चाय जो भारत और चीन, विश्व के दो प्रमुख प्राचीन सभ्यता वाले देशों में सबसे लोकप्रिय पेय हैं। यह दोनों ही देश कई शताब्दियों से एक दूसरे के साथ कई सांस्कृति और आर्थिक आदानप्रदानों से जुड़े हुए है और इन आदानप्रदानों में चाय की भी एक खास स्थान है।
चीन और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही करने का लगभग दो हजार सालों का इतिहास है । इसी लम्बे काल में हमारे दोनों देशों ने एक दूसरे से बहुत कुछ सीख पाये है । मिसाल के तौर पर ,बौद्ध धर्म भारत से चीन आया था । बौद्ध धर्म के साथ चीन ने भारत से संगीत , चित्र , चिकित्सा तथा बहुत सी चीज़ें सीखी थीं । भारत में भी कुछ चीनी सभ्यता का निशान दिखता है । सील्क और चाय ये दोनों ही चीज़ें चीन से भारत गयी थीं । यह सील्क व चाय दोनों शब्दों के उच्चारण से ही पता लगाया जा सकता है । चीनी भाषा में सील्क का उच्चारण सी , और चाय का उच्चारण चाय ही होता है ।
जब भी हम भारत और चीन में सभ्यता के बारे में बात करते है, तो हमारा ध्यान मेहमाननावाजगी की ओर जाता है क्योंकि यह दोनों ही समाजों का अभिन्न अंग है। और जब भी इन दोनों देशों में हम मेहमाननवाजगी की बात करते है, तो एक विषय अपनी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है।
दोनों देशों की संस्कृति में चाय की रोजमर्रा जिंदगी में एक प्रमुख स्थान है। एक दैनिक पेय और मेहमाननवाजगी का अभिन्न हिस्सा होने के अतिरिक्त चाय हमारे स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है।
चीन में ऐसा कथन है कि चाय पीने से न सिर्फ हमें उत्तेजित किया जा सकता है , बल्कि हमारे शरीर को बहुत से लाभ पहुंचाया जा सकता है । चाय पी कर हम अपनेआप को तन्दुरूस्थ बना सकते है । चीनियों ने प्राचीन काल से ही चाय पीना शुरू किया था । चीनी इतिहास में चाय को लेकर कई सारे दिलचस्प कहानीयाँ है। कुछ पुस्तकों के अनुसार प्राचीन काल में लगभग पांच हजार साल पहले चीन के महान राजा शेननूंग ने अपनी जनता को उपयोगी खाद्य पदार्थों की तलाश करने के लिए जंगल में सभी जड़ी बूटियों को मुंह में खाने का परीक्षण किया था । जब उन्हों ने चाय पेड़ के पत्तों को भी खाया था , तब उन्हें यह पता लगा कि चाय को उबाला गया पानी में डालकर पीने से दिमाग और शरीर दोनों के लिए लाभदायक होगा तभी से चीनियों ने चाय पीना शुरू किया था ।लेकिन चीन में चाय थांग काल से एक लोकप्रिय पेय बनीं।चाय के ऊपर पहली पुस्तक चाय ग्रेंथ में ल्यूयू द्वारा लिखि गई थी।इस में चाय के इतिहास,इसको बनाने के तरीके विस्तार से बताया गया है।कुछ का यह मनना है कि बौद्ध धर्म के पुजारी इस पुस्तक से प्रेरित हो कर जापानी चाय समारोह आरम्भ की।चाय शब्द का स्रोत भी चीनी भाषा की छाई और चाय।इसके बाद चाय चीन से दुनिया के कोने कोने पर फैल गया । पर मुझे मालूम नहीं कि चाय कब और कैसे भारत गया था ।
जहाँ तक भारत का सवाल है अट्ठारह सौ तीस की दशक, जब भारत में आर्थिक तौर पर चाय की उत्पादन आरम्भ की गयी,से पहले आसाम की जंगलों में चाय एक जंगली पेड़ के रूप में उगती थीं ।सन् पंद्रह सौ उन्नसठ में डच यात्री लिनस्कोटन एक किताब में बताए थे कि भारतीय एक खास किस्म की पत्तों को अद्रक और तेल के साथ मिला कर सब्जी के रूप में खाया करते थे ।सन् सत्रह सौ में एक ब्रिटिश जीववैज्ञानिक बैंक्स,ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को यह सुझाव दिया की भारत की उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र सभी तरीकों से चाय की उत्पादन के लिए अनुकूल है।लेकिन इस सुझाव की ओर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया। सन् अट्ठारह सौ तेइस और ब्रुस, और उनके अनुज चाल्स ने इस बात की पुष्टी की कि चाय असाम की जन्मतःनिवासी है।लेकिन सन्अट्ठारह सौ तैंतीस में आर्थिक तौर पर चाय का उत्पादन आरम्भ किया गया।
