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(GMT+08:00) 2007-07-06 16:58:28    
सिन्चांग के तुरफान क्षेत्र के परम्परागत संगीत मुकाम का संरक्षण

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चीन के सिन्चांग के वेवूर लोग बहुल क्षेत्र में वेवूर जाति का परम्परागत संगीत मुकाम सदियों से प्रचलित आया है । मुकाम का मतलब अरबी भाषा में स्थल, स्थान और कानून भी होता है । संगीत के रूप से मुकाम का मतलब है शास्त्रीय लोक संगीतों का समूह । काश्गर के वेवूर जाति में लोक संगीत के रूप में बारह मुकामों की उत्पत्ति हुई है , जिन में वेवूर जाति के गीत संगीत , नृत्य और वाद्य शामिल है और एकीकृत रूप में प्रस्तुति की विशेषता लिए हुई है । यह बारह मुकाम वेवूर जाति के संगीत का मातृ रूप है और चीनी राष्ट्र की संगीत संस्कृति की श्रेष्ठ खजाना है ।

मुकाम गाना , नृत्य , काव्य और धुन को एक में मिला देने वाली कला विधि है , इस के बारह उच्च कोटि के मुकाम सब से श्रेष्ठ माने जाते हैं , जो बारह मुकाम के नाम से मशहूर है । सिन्चांग के बारह मुकाम को विश्व गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है । बारह मुकामों में से तुरफान मुकाम सब से उल्लेखनीय है । वह सिन्चांग वेवूर जाति की मुकाम विधि का एक अहम अंग है । तुरफान मुकाम के भी बारह भाग होते हैं , हर भाग के आठ अंग होते हैं , यह मुकाम तंतु व बाजा दोनों प्रकार के वादन में प्रस्तुत होता है और मुख्यतः तुरफान क्षेत्र में प्रचलित है ।

तुरफान मुकाम संगीत सुनने में तुरफान मुकाम के संगीत का लय व राग उल्लासपूर्ण और खुशगवार सुनाई पड़ता है। तुरफान मुकाम विश्व में सुरक्षित अखंड रूप में तथा प्रचूर विषयों का सब से प्राचीन शास्त्रीय गीत है । लुखछिंग कस्बा तुरफान मुकाम का उत्पति स्थल है । यह कस्बा आज से दो हजार साल पहले प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित एक अहम कस्बा था । इसलिए तुरूफान मुकाम का विशेष ऐतिहासिक महत्व और समृद्ध सांस्कृतिक तत्व होता है ।

तुरूफान मुकाम की यह ज्वलंत विशेषता देखने को मिलती है कि ढोल के ताल पर नाच का थिरकन होता है और ढोल के ताल के परिवर्तन के साथ नाच बदल जाता है । वर्तमान में लुखछिंग कस्बे में सिन्चांग का प्रथम बारह मुकाम कला संरक्षण व प्रचार प्रसार केन्द्र स्थापित हुआ है और इस के चलते यह प्राचीन कस्बा अपने अलग पहचान वाले संगीत से असंख्य चीनी व विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है ।

मुकाम मौखिक वाचन के रूप में प्रचलित होता है , यदि उन्हें दीर्घकाल के लिए सुरक्षित किया जाना हो और पीढ़ियों से विरासत में मिलने देना हो , तो उन के संगीत और बोल को लिखित रूप देना चाहिए और लोक वाद्य यंत्र बजाने की कला पीढी दर पीढी सिखाया जाना चाहिए । लुखछिंग कस्बा इस प्राचीन जातीय कला को बहुत मूल्यवान समझता है और इस के संरक्षण की भरसक कोशिश करता है । कस्बे के अधिकारी श्री हामतू ने कहाः

कस्बा अपने सांस्कृतिक स्टेशन के माध्यम से लोक कलाकारों को एक जगह इक्टठे कर अभ्यास के लिए स्थल प्रदान करता है और उन्हें मुकाम का कार्यक्रम पेश करने तथा शिष्यों को सिखाने के लिए प्रेरित करता है । स्थानीय सरकार हर साल पांच हजार से दस हजार य्वान तक का अनुदान करती है , जिसे वाद्य यंत्र व कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिए पोशाक खरीदने में इस्तेमाल किया जाता है । हाल में कस्बे और जिले की सरकारों ने पांच लाख य्वान की राशि मुहैया कर एक किसान चरवाह सांस्कृतिक स्कूल खोलने का निश्चय किया , जहां लोक कलाकारों के कला प्रदर्शन और प्रशिक्षण के काम को सुव्यवस्थित कर चलाया जाएगा और प्रस्तुति व प्रशिक्षण को बेहतर बनाने के लिए अच्छा स्थान प्रदान किया जाएगा।

