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(GMT+08:00) 2007-08-10 15:03:30    
सिन्चांग के जातीय नृत्य रूपांतरक श्री आंनिवायर टोहुटी

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पिछले भाग में आप ने पढ़ा है की सिन्चांग के जातीय नृत्य सुधारक श्री आंनिवायर टोहुटी ने बालावस्था और युवावस्था में जातीय नृत्य कला सीखने में कड़ी मेहनत की थी और अपने कला जीवन के विकास के लिए मजबूत आधार डाला है और समृद्ध ज्ञान के आधार पर जातीय नृत्य कला को विश्व की नयी आधुनिक धारा के साथ जोड़ने की तैयारी की थी । आगे आप के लिए प्रस्तुत है , नृत्य कला सुधार में उन्हों ने क्या क्या काम किए है ।

वर्ष 1969में श्री आंनिवायर दक्षिण चीन की हांगचो नृत्य कला मंडली में नियुक्त हुई और वे कला मंडली में नृतक और नृत्य संपादन का काम करते थे । इस दौरान उन्हों ने अनेक श्रेष्ठ नृत्य और नृत्य नाटक रचे , जिन में लम्बी पुरानी परम्परा रखने वाली नृत्य कला और वर्तमान विश्व में प्रचलित आधुनिक नृत्य कला का मिश्रित प्रयोग किया गया । नृत्य जीवन से आंनिवायर को सशक्त कला बौध और सौंदर्य शक्ति प्राप्त हुई । उन के पिता टोहुटी बाकटी ने कहा कि वे पुत्र के जातीय नृत्य को वास्तविक जीवन के साथ जोड़ने के रूख का समर्थन करते हैं । उन्हों ने कहाः

कला जनता से अलग नहीं हो सकती और नृत्य भी जनता से अलग नहीं हो सकता । उइगुर जाति की नृत्य संस्कृति जब व्यापक रूप से लोक संस्कृति से पोषक तत्व गृहित करती है और अपने का विकास व परिपूर्ण करती है , तभी उस का व्यापक विकास हो सकता है और दुनिया में कदम रख सकता है ।

अपनी जातीय संस्कृति का विकास करने का सपना बराबर आंनिवायर के दिल में बना रहता है । पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक में जब वे सिन्चांग कला कालेज में नृत्य कला पढ़ाने आए , तो उन्हों ने सिन्चांग की नृत्य कला को अपनी श्रेष्ठ परम्परा सुरक्षित रखने के साथ साथ आधुनिक जीवन में संचारित करने की खोज शुरू की है . इस पर उन्हों ने कहाः

सिन्चांग के रंच मंच पर नए रूप रंग की नृत्य रचना नयी दुल्हन प्रस्तुत हुई , इस नृत्य कृति में नयी चीनी विदेशी अभिनय कलाओं का संयुक्त इस्तेमाल किया गया । इस नए नृत्य में पुराने ढंग के नृत्य में दुल्हन के नकाब पहनने और शर्मिंदगी दिखाने के अभिनय की जगह खुला व उदार स्वभाव और उत्साह दिखाने की अभिव्यक्ति का तरीका अपनाया गया , जिस से दुल्हा और दुल्हन के नव विवाहित जीवन में एक प्रकार का स्वस्थ और प्रगतिशील नजारा दिखता है । नयी नृत्य कला पम्परागत कला के आधार पर विकसित हुई तथा और निखर गयी है।

नव प्रफुल्लित जातीय कला को संरक्षित और विकसित करने के लिए श्री आंनिवायर ने गहरा अनुभव प्राप्त किया है कि अल्पसंख्यक जातीय कला की प्रगति और सृजन के लिए निरंतर चिन्तन किया जाना चाहिए । अल्प समय में उन की कला समीक्षा पुनः चिन्तन नामक लेख सिन्चांग दैनिक में प्रकाशित हुआ । इस समीक्षा पर व्यापक प्रतिक्रियाएं हुईं । टीवी , रेडियो और पत्र पत्रिकाओं के संवाददाताओं ने चढ़ बढ़ कर उन से साक्षात्कार ले लिया । लोगों का व्यापक ध्यानाकर्षण हुआ है कि अल्प संख्यक जातियों की परम्परागत संस्कृतियों पर नए सिरे से चिन्तन मंथन बहुत आवश्यक साबित हुआ है । सिन्चांग कला अनुसंधान प्रतिष्ठान के उप प्रभारी श्री डिलिक्सियाटी पेएरहती ने इस के बारे में बतायाः

नृत्य कला में जातीय श्रेष्ठता की खोज करने की क्षमता होती है , हमें चाहिए कि चीन की नृत्य कला से जातीय परम्परा और जातीय संस्कृति की उत्तम भावना दर्शायी जाए । सांस्कृतिक सौंदर्य के संदर्भ में जातीय मनोभाव , जातीय चिन्तन के तौर तरीके , जातीय स्वभाव और जातीय विशेष समझदारी निहित है । कला संस्कृति का केन्द्र जातीय श्रेष्ठता और व्यक्तिगत आत्मा पर आश्रित है ।

जाति की चीज विश्व की चीज होती है । सिन्चांग के जातीय नृत्य कला में हान जाति और देश के पश्चिमी क्षेत्र की विभिन्न जातियों की संस्कृतियों का मजबूत आधार है । प्राचीन रेशम मार्ग पर विश्व के विभिन्न राष्ट्रों की श्रेष्ठ संस्कृतियों का संगम हुआ है , इस अद्भुत श्रेष्ठ मिश्रित सांस्कृतिक विधि को विरासत में गृहित कर आगे विकसित किया जाना चाहिए । इस लक्ष्य के लिए श्री आंनिवायर जैसे जातीय कला के विकास हेतु हमेशा चिन्तनशील रहने तथा योगदान करने वाले लोगों की आवश्यकता है । हमें विश्वास है कि श्री आंनिवायर जैसे सिन्चांग कलाकारों के सतत प्रयासों से सिन्चांग के अल्पसंख्यक जातियों का नृत्य गान और अधिक रंगबिरंगे और शानदार होगा तथा और अधिक विश्व के ध्यान को अपनी ओर प्रबल खींच लेगा ।

दोस्तो , सिन्चांग के नृतक श्री आंनिवायर की कहानी यहीं तक , विश्वास है कि आप को यह कहानी जरूर पसंद आयी और इस के बारे में अपनी राय लिख कर हमें भेज दें , हम आप के पत्रों के इंतजार में है ।