श्री चाल्स ब्रुस के नेतृत्व में एक कमिटी का घटन किया गया। इस योजना के अंतर्गत श्री ब्रुस को अस्सी हजार चाय के बीज लाने के लिए चीन भेजा गया।इन बीजों को कलकत्ता के एक नर्सरी में बोया गया।इस कमिटी के सदस्य इस बात से सहमत नहीं कर हुए की भारत में भी मूल रूप से चाय के पेड़ पाये जाते थे।इसलिए उन्होने यह निर्णय लिया की चाय के बीज चीन से मंगाया जाय।इस संदर्भ में यह भी कहा जाता है की ब्रुस ने दो चीनीयों को भारत बुलाया और चाय के पौधों को उगाने के रहस्यों की जानकारी लीं।असाम में भी चाय का उत्पादन आरंभ किया गया लेकिन हैरानी की बात यह है कि चीनी चाय यहा पर उग नहीं पाये।और यहा पर पहले से पाये गये चाय के पत्ते भारी मात्रा में उगने लगे।
भारत में काली चाय,हरी चाय,हरी-काली चाय,और मसाला चाय पाये जाते हैं। भारत में मुख्य तौर चाय का उत्पादन असाम में,दार्जीलिंग में और निलगिरी में होता है। चीन में भी कई प्रकार के चाय मिलते हैं।लेकिन आम तौर पर यह कहा जाता है कि चीन में पांच किस्म के चाय हैं-हरी चाय,काली चाय,ब्रिक चाय,सुगन्धित चाय,और ऊलुंग चाय।चीन में चाय का उत्पादन हांगचोउ के लुंगचुंग नामक गांव में,च्यांगसू प्रांत के वू कांगटी में , आह्वेइ प्रांत के ह्वांगशैन पर्वत और छीमेन काँगटी में , तुंगटिंग झील के अन्तर स्थित छींगलू द्वीप , फूचैन प्रांत के आनशी कांगटी और वूई पर्वत , हनान प्रांत में ल्वान कांगटी व श्यैनयांग नगर तथा क्वेइचाओ प्रांत में डूयवन पहाड़ में किया जाता है ।
चीन में यह माना जाता है कि चाय और स्वास्थ्य का बहुत ही नजदीकी संबंध है।शायद हमारे श्रोताओं को पता नहीं है कि चाय एक लोकप्रिय पेय के अलावा एक ऐसा पदार्थ है जिसके उपयोग से हमारे स्वास्थ्य पर अनुकुलित प्रभाव पड़ता है।चाय का उपयोग से हम अपनी त्वच्छा,केषमें एक खास किस्म की चमक ला सकते हैं और आँखों के नीचे काले दागों को दूर भगा सकते है।इसके अलावा चाय से हम कैन्सर और आर्थराईटिस जैसी खतरनाक बिमारीयों का भी सामना कर सकते हैं।जहाँ तक कैन्सर का सवाल है चाय में फ्लावनोईड एनटि ओक्सिडेंट मौजूद है जो हमारे शरीर में स्थित ऐसी पदार्थो से जूझता है । बाद में कैन्सर या कारडियोवास्कोलार रोगों का कारण बन सकती हैं। इतना ही नहीं, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों के अनुसार चाय में कुछ ऐसे विशेष तत्व हैं जो हड्डियों की बिमारीयों का सामना करने में फायदेमंद साबित हो सकती है।
चाय में विटामिन बी दो और विटामिन सी पाये जाते हैं जिससे हम मुह और जीप में छाले नहीं पड़ेंगे , इस के अलावा इस में कोप्पर व जीन्क आदि बहुत से तत्व भी मौजूद हैं जिससे हमारे शरीर में नियमित रूप से खून का बहाव और पानी की मात्रा बरकरार रहती है,इतना ही नहीं चाय में अमीनो आसीड भी पाया जाता है जिससे हमारे शरीर को प्रोटीन मिलती है।
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