दोस्तो,ज़ीपो पूर्वी चीन के शानतुंग प्रांत में 2000 वर्ष पुराना एक छोटा-सा नगर है। इस में प्रचलित ऊ-ईन ऑपेरा,ल्याओ-चाई ऑपेरा,मनच्यांगन्वी की कथा और च्यो-च्यु खेल राष्ट्रीय प्राथमिकता प्राप्त अभौतिक सांस्कृतिक अवशेष हैं,जिन में से च्यो-च्यु अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल संघ द्वारा फुटबॉल खेल का मूलरूप निश्चित किया गया है।
ज़ीपो नगर के ऊ-ईन ऑपेरा थिएटर में कुछ समय पूर्व मंचित युन छ्वी देवी नामक एक ऊ-ईन ऑपेरा स्थानीय दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बना। करीब एक महीने तक इस के हरेक शो में थिएटर खचाखच भरा रहा। ऊ-ईन ऑपेरा ज़ीपा की स्थानीय परंपराओं का एक रूप है,जिस का कोई 300 वर्षों का इतिहास है । स्थानीय यांगको और ह्वांकू ऑपेराओं के विकास के आधार पर ऊ-ईन ऑपेरा बना है। शुरूआती काल में उस की प्रस्तुति पांच व्यक्तियों द्वारा की जाती थी। इसलिए उसे ऊ-ईन का नाम दिया गया। ऊ-ईन का चीनी में अर्थ है पांच व्यक्तियों के स्वर। चीन के अन्य क्षेत्रों में प्रचलित स्थानीय ऑपेराओं की भांति ऊ-ईन ऑपेरा के अस्तित्व और विकास को भी संकट का सामना करना पड़ा है। उसे बचाने के लिए ज़ीपो नगर के ऊ-ईन ऑपेरा थिएटर ने बड़ी कोशिशें की हैं। इस थिएटर के निर्देशक श्री सुन-छांग ने कहाः
"हर साल वसंतोत्सव के दौरान मैं थिएटर के कलाकारों को साथ लेकर गांव जाता हूं। क्योंकि उस समय किसानों को खेतीबारी के काम से फुरसत होती है और वे लम्बी छुट्टियां मना रहे होते हैं। हम किसानों की सेवा में ऊ-ईन ऑपेरा के कोई 100 शो प्रस्तुत करते हैं,ताकि इस ऑपेरा की सांस्कृतिक विरासत के रूप का विकास हो और दूसरी तरफ़ ऑपेरा के प्रस्तुतीकरण के जरिए किसानों तक आधुनिक विचार और देश के आर्थिक व सामाजिक विकास की ताजा स्थिति पहुंचाई जा सके। "
वर्ष 2006 में ऊ-ईन ऑपेरा चीन की राष्ट्रीय प्राथमिकी प्राप्त प्रथम खेप के सांस्कृतिक अवशेषों की सूची में शामिल किया गया है। इस से इस ऑपेरा के संरक्षण और विकास को नया मौका मिला है।श्री सुन ने अपनी नई योजना बताते हुए कहा कि ऊ-ईन ऑपेरा के स्तर औऱ स्थिति की उन्नति के लिए हम उसे उच्च शिक्षालयों तक पहुंचाएंगे और सालाना राष्ट्रीय ऑपेरा-उत्सव में प्रस्तुत करेंगे।
ल्याओ-चाई ऑपेरा भी जीपो का एक प्रकार का स्थानीय ऑपेरा है,जो कोई 400 साल पुराना है और मुख्य रूप से जीपो के सछ्वान क्षेत्र में प्रचलित है। उस की सारी कथाएं चीन के अंतिम सामंती राजवंश छिंग राजवंशकाल के प्रसिद्ध साहित्यकार फू सुंग-लिंग के लिखे भूत-प्रेत वाले उपन्यास `ल्याओ-चाई ` पर आधारित हैं। लचाव-घुमाव वाली खुली धुनों की वजह से यह ऑपेरा स्थानीय जनसमुदाय में काफी लोकप्रिय है।
लेकिन सुनना,देखना पसंद करना और गाना आना दो अलग-अलग बात है। इधर के दो दशकों में आम लोगों को मनोरंजन की विचित्र आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराई गई है, पॉपगीत लगभग सारे गीत-जगत पर छा रहे हैं और स्थानीय ऑपेरा गाने पर महारत हासिल करने वाले लोगों की संख्या कम होती जा रही है। इस तरह ल्याओ-चाई ऑपेरा को भी अन्य स्थानीय प्राचीन संस्कृति व कला के रूप की भांति अपने होने वाले अंत को देखना पड़ा है। फू-चा नामक एक गांव में हमारे संवाददाता ने इसे लेकर गांव के मुखिया श्री फू छांग-छुन से बातचीत की।श्री फू ने कहाः
`मुझे बहुत पहले ही बताया गया था कि ल्याओ-चाई ऑपेरा लुप्तप्राय हो रहा है और उसे गा सकने वाले नहीं के बराबर रह गए हैं। मुझे और गांव के अन्य ज्यादातर लोगों को समझ में नहीं आता कि इस तरह का ऑपेरा कैसे प्रस्तुत किया जाए। हमें सिर्फ इने-गिने बुजुर्गों से यह ऑपेरा सुनने का मौका मिला है। गांव के मुखिया के नाते मुझे आशंका थी कि कहीं यह प्राचीन स्थानीय संस्कृति हमारे जीवन में समाप्त न हो जाए। `
