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(GMT+08:00) 2007-08-28 10:31:39    
किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार, जाने ना नजर पहचाने जिगर यह कौन जो दिल पर छाया

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ललिताः मुकेश की आवाज़ कुछ-कुछ उदासी भरी लगती है।

राकेशः हां। यह बात सही है। उन की आवाज़ में दर्द का एक सुर आधार रूप में दिखाई पड़ता है। और चाहे वो प्रेम का गीत ही क्यों न गा रहे हों, दर्द की एक लकीर का एहसास हमेशा बना रहता है। और उन की इस विशेषता के कारण उन की आवाज़ आम आदमी को अपने बहुत करीब लगती है।

ललिताः मैं ने पढ़ा है कि मुकेश ने बहुत से गीत राजकपूर के लिए गाए।

राकेशः हां, 1948 में बनी "आग" फिल्म में सब से पहले उन्होंने राजकपूर के लिए गीत गाए थे। और उस के बाद तो वे मानो राजकपूर की आवाज का प्रयाय ही बन गए।

ललिताः फिल्म के इस गीत को सुनने की फरमाइस की थी हमारे इन श्रोताओं ने इदरसी क्लब, कस्बा शीशगढ़, जिला बरेली, यू. पी. से गुड्डु भाई इदरसी, फजील इदरसी और अखला इदरसी। कहकशां रेडियो श्रोता संघ मदरसा रोड कोआथ बिहार से हाशिम आजाद, खैरुन निसा, रज़िया खातून, खाकसार अहमद और बाबू अकरम।