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(GMT+08:00) 2007-07-31 15:31:17    
तिब्बती जाति का गौरव----ल्हासा का जोखान मठ

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के केंद्र में एक विशाल मठ स्थित है, जो जोखान मठ के नाम से विश्वविख्यात है । एक हज़ार से अधिक वर्षों में सुरक्षित यह मठ तिब्बती जाति के लम्बे पुराने इतिहास और शानदार संस्कृति का साक्षी है । इसे तिब्बती जाति का गौरव माना जाता है ।

जोखान मठ तिब्बत में सुरक्षित सब से पूराना तिब्बती व हान शैली वाला काष्ठ निर्माण है, इस का निर्माण सातवीं शताब्दी के शुरु में हुआ। और बाद में कई बार विस्तार और मरम्मत के परिणामस्वरूप अब तक इस मठ का क्षेत्रफल 25 हज़ार वर्ग मीटर पहुंच गया । जोखान मठ का प्रमुख वास्तु निर्माण तीन मंजिला विशाल भवन है, जिस की छतों पर तिब्बती जाति की विशेष शैली में सोने का मुलंमा चढ़ा हुआ है। सूर्य की किरणों में यह स्वर्णीय छतें चमकदार नजर आती हैं और लोगों को यह मठ और अद्भुत शानदार लगता है । जोखान मठ की जनवादी प्रबंध कमेटी के उप निदेशक, इस मठ के आचार्य निमा त्सेरन ने जोखान मठ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्य की चर्चा में कहा:

"हमारा जोखान मठ मुल्यवान पूरातत्व धरोहर माना जाता है । विश्व मानवीय संस्कृति की दृष्टि से देखा जाए, तो यह मठ हमारी मानव जाति का खजाना है । दूसरी अहम बात यह है कि मठ में 12 वर्ष की उम्र के भगवान बुद्ध शाक्यमुनी की आत्मकद मुर्ति विराजमान है, यह मुर्ति विश्व में बेजोड़ है और हम बौद्ध अनुयायी उसे जीवित बुद्ध मानते हैं ।"

जानकारी के अनुसार जोखान मठ में रखी हुई शाक्यमुनी की इसी आत्मकद मूर्ति का इतिहास 2500 वर्ष पूराना है । कहा जाता है कि भगवान बुद्ध शाक्यमुनी के जीवन काल में उन की तीन अलग अलग उम्र वाली आत्मकद मूर्तियां बनायी गयी थीं । जोखान मठ की यह मूर्ति विश्व में एक मात्र सही सलामत रूप से सुरक्षित मूर्ति है , इस तरह उसे अमोल विरासत मानी जाती है । बौद्ध धर्म के अनुयायी दूर-दूर से ल्हासा आकर जोखान मठ में पूजा करते हैं । उन के विचार में इसी मूर्ति को देखना भगवान बुद्ध के दर्शन के बराबर है ।

जोखान मठ की स्थापना सातवीं शताब्दी में तिब्बती राजा सोंगज़ान कानबू ने करवायी थी । तत्काल चीन का थांग राजवंश बहुत शक्तिशाली था । पड़ोसियों के साथ अच्छा रिश्ता कायम करने के लिए तिब्बती राजा सोंगज़ान कानबू ने क्रमशः नेपाली राजकुमारी भृकुती और थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ के साथ शादी की । दोनों राजकुमारी तिब्बत आने के वक्त शाक्यमुनी की अलग अलग आत्मकद मूर्ति लायी । थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ द्वारा लाई गई मूर्ति , जिस पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है , जोखान मठ में सुशोभित की गयी, यही है शाक्यमुनी की 12 वर्ष की आत्मकद मूर्ति । जबकि नेपाली राजकुमारी भृकुती द्वारा लाई गई शाक्यमुनी की आठ वर्ष उम्र वाली आत्मकद मूर्ति जोखान मठ के नज़दीक स्थित रामोचे मठ में रखी गयी ।

जोखान मठ में सुरक्षित भगवानबुद्ध की 12 वर्ष उम्र वाली आत्मकद मूर्ति तिब्बती जनता के दिल में आस्था का स्रोत है । इस मठ की गाइड मिस ली श्याओ ह्वा ने जानकारी देते हुए कहा:

"भगवान बुद्ध शाक्यमुणी की यह आत्मकद मूर्ति अनुयायियों द्वारा प्रदत्त तरह तरह के मणि रत्नों से सुशोभित की गयी है । यह मूर्ति अब असली व्यक्ति से थोड़ी ऊंची है , क्यों कि कालांतर में बहुत से अनुयायियों ने उस की पूजा करने के साथ-साथ मूर्ति पर सोने के पाउडर की परतें लगायीं । इस तरह अब तक यह मूर्ति सशरीर सोने से सुसज्जित हो गयी है ।"

