कुछ समय पहले चीनी ललितकला भवन में लगी《मध्य पूर्व का कबूतर—फंग शाओ-श्ये की तैल-चित्र प्रदर्शनी》पर चीन के ललितकला जगत औऱ दर्शकों ने काफी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं की। किसी प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर बने इन चित्रों का संग्रह चीनी ललितकला इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है।चित्रकार द्वारा भावभीनी तूलिका से अभिव्यक्त विश्व शांति के प्रति उन की इच्छा दर्शकों के मन में गूंज उठी।
चित्रकार फंन शाओ-श्ये की यह चित्र प्रदर्शनी 18 भीमकाय तैल-चित्रों से बनी है।ये सभी चित्र मध्य पूर्व में हुई प्रमुख घटनाओं से संबंधित हैं।उन में चाहे स्वर्गीय इजराइली प्रधान मंत्री ईज़ाक राबिन का चित्रण हुआ हो,या स्वर्गीय फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात का,या फिलिस्तीनी इस्लामिक प्रतिरोध आन्दोलन के आध्यात्मिक नेता इस्माइल यासिन का,या पूर्व इजराइली प्रधान मंत्री एरियल शैरोन का,या फिर किसी आम फिलिस्तीनी या इजराइली का ,हरेक चित्र की पृष्ठभूमि में शांति की आशा वाहक एक उड़ता कबूतर दिखाई देता है,जो लोगों को काफी प्रभावित करता है।
चीन के विख्यात ललितकला शोधकर्ता,《ललितकला》पत्रिका के प्रधान संपादक श्री वांग चुंग ने कहाः
"चित्रकार फंग शाओ-श्ये के इन चित्रों ने चीनी कलाकारों की मध्यपूर्व में शांति की स्थापना की तीव्र अभिलाषा व्यक्त की है। कला-स्तर और विषय दोनों की दृष्टि से वे बड़ी मुश्किल से मिलने वाली श्रेष्ठ कृतियां हैं। जिन चित्रकारों में चित्रण का मजूबत कौशल और सामाजिक दायित्व की भावना नहीं है,वे ऐसी श्रेष्ठ कृतियां नही बना सकते हैं। "
ये चित्र बनाने में फंग शाओ-श्ये ने दो साल लगाए। उन्हों ने कहा कि वह राजनीति में अपेक्षाकृत संवेदनशील हैं। उन के अनुभव समाज से प्राप्त हुए है औऱ इन अनुभवों से उन्हें ज्यादा सोचने की प्रेरणा मिली है। वह इस पक्ष में हैं कि किसी एक कलाकार को अपनी व्यावसायिक सफलता का पीछा करने के साथ-साथ समाज के प्रति अपने अनिवार्य दायित्व को भी ईमानदारी से निभाना चाहिए। इसी से ही वह सच्चे मायने में सफल कलाकार बन सकता है।
फंग शाओ-श्ये 1964 में दक्षिणी चीन के क्वांगतुंग प्रांत के एक किसान-परिवार में जन्मे थे। बचपन से ही चित्र बनाने में उन की बड़ी रूचि पैदा हुई।1983 में वह क्वांगतुंग के मशहूर चीनी मिट्टी कला कालेज में दाखिल हुए। पर उन्हों ने इस कला में ज्यादा रूचि नहीं ली और अपने अधिकांश समय को तैल-चित्र बनाने के अभ्यास में लगाया। कालेज से स्नातक होने के बाद वह फोशान शहर की एक सास्कृतिक संस्था में एक कार्यकर्ता बने, फिर 10 वर्षों बाद श्रेष्ठ प्रदर्शन से उन्हें इस संस्था का प्रधान नियुक्त किया गया। प्रशासनिक काम संभालने के दौरान भी उन्हों ने चित्र बनाने का अपना शौक कभी नहीं छोडा। 2003 में उन की प्रथम व्यक्तित्व तैल-चित्र प्रदर्शनी पेइचिंग स्थित चीनी ललितकला भवन में आयोजित हुई। इस में प्रदर्शित सभी चित्रों से वैश्वीकरण के दौरान चीनी सांस्कृतिक बाजार की स्थिति दर्शाई गई है। इस प्रदर्शनी से उन्हें नव यथार्थवादी आलोचक चित्रकार की संज्ञा दी गई।
