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(GMT+08:00) 2007-07-24 09:04:13    
घास मैदान में तिब्बती चरवाहों के घर में जाना

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मई माह में छिंगहाई-तिब्बत पठार पर वसंत का मौसम महसूस नहीं होता । हमारी गाड़ी ठंढी हवा में पठार के छोटे रास्ते पर चल रही है, एक घंटे से ज्यादा समय लगाकर अंत में हम घास मैदान में रहने वाले तिब्बती चरवाहे खर्सिसर के घर पहुंचते हैं ।

खर्सिसर का घर छिंगहाई झील के उत्तर स्थित शिंगफ़ूथान नामक घास मैदान में बसा हुआ है, जो समुद्र की सतह से करीब तीन हज़ार मीटर ऊंचा है । मई में भी यहां बहुत ठंढ रहती है । झील पर बर्फ़ जमी है और घास मैदान का रंग पीला है । हमारी गाड़ी खर्सिसर के घर के द्वार पर पहुंची तो हम ने देखा कि मेहमानवाज़ मेज़बान खर्सिसर हाथों में सफेद हाता लिए हमारे स्वागत के लिए वहां खड़े हुए हैं।

खर्सिसर के घर में कुल नौ कमरे हैं, जिन्हें अच्छी तरह सजाया गया है । बाहर सर्दी होने पर भी घर के अंदर हमें बहुत गर्मी महसूस होती है।

खर्सिसर ने हमारा हार्दिक स्वागत किया । अभी आप ने जो आवाज सुनी, वह तिब्बती चरवाहे द्वारा मेहमान के स्वागत में गाए गए गीत की है ।

खर्सिसर के घर की बैठक बहुत स्वच्छ है जहां उच्च स्तरीय इलेक्ट्रोनिक उपकरण व नए किस्म वाला फ़र्नीचर रखा हुआ है । मेज़ पर रखे हुए तिब्बती पकवान बहुत स्वादिष्ट हैं । खर्सिसर के घर में बैठते हुए हमें लगता है कि भीतरी चीन के किसी अन्य शहरों के एक साधारण परिवार में हों, न कि पठारीय घास मैदान के चरवाहे के घर में । हमारी बातचीत में 57 वर्षीय खर्सिसर ने हमें घास मैदान और उन के जीवन में आए भारी परिवर्तन के बारे में बताया । तिब्बती बंधु खर्सिसर का कहना है

"हम वर्ष 1989 से ही यहां आ कर बसे हैं । हमारे बुज़ुर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी शीविरों में रहते थे, इस तरह मकान में रहने की शुरू में हमें आदत नहीं पड़ी । लेकिन अब हम ने निश्चित स्थान पर रहने को वास्तविक तौर पर महसूस किया है । यहां आ कर बसने के बाद हमारे खान-पान में भारी परिवर्तन आया है और जीवन की गुणवत्ता भी उन्नत हुई है। पहले हर रोज़ हम आम तौर पर बीफ़ और मटन, छाओम्येन और ज़ानबा आदि खाते थे, लेकिन आजकल हम सब्जियां और अन्य किस्म वाला आटा भी खा सकते हैं ।"

आम तौर पर तिब्बती लोग मेहमानों के सत्कार के लिए बीफ़ और मटन परोसते हैं । लेकिन खर्सिसर के घर में हम ने भिन्न-भिन्न प्रकार वाली ताज़ा सब्ज़ियां भी देखीं । तिब्बती बंधु खर्सिसर ने हमें समझाते हुए कहा कि उन का घर कांउटी के केंद्र से दूर है और आम समय में सब्ज़ी खरीदना मुश्किल है । उन्होंने कहा कि पठार के घास मैदान में भेड़-बकरी पालने के लिए शीशे के बाड़े का प्रयोग किया जाता है । गर्मियों में गाय और भेड़ बाड़े से बाहर जाकर घास मैदान में रहती हैं, तो इसलिए हम ने शीशे के बाड़े का प्रयोग कर सब्ज़ियां उगाने की कोशिश की ।

बाड़े में उगाई गई सब्ज़ियां खर्सिसर के परिवार की आवश्यकता को पूरा कर सकती है , इस के साथ ही वे कभी-कभार आसपास के पड़ोसियों को भी, अतिरिक्त सब्जी भेंट करते हैं । तिब्बती चरवाहे खर्सिसर ने हमें बताया कि खान-पान और रहन-सहन की आदत बदलने के कारण अब चरवाहे कम बीमार होते हैं । खर्सिसर के साथ बातचीत करते समय उन की तीस वर्षीय बहू ल्हामोत्सो रसोई घर में हमारे लिए भोजन तैयार करने में व्यस्त थी । लेकिन कभी-कभार वह हमारी बातचीत में भी हिस्सा ले रही थी । ल्हामोत्सो ने कहा

