एक कुआ में एक मेढ़क रहता था , रोज वह खुशी में मस्त रहता था ।
एक दिन पूर्वी समुद्र से एक भीमकाय कच्छ आया , मेढ़क ने उस से कहा , देखो , मैं कितना खुश हूं , चाहे, कुआ से बाहर निकल कर खेलने घूमने जा सकता हूं ।
कुआ के किनारे पर कूद फुदक सकता हूं , चाहे तो फिर कुआ के अन्दर विश्राम करने लौट सकता हूं , कुआ की टूटी भित्ति पर घुटनी लगा कर बैठ सकता हूं , कुआ के तल की कीचड़ ज्यादा गहरी नहीं है , महज मेरे पांव तक आती है ।
देखो , वे कीड़ा मकोड़े , छोटे नन्हें कीट पतंग , उन में से कौन मेरा जैसा महान हो सकता । मैं पूरे कुआ पर काबिज हूं , मन आया , छलांग लगा सकता हूं , नहीं चाहता , तो उस में आराम करता हूं ।
कितना मस्त हूं , कितना मजा आया । आप क्यों नीचे नहीं आए , जरा देखो तो सही ।
समुद्र से आये भीमकाय कच्छ ने कुआ के भीतर जाने की कोशिश की , लेकिन अभी कुआ के मुह में पांव बढ़ा कि एक पांव कुआ की भित्ति पर अटक पड़ा और कुआ बड़ा छोटा था कि कच्छ उस के अन्दर नहीं जा पाता ।
कच्छ पीछे हट कर मेढ़क से बोला, तुम ने कभी समुद्र देखा हो , हां, वह इतना विशाल है कि हजारों किलोमीटर जितना दूर हो , वह समुद्र से लम्बा चौड़ा नहीं है , हजारों मीटर पर्वत जितना ऊंचा हो , वह समुद्र से गहरा नहीं हो पाता ।
प्राचीन राजा शायो के समय दस सालों के दौरान नौ साल तक लगातार मुसलाधार वर्षा हुई थी , किन्तु समुद्र का पानी उस के कारण नहीं बढ़ा , सांग राज्यवंश के जमाने में आठ सालों में सात साल सूखा पड़ा , किन्तु समुद्र का पानी कुछ भी नहीं घटा ।
ओह , अनन्त असीम समुद्र है , वह समय के साथ साथ छोटा या बड़ा नहीं होता , वह बारिश की मात्रा से घटता बढ़ता नहीं जाता । इसी तरह के समुद्र में रहते हुए असली खुशी मसहूस हो सकती है ।
समुद्र से आए भीमकाय कच्छ की बातें सुन कर मेढ़क को बड़ा आश्चर्य आया , उस की दोनों आंखें फुट फुट कर खुलीं और अवाक रह गयी। तभी उसे लगा कि वह कितना मामूली और छोटा है ।
नीति कथा की शिक्षा है कि लोग अहंकार से बच जाना चाहिए और अपने को सही समझना चाहिए ।
|