2004 में फंग शाओ-श्ये फोशान शहर के सांस्कृतिक ब्यूरो के उपमहानिदेशक बने। कई महीनों बाद उन्हों ने एकाग्र रूप से चित्र बनाने के लिए इस ऊंचे पद से इस्तीफ़ा दे दिया।फिर चीनी कला अनुसंधान प्रतिष्ठान में अध्ययन के लिए पेइचिंग गए। वहां ललितकला के सिद्धांतों,खासकर तैल-चित्रण की तकनीकों का सुव्यवस्थित अध्ययन करने के साथ-साथ उन्हों ने अपने सृजन का नया लक्ष्य मध्यपूर्व के मुद्दे पर केंद्रित किया।उन्हों ने कहाः
"हो सकता है कि लम्बे समय से प्रशासनिक काम करने के कारण मैं राजनीति में संवेदनशील हूं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में खासी दिलचस्पी लेता हूं। अपने सृजन का नया लक्ष्य तय करने के बाद मेरा पूरा ध्यान मध्यपूर्व में होने वाली घटनाओं की ओर गया। मैं ने चाहा कि चित्रों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मध्यपूर्व में शांति की स्थापना के लिए कोशिश जारी रखने की अपील की जाए और फिलिस्तीन व इजराइल को वार्ता से द्विपक्षीय विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के प्रति जागृत किया जाए। मैं ने यह भी चाहा कि मध्यपूर्व के मुद्दे पर चित्र बनाने से दुनिया को यह बताया जाए कि चीनी राष्ट्र भी एक शांतिप्रिय़ राष्ट्र है। "
मध्यपूर्व के मुद्दे पर चित्र बनाने के दो सालों में श्री फंग शाओ-श्ये ने ढेरों संबंधित दस्तावेज पढे। उन्हों ने कहा कि किसी एक मुद्दे को गहराई से समझे बिना उस की सटीक रूप से कलात्मक अभिव्यक्ति करना नामुमकिन है। उन के लिए समझ ही सृजन की शक्ति है। वे किसी एक मुद्दे को कितनी गहराई से समझते हैं, उतनी ही सृजनशक्ति उन्हें मिलती है। सो, मध्यपूर्व के मुद्दे पर चित्र बनाने के दौरान वह अक्सर खाना भूलकर दिन-रात एक करके संबंधित दस्तावेजों का अध्ययन करते थे,ताकि वह कोई न कोई नयी चीज खोजकर सृजन के प्रति अपने उत्साह को ठंडा पड़ने से रोक सकें।
《शांति की किरण 》नामक एक चित्र में उन्हों ने मुंह में औलिवल की टहनी लिए एक कबूतर के कोहरे से छिटककर सूर्य की एक किरण की ओर उडने के दृश्य का चित्रण किया है।लेकिन यह किरण आम तौर पर लोगों को सुनहरी नहीं,बल्कि थोड़ी सी धुधली लगी है,जो दर्शकों को भारी एहसास कराती है। यह चित्र देखकर यह प्रश्न जरूर उठता है कि शांतिवाहक कबूतर मध्यपूर्व के आकाश में आखिरकार कितनी दूर तक उड़ान भर सकता है ?
इस चित्र की चर्चा करते हुए फंग शाओ-श्ये ने कहा कि मैं ने इसलिए सूर्य की किरण को थोडा सा धुंधला बनाया,क्योंकि मैं समझता हूं कि मध्यपूर्व की स्थिति में अब भी अनेक अस्थिर और अस्पष्ट तत्व मौजूद है,जो शांति की कोशिशों को प्रभावित करते हैं। मध्यपूर्व में शांति की स्थापना के लिए औऱ ज्यादा प्रयास किए जाने की जरूरत है।
|