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(GMT+08:00) 2007-09-05 08:56:32    
लू ची प्राचीन कस्बा दक्षिण चीन की पुल राजधानी के नाम भी जाना जाता है

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लू ची प्राचीन कस्बा दक्षिण चीन की पुल राजधानी के नाम भी जाना जाता है । सिर्फ एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले कस्बे में विभिन्न राजवंश कालों में स्थापित गोलाकार पत्थर पुलों की संख्या 72 है । इतने अधिक पुलों में कुछ पुल अनेक छंद वाले हैं और कुछ एकल छंद के हैं । बहुत से पर्यटकों का कहना है कि लू ची प्राचीन कस्बे का दौरा करने के साथ साथ एक प्राचीन पुल म्युजियम देखने का मौका भी मिलता है ।

लू ची प्राचीन कस्बे की दूसरी विशेषता है कि यहां प्राचीन पेड़ों की भरमार है । वर्तमान प्राचीन कस्बे में सात पुराने गिंकगो पेड़ सब से चर्चित हैं , जिन में सब से बड़े पेड़ की उम्र एक हजार पांच सौ वर्ष से अधिक है । इस 50 मीटर ऊंचे पेड की मोटाई सात आठ व्यक्तियों की बांहों के घेरे जितनी हैं।

गाईड वांग ने हमें बताया कि लू ची प्राचीन कस्बे में तीन दुर्लभ प्राचीन पेड़ पर्यटकों को लुभाने में सब से आगे हैं । उन का कहना है कि चीनी वोल्फबेरी नामक पेड़ एक सौ बीस वर्ष से भी अधिक पुराना है । फिर इस सौ वर्ष पुराने पेड़ के बगल में उगी सौ वर्ष पुरानी बैंगनी लताएं भी बहुत चर्चित हैं । हर वर्ष एक दूसरे को लिपटाने वाली इन लताओं पर खिले हुए सुंदर फूल हैं, जिनसे हल्की-हल्की महक आती रहती है । जबकि तीसरा दुर्लभ पेड़ डेढ़ हजार वर्ष पुराना गिंकगो पेड़ ही है।

गाईड सुश्री वांग ने कहा कि पर्यटक उक्त तीनों दुर्लभ पुरानी वस्तुएं लू ची प्राचीन कस्बे के पाओ शंग मंदिर में ही देख सकते हैं । पाओ शंग मंदिर लू ची प्राचीन कस्बे की पश्चिमी सड़क पर है । उस का निर्माण सन 503 में हुआ था । आज तक वह एक हजार पांच सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है । पिछले हजार वर्षों में इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण किया गया है । इस मंदिर में थांग राजवंश काल के शिला लेख और मिंग राजवंश काल के प्राचीन निर्माण जैसे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अवशेष अच्छी तरह सुरक्षित हैं । पर इस मंदिर में संरक्षित अर्हत मूर्तियां सब से उल्लेखनीय हैं ।

ये अर्हत मूर्तियां एक हजार वर्ष पहले के थांग राजवंश में बनायी गयी थीं । शुरू में यहां पर तैयार मूर्तियों की संख्या आठ थी । पर बाद में एक अग्निकांड में चार मूर्तियां आग में जलकर राख हो गयीं , सिर्फ अन्य चार मूर्तियां बची हैं । इन अर्हत मूर्तियों और साधारण मूर्तियों के बीच का सब से बड़ा फर्क यह है कि साधारण अर्हत मूर्तियां अलग-अलग होकर लाईन में जमीन पर खड़ी की गयी हैं , जब कि इस मंदिर की अर्हत मूर्तियां दीवार के सहारे निर्मित हुई हैं , उन की पृष्ठभूमि में लहरदार विशाल समुद्र , सीधी खड़ी चट्टान और मंडराते हुए बादल दिखाये देते हैं ।ये मूर्तियां अधिक जीवंत लगती है और उन की मुद्राओं से उन के पृथक स्वभाव की झलक मिलती है , उन में कुछ गुफा में बैठकर साधना करने में मग्न दिखाई पड़ते हैं , अन्य कुछ कोहरे से घिरे पहाड़ पर बैठे हुए नजर आते हैं , यह मूर्ति समूह एक जीता जागता स्याही चित्र मालूम पड़ता है और बहुत आलीशान है । पाओ शंग मंदिर के प्रबंध विभाग में कार्यरत कर्मचारी सुश्री ल्यू यांग ने कहा कि दीवार से सटी इन मूर्तियों की सब से बड़ी विशेषता यह है कि ये अर्हत मूर्तियां दीवार से सटी हुई हैं और उन के पीछे समुद्र , सीधी खड़ी चट्टान और बादल का चित्रण भी किया गया है । ऐसे चित्रण को समुद्र पहाड़ शैली कहा जाता है । इन मूर्तियों को बहुत सुंदर ढंग से पहाड़ व समुद्र के साथ जोड़ा गया है ।

दोस्तो , पर्यटक लू ची प्राचीन कस्बे में न सिर्फ पुराने मंदिर , प्राचीन पुल , सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अवशेष और प्राचीन पेड़ हैं , बल्कि पुरानी सड़कों पर घूमते हुए आधुनिक वातावरण भी महसूस किया जा सकता हैं । यही नहीं , सड़कों पर सू चओ की अल्पसंख्यक जाति की महिलाएं भी देखने को मिल जाती हैं । ये महिलाएं कसीदा त्रेस , कसीदा जूते और रंगीन रेशमी स्कार्फ जैसे अलग-किस्म परम्परागत जातीय पोशाकों से सजी हुई हैं ।ये महिलाएं लू ची प्राचीन कस्बे को छोड़कर दूसरी किसी भी जगह पर देखने को नहीं मिलती हैं ।यह प्राचीन कस्बे लू ची की एक अलग पहचान है । इसलिये अधिकतर पर्यटक इस प्राचीन कस्बे का दौरा करने के बाद यादगार के लिये जातीय कसीदा त्रेस , कसीदा जूते और रेशमी स्कार्फ खरीद कर वापस ले जाते हैं ।