भी चर्चित है कि इधर के वर्षों में चीन ने पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में भरपूर्ण कोशिश की है । चीन को एक नयी और शक्तिशाली आयोग का गठन करना चाहिए जो देश की पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाए। वर्तमान में इस क्षेत्र में काम करने वाली राष्ट्रिय पर्यावरण सुरक्षा प्रबंध, जो केवल पर्यावरण में हो रही तफ्दीलियों पर सारा ध्यान केंद्रित रखता है और जिसके पास इतने अधिकार न हो की बनाये गये नियमों का पालन हो और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त कारवाही हो, के बजाय, एक नयी आयोग का गठन होना चाहिए जो चीन की लंबे समय में होने वाली तफ्दीलियों और उसके प्रगति को ध्यान में रखते हुए सभी विषयों का तालमेल कर सकें।
बहुत सारी अवसरों पर आर्थिक प्रगति ने नये उद्योगों और सेवाओं को जन्म दिया है। 1980 के दशक में शायद कुछ ही चीनी इस बात के बारे में सोचे होंगे की उनके घरों में टेलिफोन, कार, अपने माता-पिताओं के घर से बड़ी घर और दूसरे किस्म के आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। लेकिन आज ये सभी सुविधाएँ नैतिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी हैं और इससे चीन की जी डी पी पर एक प्रभावशाली असर पड़ा है।
पहले से ज्यादा घरें, ज्यादा नौकरियाँ, ज्यादा से ज्यादा लोगों का मोबाईल सेवाओं का और दूरभाष सेवाओं का उपयोगिकरण सारे ऐसे सुविधाएँ हैं जिससे चीनी देश और समाज में आये रचनात्मक बदलावों का पता लगता है लेकिन साथ ही साथ कई नकारात्मक बदलाव भी देखने को मिले हैं जैसे प्रदूषण। इस समस्या से जूझने के लिए तुरंत ही कुछ कदम उठाना चाहिए।
चीन आज विश्व में सर्वाधिक मात्रा में कारबोंडाईओक्साइड गैस मुक्त करने वाली देश है। हर एक वर्ष पच्चीस मिलियन टन कारबोंडाईओक्साइड गैस हवा में मुक्त किया जाता है। आंकड़ों के अनुसार इससे वार्षिक तौर पर चीन को साठ बिलियन अमिरीकी डालर का नुक्सान होता है। आज की एक समस्या प्रदूषण से भी अधिक गंभीर है, और वह है की सरकार के अलावा आम जनता में प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरुकता बहुत ही नीचे स्थर की है। इस समस्या से जूझने के लिए न सिर्फ नियम कानून बनाने होंगे बल्कि उनका अमल भी करना चाहिए जो सिर्फ औद्योगिक दायित्वों से ही बढ़ाया जा सकता है।
|