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सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2007-08-14 14:35:27    
तिब्बती गायक तान जङ की कहानी

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चीन की अल्पसंख्यक जाति---तिब्बती जाति नाच-गान की शौकीन है, तिब्बती बहुल क्षेत्र तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में यह कहावत प्रचलित है कि तिब्बती लोगों को जन्म से ही गाना-नाचना आता है । नाच-गान के लिए मशहूर इस भूमि पर बड़ी संख्या में श्रेष्ठ गायक और गायिकाएं हुई हैं , आज के इस लेख में आप को उन में से एक श्री तानजङ से अवगत कराया जाएगा।

आवाज---

अब आप जो धुन सुन रहे हैं, वह तिब्बती गायक श्री तान जङ द्वारा गाए गए तिब्बती महाकाव्य"राजा कैसर"का एक अंश है, जिस का नाम है "युद्ध मैदान में जाने से पूर्व"। इस में कहा गया है कि राजा कैसर अपने सैनिकों का नेतृत्व कर युद्ध मैदान में जा रहे हैं । उन की रानी उन से विदा ले रही है । राजा और रानी के बीच गहरा प्यार अभिव्यक्त हुआ है । दिल की बातें ज्यादा है, प्यार, चिंता और आशा सब भाव गीतों में झलके हैं ।

वर्ष 2006 की शरत् ऋतु में तीसरे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक जातीय सांस्कृतिक समारोह में तिब्बती गायक तान जङ ने दर्शकों को तिब्बती महाकाव्य"राजा कैसर"की मधुर धुन सुनाई । अपनी जाति के महाकाव्य"कैसर"की चर्चा करते हुए श्री तान जङ को बहुत गौरव महसूस होता है । उन्होंने कहा:

"महाकाव्य'राजा कैसर'विश्व में सब से लम्बा महाकाव्य है । राजा कैसर के गीत तिब्बत में बहुत सामान्य हैं, इस की प्रस्तुति के लिए कई किस्मों की धुनें हैं, जो सब की सब लोकसंगीत ही हैं । राजा कैसर की रानी का नाम था चोमू ।'युद्ध मैदान में जाने से पूर्व 'इस अंक में राजा का अपनी रानी के प्रति गहरा प्यार अभिव्यक्त हुआ है । अपनी रानी से विदा लेने का उन का मन नहीं कर रहा है ।"

गीत---

"सफेद बर्फीली पर्वत चोटी के नीचे पिघले हुए पानी से हमारी भूमि सिंचित हुई , मातृभूमि के सुन्दर दृष्ट को देख हमारे चरवाहे बड़े खुश हुए।"

यह तिब्बती लोक गीत श्री तानजङ का पसंदीदा गीत है । श्री तानजङ का जन्म तिब्बत के शिकाजे इलाके में एक साधारण किसान परिवार में हुआ , उन की बाल्यवस्था में उन के घर का जीवन कठिनाईयों से भरा हुआ था, मां बाप दोनों बहुत कम पढ़े-लिखे हैं , लेकिन वे अपने पुत्र तानजङ के भविष्य पर बड़ा ध्यान देते हैं , माता पिता के समर्थन से तानजङ हाई स्कूल तक पढ़े , इस के बाद वे तिब्बत नार्मल कालेज के कला विभाग में दाखिल हुए, और वहां कला की उच्च शिक्षा लेने लगे । कालेज जीवन के दौरान उन्हें परम्परागत तिब्बती संगीत सीखने के साथ-साथ पाश्चात्य संगीत के विकास इतिहास का ज्ञान भी हासिल हुआ ।

वर्ष 1981 में श्री तानजङ चीन के मशहूर संगीत प्रतिष्ठान---शांगहाई संगीत कालेज में दाखिल हो गए । तिब्बत पठार से हजारों किलोमीटर दूर देश के सब से बड़े शहर शांगहाई में उन्होंने चार साल तक संगीत का प्रशिक्षण लिया ।

शांगहाई संगीत कालेज के अधिकांश छात्र देश की विभिन्न मशहूर कला मंडलियों से चुने गए श्रेष्ठ गायक गायिका हैं , एकमात्र तानजङ तिब्बत से आये थे, पेशेवर गायन कला नहीं सीखने के कारण शुरू-शुरू में उन का स्तर सब से नीचे था, लेकिन कालेज के शिक्षकों और छात्रों की मदद से उन का स्तर तेजी से उन्नत होता गया । इस की चर्चा में श्री तानजङ ने कहाः

"शांगहाई संगीत कालेज में दाखिल होने के बाद हमें हर तरफ से तवोज्जह और मदद मिली है , राष्ट्रीय जातीय मामला आयोग तक हमारा ख्याल रखते हैं । तिब्बती छात्रों का कला शिक्षा का आधार कमजोर है , संगीत कालेज ने हमें अतिरिक्त रूप से पढ़ाने का बंदोबस्त किया , यहां अल्पसंख्यक जातियों के छात्रों का विशेष ध्यान रखा जाता है ।"

शांगहाई में चार साल के अध्ययन और प्रयास के बाद श्री तानजङ ने तिब्बती गीतों और आधुनिक गीतों की गायन कला की विशेषता और समानता खोज निकाली , स्नातक परीक्षा में उन्हें अपनी क्लास में दूसरा स्थान प्राप्त हुआ ।

शांगहाई संगीत कालेज से स्नातक होने के बाद श्री तानजङ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के कला मंच पर एक नवोदित नामी स्टार बन गए । देश की विभिन्न किस्मों की अल्पसंख्यक जातियों की गायन प्रतियोगिताओं में भी उन का नाम चमकने लगा । वर्ष 1985 में देश की प्रथम अल्पसंख्यक जातीय संगीत प्रतियोगिता में उन्हों ने सर्वोच्च पुरस्कार ---स्वर्ण अमरपक्षी पुरस्कार जीता । इस के बाद 15 सालों तक श्री तानजङ ने देश और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की विभिन्न प्रतियोगिताओं में दसियों पुरस्कार प्राप्त किए हैं . कला के अध्ययन में श्री तानजङ ने जातीय गायन कला और पाश्चात्य गायन कला का मिश्रण कर अपनी विशेष शैली बनायी है ।