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(GMT+08:00) 2007-07-30 10:17:50    
चीन-फ्रांस सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भव्य समारोह

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दोस्तो,चालू साल के अप्रैल से जून माह के अंत तक चीन के 14 शहरों में फ्रांस के संगीत,कविता,फिल्म औऱ फोटो-प्रदर्शनी के करीब सौ आयोजन किए जा रहे हैं,जिन की ओर मीडिया और आम लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है। फ्रांस की संस्कृति में रुचि रखने वाले चीनियों को इन आयोजनों से बड़ा लु्त्फ मिला है।

फ्रांस की लियाँन संगीत मंडली और परंपरागत चीनी वाद्य `कुजंग` और `पीपा` बजाने वाली मशहूर संगीतकार सुश्री फान अर-छिंग ने सहयोग से शन-ह्वो नामक एक प्राचीन चीनी संगीत प्रस्तुत किया।

शन-ह्वो चीनी परंपरा के अनुसार मंदिरों में किसी मेले में प्रस्तुत किया जाने वाला एक संगीत है।चीन और फ्रांस के सगीतकारों ने इस संगीत की प्रस्तुति के जरिए एक दूसरे से सांस्कृतिक आदान-प्रदान का अनुभव साझा किया। उन का कहना है कि उन्हों ने परंपरागत चीनी संगीत-वाद्यों पर पाश्चात्य संगीत पैदा करने में अत्यंत अच्छा परिणाम भी प्राप्त किया है।दोनों देशों के संगीतकारों के श्रेष्ठ प्रदर्शन से दर्शक बहुत प्रभावित हुए और उन की अनंत तालियों के कारण संगीतकारों को हर शो में बार-बार अतिरिक्त कार्यक्रम पेश करने पड़े।

पेइचिंग के दर्शकों के अनुसार चीन और फ्रांस के संगीतकारों के सहयोग से प्रस्तुत कार्यक्रमों ने उन्हें नयेपन का एहसास कराया है। उन में से एक दर्शक ने कहाः

" यह मेरे लिए बिलकुल नया अनुभव है। दोनों देशों के संगीतकारों ने इतनी अच्छी तरह से सहयोग किया है। यह मेरी कल्पना से परे है। उन के द्वारा प्रस्तुत संगीत में दोनों देशों के प्राचीन सांस्कृतिक तत्व घुलमिल गये हैं और आधुनिक तत्व भी हैं। इस तरह के मिश्रण से कानों को ही नहीं,बल्कि दिलों को भी नयेपन का एहसास हुआ है। "

अन्य एक दर्शक ने अपना विचार इस तरह व्यक्त किया कि चीन और फ़्रांस के संगीतकारों ने आपसी सहयोग में सृजन किया है। इसलिए पाश्चात्य वाद्यों पर प्राचीन चीनी संगीत बजाने और और परंपरागत चीनी वाद्यों पर पाश्चात्य संगीत बजाने के उन के कार्यक्रम अत्यंत सफल रहे हैं।

चीनी दर्शकों के लिए फ्रांस का प्राचीन और आधुनिक संगीत कोई नयी चीज़ नहीं है। वर्ष 2004 में चीन और फ़्रांस के बीच सांस्कृतिक वर्ष मनाया गया था। तब से चीन में फ्रांसीसी संगीत की प्रस्तुति बढती गई हैं। फ़्रांस के तेब्योसी जैसे विश्वविख्यात संगीतकार की रचनाओं के चीन के अनेक बड़े शहरों में बहुत से दीवाने हो गए हैं। कुछ समय पूर्व पेइचिंग में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय कला-मिलन समारोह में फ़्रांस के संगीत,गीत-नाटकों और चित्र-प्रदर्शनी ने बड़ी तादाद में दर्शकों को आकर्षित किया था।

फ्रांस की लियाँन संगीत मंडली करीब हर साल वसंत और ग्रीष्मकाल में पेइचिंग आती है। उन के कार्यक्रम देखने के लिए चीनी दर्शक बेताब रहते हैं। जहां वह कार्यक्रम प्रस्तुत करती है,वह जगह दर्शकों से खचाखच भर जाती है। इस मंडली के कला-निर्देशक श्री गेरार्ड.लेकोइनट ने कहा कि वर्ष 2005 में चीनी संगीतकारों के साथ सहयोग शुरू करने के बाद उन्हों ने बहुत कुछ नया अनुभव प्राप्त किया है। चीनी संगीतकारों के साथ संगीत प्रस्तुत करने के दौरान उन्हें सृजन का नये विचार मिले हैं। कहा जा सकता है कि हम ने अपने काम में जो कुछ नया किया है,वह चीनी संगीतकारों के साथ किए गए सहयोग से अलग नहीं है।उन्हों ने कभी नहीं सोचा था कि चीनी दर्शक पाश्चात्य संगीत को इतना पसंद कर सकते हैं और उस के अर्थ को इतनी अच्छी तरह से समझ सकते हैं। श्री गेरार्ड.लेकोइनट ने कहाः

"हम ने चीन के पेइचिंग और शांघाई के संगीत प्रतिष्ठानों में छात्रों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया है। ये छात्र मोज़ार्ट और तेब्यूसी की संगीत-कृतियों को बखूबी जानते हैं और उन में से अनेक को बजा सकते हैं। चीनी संगीत समृद्ध और सुन्दर है। लेकिन पसंद करने के बावजूद हमें उसे बजाना नहीं आता है। हमारे लिए चीनी संगीत के विविध ढंग जादू जैसे अकल्पित हैं।"

