सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश में अल्पसंख्यक जातियों के लोग नाचने और गाने से चीन में बहुत मशहूर है , कहा जाता है कि सिन्चांग के विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों के लोग जन्मजात नृतक और गायक होते हैं । नृत्या गान उन के जीवन का एक अभिन्न भाग बन जाता है । इसलिए सदियों से उन में विशेष नृत्य गान की परम्परा बनी रहती है । लेकिन आधुनिक युग आने के साथ साथ विश्व के हर क्षेत्र में नया रूप आय है और नृत्य गान इस के अपवाद भी नहीं है ।
अब नृत्य गान कला के विकास में अपनी परम्पराएं बनाए रखने के साथ साथ युग के कदम के संग उन में नया परिवर्तन भी आया , इस परिवर्तन के लिए बहुत से अल्पसंख्यक जातीय लोगों ने अथक प्रयास किए हैं । आज की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम के अन्तर्गत उइगुर जाति की नृत्य कला को नया आयाम देने में सक्रिय उइगूर नृतक श्री आंनिवायर टोहुटी की कहानी प्रस्तुत है । अब श्री आंनिवायर टोहुटी की कहानी का पहला भाग आप के सामने है , जो इस प्रकार काः
प्रोफेसर आंनिवायर टोहुटी इस साल अपने जीवन के पचास साल को पार कर गए हैं , लेकिन जब वे नृत्य के लिए थिरकने लगे , तो उन में यौवन का उत्साह और फुरती नजर आयी । वे लम्बे सुडौल और सौम्य हैं और हर वक्त सीधे खड़े रहते हैं । नाचने के उमंग में डूबे वे तेज तर्रे की म्युजिक धुन पर थिरकते रहे और घुमरी की भांति वेग से चक्कर काटते रहे ।
पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक में ये प्रतिभाशाली उइगुर नृतक परदेश से लौट कर अपनी जन्म भूमि सिन्चांग की राजधानी उरूमुची आये और सिन्चांग कला कालेज में छात्रों को नृत्य कला सिखाने लगे । इस के दौरान वे सिन्चांग की जातीय नृत्य कला के अध्ययन में भी संलग्न हो गए । वे कोशिश करते हैं कि जातीय भावना के गुण को नृत्य कला में उडेला जाएगा । वे अपनी जातीय कला परम्पराओं का प्यार करने और उसे विरासत में विकसित करने के साथ ही साथ युग की धारा के संग सिन्चांग की जातीय नृत्य कला को विश्व की कला खजाने में मिश्रित करने के पक्षधर हैं। श्री आंनिवायर ने कहाः
मैं ने उत्तरों की खोज और सिन्चांग नृत्य के विकास की दिशा शीर्षक लेख लिखे और पुनःचिंतन का शब्द इस्तेमाल किया , पुनःचिंतन में हमारी अल्पसंख्यक जातीय संस्कृति को इतिहास के साथ बनाए रखने के अलावा उसे नए युग की संस्कृति के साथ जोड़ने की अवधारणा पेश की गयी है , परम्परागत नृत्य कला किस तरह विश्व के उन्मुख होना चाहिए , यह एक विचारनीय सवाल है ।
श्री आंनिवायर एक नृतक से एक चिंतनशील कला समीक्षाकर में परिणत हुए , इस परिवर्तन पर उन के पिता का प्रभाव है । उन के पिता टोहुटी बाकटी सिन्चांग के प्रसिद्ध अनुवादक हैं । पिता के प्रभाव में आ कर श्री आंनिवायर को बचपन में ही कला साहित्य में रूचि पैदा हुई और हर बात की तह लगाने की आदद पड़ गयी । अब तक भी उन के घर में उन के द्वारा वर्ष 1962 में लिखी डायरी सुरक्षित है ,जिस के पीले हुए पृष्टों में उन के परवान चढ़ने तथा करियर का विकास करने की याद अंकित है।
सिन्चांग के उइगुर जाति के मशहूर नृत्य कला के प्रोफेसर श्री आंनियावर टोहुटी ने सिन्चांग के परम्परागत नृत्य को संरक्षित करने में बड़ा काम किया है । उन के इस प्रयास के पीछे उन के पिता जी की प्रेरणा का बड़ा हाथ है । पिता की भावना से प्रोत्साहित हो कर उन्हों ने बालावस्था और किशोरावस्था में ढेरे सारी किताबें पढ़ीं , जिस से उन्हें सिन्चांग की जातीय नृत्य के बारे में विस्तृत जानकारी संजोए रखी हुई है , जो आगे उन के करियर के विकास के लिये खासा मददगार साबित हुआ है ।
वर्ष 1969 में श्री आंनिवायर की नियुक्ति दक्षिण चीन के हांग चो नृत्य कला मंडली में हुई और नृत्य कार्यक्रमों का संपादन करने का काम किया , जिस से उन्हें जातीय नृत्य को आधुनिक नृत्य के साथ जोड़ने का अच्छा मौका मिला । और नृत्य के संपादन के काम में उन्हों ने समृद्ध अनुभव भी प्राप्त किए और मजबूत आधार भी डाला । लेकिन बाद में उन्हों ने जातीय नृत्य कला के सुधार और युग की धारा के साथ जोड़ने में क्या क्या काम किए और क्या क्या सफलता प्राप्त की है , तो आप उन की कहानी का दूसरा भाग पढ़ने के लिए हमारी सी .आर .आई हिन्दी वेबसाइट का दौरा करें । (क्रमशः)
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