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(GMT+08:00) 2007-08-30 12:53:46    
जीना यहां मरना यहां इस के सिवा जाना कहां

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राकेशः लेकिन यह बात भी कम लोगों के मालूम है कि जब मुकेश को शौहरत नाम पैसा कुछ मिलने लगा तो उन्होंने एक बार फिर अभिनय के क्षेत्र में हाथ आजमाने की कोशिश की। और 1953 में बनी "माशूका" और 1956 में बनी "अ नुराग" में उन्होंने अभिनय किया। लेकिन दोनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फ्लाप हो गई।

ललिताः फिर?

राकेशः फिर मुकेश वापिस जब गाने के लिए लौटे तो देखा कि कोई ऑफर ही नहीं है। कोई उन से गाना गवाने को तैयार ही नहीं। हालात यहां तक पहुंच गए कि उन के दोनों बेटों को जो उस समय स्कूल में पढ़ रहे थे, फीस न दे पाने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया। लेकिन जल्द ही 1958 में यहूदी के साथ वे फिर वापिस आए और उसी साल दो और फिल्में भी उन की आईं "मधुमती" और "परवरिश"। और इन फिल्मों ने उन्हें फिर वह ऊंचाई दी कि अंत तक वे आकाश में चमकते सितारे की तरह लोगों के दिलों को अपनी दर्द भरी आवाज से रोशन करते रहे। सन् 1976 में जब वे अमरीका में कंसर्ट देने के लिए दौरे पर थे तो वहीं उन्हें दिल का जानलेवा दौरा पड़ा। और एक खूबसूरत इंसान, गायक, राजकपूर का हमसाया अपने खूबसूरत गीत, अपनी दर्द भरी आवाज़ पीछे छोड़ गया।