श्री गेरार्ड लेकाइनट को इस बात का बड़ा खेद है कि दूसरे देशों में भी कार्यक्रम प्रस्तुत करने के कारण वह हर साल चीन में केवल एक या दो सप्ताहों तक ही रह सकते हैं। इतने कम समय में वह चीनी संगीत के मर्म तक नहीं पहुंच पाते हैं।

पेइचिंग फोर्बिडन सिटी संगीत हॉल की उप मैनेजर सुश्री जु-चिंग वर्ष 2004 से फ्रांसीसी संगीत जगत के साथ सहयोग करती आ रही हैं और हर साल ग्रीष्मकाल में होने वाले संगीत संबंधी आयोजनों में फ्रांसीसी संगीत के प्रचार-प्रसार का काम भी करती हैं। इस साल उन के संगीत हॉल में `पेइचिंग कला-उत्सव में मिले` विषयक सांस्कृतिक गतिविधि के एक भाग के रूप में फ्रांसीसी संगीत-समारोह आयोजित हुआ। उन के विचार में इस से चीनी लोगों को फ़्रांसीसी संगीत की ज्यादा जानकारी पाने का मौका मिला है। उन्हों ने कहाः

" यह आयोजन करना हमारे लिए सौभाग्यपूर्ण है। इस से लाभ उठाकर हम ने अपनी प्रतिष्ठा और ख्याति बहुत बढ़ाई है। फ़्रांस में सचमुच बहुत से श्रेष्ठ संगीतकार हैं और उन की कृतियां चीनियों द्वारा पहचाने जाने की प्रतीक्षा में हैं। "

सुश्री जू-चिंग के अनुसार भविष्य में भी वह चीनियों को और अधिक फ़्रांसीसी संगीत रचनाओं से वाकिफ़ करवाने,फ़्रांस और यूरोप के अन्य देशों के संगीत-जगतों के साथ सहयोग मजबूत करने के काम में जुटी रहेंगी,ताकि चीनी संगीत और पाश्चात्य संगीत को एक दूसरे से और करीब आने के मौके मिल सकें ।

चीन ने संगीत- क्षेत्र से पहले अनुवाद-क्षेत्र में फ्रांस के साथ सहयोग शुरू किया था।पिछली शताब्दी में बहुत से चीनी अनुवादकों ने फ़्रांसीसी लेखकों और उन की रचनाओं का चीनी पाठकों को परिचय दिया। मशहूर फ़्रांसीसी लेखक बाल्ज़ाक और विक्टर ह्युगो की कृतियों के कुछ अंश चीनी मीडिल व प्राइमरी स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में पढने को मिल सकते हैं।चेक की नागरिकता प्राप्त फ़्रांसीसी लेखक मिलान.कुंदरा की जानकारी पिछली सदी के 80 वाले दशक में चीनी पाठकों को पहली बार मिली।तब से उन की करीब हरेक पुस्तक चीन में लोकप्रिय हुई है।

पेइचिंग स्थित फ्रांसीसी संस्कृति-केंद्र और सूचो शहर के प्राचीन वास्तुकला में निर्मित उद्यानों में नियनित कविता-पाठ और कविता-संगोष्ठी का आयोजन चीन और फ़्रांस के कवियों,साहित्यकारों,अनुवादकों और चित्रकारों को अकादमिक आदान-प्रदान के अच्छे मौके देता है। कविता-पाठ में दोनों देशों के कवि अपनी-अपनी पसंद की कविताएं पढकर सुनाते हैं,अनुवादक इन कविताओं के वाक्य एक-एक कर अनुवादित करते हैं और चित्रकार उपस्थितों के चित्र बनाते हैं। पूरा मौहाल अकादमिक व कलात्मक होता है।

फ़ांसीसी कवि श्री जेन क्वाउड फानसोन ने पिछली सदी के 70 वाले दशक में ही चीन के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। इस से वह चीनी कविताओं के इतिहास और वर्तमान स्थिति से काफी अच्छी तरह परिचित हो गए हैं। ईसा की 8वीं शताब्दी के प्रसिद्ध चीनी कवि पाई चु-ई की कविताएं उन को बहुत पसंद है। इन कविताओं का पाठ करना उन का एक शौक है।

पेइचिंग फिल्म कालेज में इस समय पर्यटन नामक एक फ़्रांसीसी फोटो-प्रदर्शनी लगी हुई है,जो चीनी युवा लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।उन का मानना है कि इस प्रदर्शनी से चीन और फ़्रांस के बीच समझ बढाने में मदद मिलेगी।यह प्रदर्शनी देखने के बाद एक छात्रा ने कहाः

"यह प्रदर्शनी बहुत अच्छी है। इस ने मुझ में फ़्रांस जाने की उत्सुकता पैदा की है। मैं समझती हू कि चीनी छात्रों के फ़्रांस जाने और फ़्रांसीसी छात्रों के चीन आने से दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में समझ और सहयोग बढ़ेगा।बेशक कलात्मक सृजन इस से बेहद लाभांवित होगा। "

पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तुंग-छांग का विचार है कि इधर के दो वर्षों में चीन और फ्रांस के बीच सहयोग बहुत बढ़ा है,लेकिन दोनों देशों की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति की तुलना में यह नाकाफी हैं। उन्हें आशा है कि यह सहयोग और बढेगा।