"इधर के वर्षों में हम चरवाहों के जीवन में बड़ा परिवर्तन आया है। हालांकि हम दूर के पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं और हर परिवार के बीच की दूरी ज्यादा है, लेकिन सरकार की सहायता और चरवाहों की स्वयं की कोशिशों से अब हम निश्चित स्थलों में आ बसे हैं । गत वर्ष केंद्र सरकार की पूंजी से हमारे यहां बिजली और पेय जल का प्रयोग शुरू किया गया ।"

ल्हामोत्सो ने कहा कि दसियों वर्ष पहले घास मैदान में मौसम की स्थिति बहुत बुरी थी, चरवाहे का परिवार अक्सर एक साथ नहीं रहता था और उन के जीवन का स्तर नीचा था, अनेक स्थलों में बिजली और पानी नहीं था , यहां तक कि कई स्थलों में भर पेट खाना भी नहीं मिल पाता था । लेकिन आज कल घास मैदान के चरवाहों के जीवन में भारी बदलाव आया है। स्थानीय सरकार की सहायता से और चरवाहों की स्वयं की कोशिशों से उन के जीवन की गुणवत्ता उन्नत हो गयी है।

तिब्बती चरवाहे खर्सिसर ने हमें बताया कि वे 1200 से ज्यादा भेड़ों व बकड़ियों को चराते हैं और 170 से अधिक गायों का पालन करते हैं । गत वर्ष भेड़ों और गायों को बेचने से प्राप्त आय साठ हज़ार से ज्यादा चीनी य्वान थी । गत वर्ष में ही उन्होंने अस्सी हज़ार य्वान में कांउटी में अपने बेटे के लिए एक रिहायशी मकान खरीदा । इस समय उन की पत्नि कांउटी में बेटे के घर में रहती है ।

यह खबर सुनने के बाद हम ने सोचा कि हम कांउटी में उन के बेटे के घर का दौरा करेंगे । इस तरह शिंगफ़ूथान घासमैदान में खर्सिसर के घर से रवाना होकर हम उन के साथ कांउटी में उन के बेटे के घर आए। हम देखना चाहते थे कि शहरों में रहकर घास मैदान के चरवाहे का वास्तविक जीवन कैसा है ।

खर्सिसर द्वारा खरीदा गया रिहायशी मकान का क्षेत्र फल अस्सी वर्गमीटर है । घर में जो फ़र्नीचर और साजसामान है वह भीतरी इलाके के अन्य शहरों के बराबर है । दीवार पर टंगा हुआ थांग खा चित्र और मेज़ पर रखी बौद्ध मूर्ति से हमें मालूम हुआ कि हम एक तिब्बती वंधु के घर आ गये हैं। तिब्बती चरवाहे खर्सिसर की पत्नि हार्मो ने हमे बताया

"पहले घास मैदान में महिला का जीवन सब से कठिन और सब से थकान वाला होता था । चरवाहों के पास निश्चित निवास स्थान नहीं था । महिलाओं को भेड़ों व गायों का पालन करना, खाना पकाना, पति और बच्चे को देखभाल करनी पड़ती थी । इस तरह तिब्बती महिलाएं कभी कभार बीमार भी होती रहती थीं । लेकिन आजकल जीवन सुधर गया है । हम स्वच्छ सुनहरे मकान में रहती हैं और फ्रिज़ समेत उच्च स्तरीय इलेक्ट्रोनिक मशीनों का प्रयोग भी कर सकती हैं ।मुझे लगता है कि पहले हम सपने में भी आज के जीवन के बारे में नहीं सोच सकते थे ।"

अब तिब्बती चरवाहों के जीवन में सुधार आया है और वे इस से बहुत खुश हैं। तिब्बती बंधु उत्साह से हमें तिब्बती गीत सनाने लगे ।

जीवन का स्तर उन्नत होने के चलते घास मैदान में रहने वाले तिब्बती चरवाहे अपने सांस्कृतिक जीवन को भी बदल रहे हैं । खर्सिसर का बड़ा बेटा और उन का दामाद कांउटी की होर्समैनशिप टीम में शामिल हुए हैं । जब घास मैदान में कोई भी गतिविधि आयोजित होती है, तो वे सक्रिय रूप से भाग लेते हैं । इस के साथ ही खर्सिसर की बेटी और बहू ने वाद्य यंत्र बजाना भी सीखा है । अगर समय मिलता है, तो परिवार के सदस्य साथ-साथ रहकर वाद्य यंत्र बजाते हुए गाते-नाचते हैं । यहां तक कि परिवार के सब से नन्हा सदस्य पांच वर्षीय पोता भी इस में भाग लेकर गाता है।