ल्याओ-चाई ऑपेरा को बचाने के लिए श्री फ़ू ने युवा गांववासियों से अवकाश में संबंधित बुजुगों से यह ऑपेरा गाना सीखने की अपील की और इस के लिए जितना हो सकता था,उतनी सुविधाएँ प्रदान की गईं। श्री फू के अनुसार गावं की पंचायत ने हरेक युवा गांववासी से ल्याओ-चाई ऑपेरा की कम से कम दो कृतियां गाने पर अधिकार करने की मांग की। युवा लोगों ने इस में अधिक उत्साह दिखाया और कई सप्ताहों तक अभ्यास के बाद एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई। प्रतियोगिता में उन की प्रतिभा और हुनर देखकर हमें आश्चर्य हुआ। बाद में हमारी सलाह पर उन्हों ने एक ल्याओ-चाई ऑपेरा मंडली कायम की। यह मंडली कृषि के अवकाश में आस-पास के गांवों में भी जाकर कार्यक्रम प्रस्तुत करती है।
ल्याओ-चाई ऑपेरा की जनसाधारण में बिखरी कृतियों की तलाश,संग्रह और संकलन के लिए फू-चा गांव के लोगों ने बड़ी कोशिश की और बुजुर्गों ने इस में खासा योगदान किया।उन की मदद से संग्रहित और संकलित कृतियों का सुव्यवस्थित शोध अब स्थानीय युवाओं का एक काम सा बन गया है। गांव के एक युवक फू चिंग-ये ने कहाः
"ल्याओ-चाई ऑपेरा स्थानीय बोली में प्रस्तुत किया जाता है।इसलिए उस में स्थानीयता अधिक है। इस के अनुसंधान के लिए स्थानीय लोगों को छोड़ औऱ कौन ज्यादा उपयुक्त हो सकता है ? हम ने अनेक नई कृतियां भी बनाई हैं,जिन में वर्तमान युग की भावना अभिव्यक्त हुई है। हम परंपरागत गायन-शैली में आधुनिक विषयों वाली कृतियों से लोगों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।"
गावं के मुखिया श्री फ़ू छांग-छुन के अनुसार अब इस गांव के हजारों लोग ल्याओ-चाई ऑपेरा गा सकते हैं।युवा लोगों के लिए उस की दसेक कृतियों को एक साथ प्रस्तुत करना कोई कठिन काम नहीं है। उन की कोशिशों से इस प्राचीन स्थानीय संस्कृति के आगे भी जीवित रहने का आश्वासन हमें मिला है।
`मनच्यांगन्वी की कथा` पर आधारित लोकगीत भी ज़ीपो की विशेषता वाले अभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों में शुमार है।`मनच्यांगन्वी की कथा` इस प्रकार हैः प्राचीन काल में मनच्यांगन्वी नामक एक युवती किसी भी तरह अपने प्रेमी से शादी करती है।लेकिन शादी की रात उस के पति को पकड़कर लम्बी दीवार के निर्माण के लिए घर से काफी दूर एक कार्य-स्थल तक पहुंचाया जाता है। कई साल बाद मन्च्यांगन्वी पति की तलाश में पैदल चलकर ऊंचे पहाड़ पर खड़ी लम्बी दीवार के नीचे पहुंचती है।लेकिन उसे बताया जाता है कि उस का पति एक दुर्घटना में मर गया और उसे लम्बी दीवार के नीचे दफनाया गया है। दुखी होकर मनच्यांगन्वी रोना और चीखना शुरू करती है। महीनों तक जारी उस की रोने की आवाज से प्रभावित होकर लम्बी दीवार का एक भाग ढह जाता है और वह अपने पति से मिल जाती है,लेकिन वह सिर्फ एक शव है।
जीपो नगर के ज़ंग चा गांव में `मनच्यांगन्वी की कथा` पर आधारित लोकगीत बुजुर्ग लोगों की मदद से अच्छी तरह सुरक्षित हैं। इस तरह के लोकगीतों की संख्या दसियों है। उन्हें पूरी तरह गाने में कम से कम एक दिन लगता हैं।
ज़ीपो नगर के संगीतकार संघ के अध्यक्ष श्री हान नाई-श्वन का मानना है कि प्राचीन स्थानीय ऑपेराओं और गीत-संगीत की मूल्यवान विशेषताएं हैं,जिन में समृद्ध स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाज झलकते हैं।
सूत्रों के अनुसार ज़ीपो नगरपालिका ने उक्त कीमती अभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा में भारी धनराशि लगाने की योजना बनाई है।चीनी संस्कृति मंत्रालय के उपप्रभारी श्री चो ह-फिन ने इस के लिए ज़ीपो नगरपालिका की सराहना की।उन्हों ने कहाः
"इस समय चीन के विभिन्न क्षेत्रों की स्थानीय सरकारों ने सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण में ढेर-सारे काम किए हैं। सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण की राष्ट्रीय योजना के अमलीकरण में स्थानीय सरकार और जन समुदायों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। हमें विश्वास है कि सामाजिक विकास के चलते देश के तमाम लोगों में सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण के प्रति चेतना बढ़ेगी।"
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