1140 में येनछङ (वर्तमान हनान प्रान्त में) नामक स्थान पर हुई एक घमासान लड़ाई में य्वे फेइ की सेना ने किन की सर्वश्रेष्ठ सेना को पूरी तरह पराजित कर दिया।
इस विजय से प्रोत्साहित होकर य्वे फेइ की सेना और आगे बढी तथा चूश्येनचन नामक स्थान (वर्तमान हनान प्रान्त के खाएफङ शहर के नजदीक) तक पहुंच गई।
उसी समय किन सेना में फूट पड गई और किन विरोधी स्वयंसेवकों ने उसकी रसद पंक्ति काट दी तथा प्रधान किन सेनापति ऊचू ने खाएफङ छोड़ने और उत्तर की ओर भागने की तैयारी कर ली।
ठीक इसी मौके पर जबकि दक्षिणी सुङ की सेनाएं किन विरोधी संघर्ष में अन्तिम विजय प्राप्त करने ही वाली थीं, आत्मसमर्पणवादी गुट ने, जिस की अगुवाई सम्राट काओचुङ और प्रधान मंत्री छिन ह्वेइ करते थे, इस डर से कि कहीं किन विरोधी संघर्ष में जन सशस्त्र शक्तियां अपनी ताकत बढाकर खुद उनके ही शासन के लिए खतरा न बन जाएं।
किन सेनाओं से सुलह करने का निश्चय किया और य्वे फेइ को सेनापति पद से हटा दिया तथा बाद में उसकी हत्या करवा दी।
1141 में दक्षिणी सुङ ने किन से समझौता किया, जिस के अन्तर्गत सुङ और किन की सीमाएं पूर्व में ह्वाएहो नदी तक और पश्चिम में तासानक्वान दर्रे (वर्तमान शेनशी प्रान्त के पाओची शहर के दक्षिण पश्चिम) तक निर्धापत्य मान लिया और उसे हर साल 2 लाख 50 हजार ल्याङ चांदी और 2 लाख 50 हजार थान रेशमी कपडा भेंट में देना स्वीकार कर लिया।
इस प्रकार इन दोनों राजवंशों के बीच परस्पर विरोध और मुकाबले की स्थिति पैदा हो गई।
मंगोल जाति चीन की एक अल्पसंख्यक जाति है, जो प्राचीन काल से यहां रहती आई है।
शुरु शुरु में यह जाति अड़कुन नदी के पूर्व के इलाकों में रहा करती थी, बाद में वह वाह्य हिङकान पर्वतश्रृंखला और आलथाए पर्वतश्रृंखला के बीच स्थित मंगोलिया पठार के आरपार फैल गई।
मंगोल जाति के लोग खानाबदोशों का जीवन व्यतीत करते थे और शिकार , तीरंदाजी व घुङसवारी में बहुत कुशल थे। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके मुखिया तेमूचीन ने तमाम मंगोल कबीलों को एक किया।
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