जोखान मठ में भगवानबुद्ध शाक्यमुनी की मूर्ति के अलावा मठ के संस्थापक राजा सोंगज़ान कानबू की मूर्ति भी रखी हुई है । तिब्बती जनता के दिल में राजा सोंगज़ान कानबू और उन की दो रानियां राजकुमारी भृकुती और राजकुमारी वनछङ तीनों बौद्धिसत्व के अवतार माने जाते हैं । हमारी गाइड सुश्री ली श्याओ ह्वा ने कहा:

"जोखान मठ के पहला मंजिला और दूसरा मंजिला भवनों की छत छज्जों में सातवीं शताब्दी में खोदी गयी लकड़ी की बौद्ध मूर्तियां देखने को मिलती हैं । इन मुर्तियों की खुदाई मठ के निर्माण के दौरान खुद तत्कालीन तिब्बती राजा सोंगजान कानबू द्वारा की गयी थी । बगल में राजकुमारी वनछङ का एक आसन पत्थर का पायदान है, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी अकसर अपनी ऊंगलियों से इसे छू लेते हैं , इस तरह अब इस पत्थर पायदान पर घी की मोटी परत मढ़ी है ।"

इन के अलावा, जोखान मठ में सातवीं शताब्दी में चंदन की लकड़ी से बने हुए द्वार और प्राचीन अलंकृत लकड़ी स्तंभ भी अच्छी तरह सुरक्षित हुए हैं । हमारी गाइड सुश्री ली श्याओ ह्वा ने जानकारी देते हुए कहा कि जोखान मठ के निर्माण के वक्त एक चंदन की लकड़ी से बना हुआ ऐसा स्तंभ अब तक सुरक्षित है , जिसे तिब्बती लोग बहुत दिव्य समझते हैं । इस लिए वे अकसर अपने-अपने हाथों से इस स्तंभ को भी छू लेते हैं । समय गुज़रते ही इस स्तंभ पर भी घी की मोटी परत चढ़ी है और देखने में वह बहुत चिकनी व समतल दिखाई देती है । आश्चर्य की बात यह है कि इस चंदन की लकड़ी से बने हुए स्तंभ में मनुष्य के दांत भी जड़े हुए हैं । इस का रहस्योद्घाटन करते हुए सुश्री ली श्याओ ह्वा ने कहा

"तिब्बती बौद्ध धर्म के बहुत से अनुयायी पूजा प्रार्थना के लिए किसी भी किस्म के वाहन के इस्तेमाल के बिना दूर-दूर पैदल से ल्हासा आते हैं और कुछ लोग तो घर से ल्हासा तक षष्टांग नतन देते रहते हैं , जिस से उन्हें घर से ल्हासा तक जा पहुंचने में एक साल , यहां तक पांच छै साल का समय लगता है । कुछ बुढ़े अनुयायी कमज़ोर थे और रास्ते में बीमारी के कारण चल भी बसे थे । दम तोड़ने से पहले आम तौर पर उन्हों ने अपने साथी से अपना एक दांत निकाल कर जोखान मठ के इस स्तंभ पर जड़ित करने का अनुरोध किया । उन का विश्वास है कि दांत के रूप में वे खुद जोखान आ पहुंचे है, क्योंकि दांत मानव शरीर का एक मजबूत अवयव है, जो लम्बे समय तक खराब नहीं होता । ये दांत उन अनुयायियों की अमिट आस्था दिखाई देते हैं ।"

हर रोज़ जोखान मठ का बेशुमार तिब्बती लोग बौद्ध सूत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने आते हैं । दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की लड़की छिंगछिंग ल्हासा में तीन साल ठहरी है । छिंगछिंग कभी कभार अपने कैमरे से जोखान मठ आकर फोटो खींचती है । उस ने कहा कि जोखान मठ में पूजा प्रार्थना करने आए तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों की आस्था को देख कर उस का दिल बारंबार पिघल जाता है । सुश्री छिंगछिंग ने कहा

"वे लोग दूर-दूर से यहां आते हैं । उन में से बहुत से लोग तिब्बती चरवाहे हैं । ल्हासा आने के पूर्व वे अपने पशुओं को बेच देते है और पैदल से यहां आते हैं । उन्हें इस सफ़र को कष्ट के बजाए बहुत आनंददायी व फलदायक महसूस होता है ।"

दोस्तो, पूजा प्रार्थना करने वाले तिब्बती बौद्ध अनुयायी आयेदिन जोखान मठ आते हैं । उन के पद चिह्न सदा के लिए जोखान मठ में छोड़े गए हैं, उन की पवित्र भावना से इस तीर्थ स्थल का दौरा करने आने वाला हरेक व्यक्ति प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता है ।