इस साल 51 वर्षीय लोक कलाकार तुएर्क्सन . सिमायी तुखछिंग कस्बे के बारह मुकाम कला के उत्तराधिकारी हैं । वर्ष 2000 में उन्हों ने अन्य दो मुकाम गुरू के साथ निमंत्रण पर ब्रिटेश के रायल थिएटर में मुकाम का प्रोग्राम पेश किया , उन्हों ने सिन्चांग के विशेष वाद्यों से जो लयदार सुरीली धुन बजायी और उत्कृष्ट वादन कौशल का प्रदर्शन किया था , उसे ब्रिटिश महा रानी एलीजापाई की भूरि भूरि प्रशंसा मिली । श्री सिमायी ने कहाः

वर्ष 1998 से हमारे संगीत दल ने प्राइमरी स्कूली छात्रों से उत्तराधिकारी चुनना शुरू किया , अब हमारे दस से ज्यादा शिष्य हो गए । मैं अकसर काऊंटी और प्रिफेक्चर द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेता हूं , हमारे कला प्रदर्शन का जोशीला स्वागत किया गया । उल्लेखनीय है कि दो साल पहले मैं ने कस्बे के एक दूसरे लोक कलाकार श्री आजीज नियाज के साथ सिन्चांग की वेवूर जाति की कला मंडली के सदस्य के रूप में ब्रिटेन में जा कर कला प्रस्तुति की , हमारे सात लोगों के छै शो हुए और भारी सफलता प्राप्त हुई । हर कार्यक्रम की समाप्ति पर ब्रिटिश दर्शकों ने बड़े जोश के साथ हमारा आलिंगन किया , ब्रिटेन की महा रानी ने हमारी कला मंडली से स्नेहपूर्ण मुलाकात की थी ।

मैमैती वुलायन भी एक बारह मुकाम का प्रचारक है । उन के प्रवर्तन , संगठन तथा नेतृत्व में लुखछिंग कस्बे ने वर्ष 1987 में अपना प्रथम मुकाम कला दल गठित किया । दो साल पहले जब उन्हों ने पाया कि कुछ विशेषज्ञों द्वारा संकलित तुरफान मुकाम में केवल 11 संगीत मालाएं शेष हैं , तो उन्हें बड़ी दुख हुई । दो सालों के अथक प्रयासों से उन्हों ने मुकाम के बारहवीं संगीत माला का पता लगाया और संकलन भी किया , इस तरह तुरूफान मुकाम ग्रंथ की कमी की भरपाई की गयी ।

मुकाम को मूल्यवान सांस्कृतिक विरासत के रूप में आगे संरक्षित कर रखने तथा विकसित करने के लिए लुखछिंग कस्बे के ऊपरी नेतृत्वकारी निकाय श्यानस्यान काऊंटी सरकार ने अगले साल मुकाम सड़क का निर्माण करने की योजना बनायी , ताकि वहां के निवासी और पर्यटक अपनी आंखों से असली मुकाम जायजने का मौका मिले । श्यानस्यान काऊंटी की मुकाम सड़क वर्तमान एकता सड़क के आधार पर बनायी जाएगी , जिस की कुल लम्बाई दो किलोमीटर होगी । सड़क को बारह मुकाम के मुताबित बारह भागों में बांटा जाएगा , हरेक भाग में मुकाम में वर्णित कहानी के आधार पर समान शैली का वास्तु निर्माण किया जाएगा । मुकाम सड़क के दोनों ओर जातीय रंगढंग का वाणिज्य क्षेत्र स्थापित किया जाएगा , रोज वहां मुकाम के संगीत प्रसारित किए जाएंगे , ताकि स्थानीय निवासियों और पर्यटकों को खरीद फरोख्त के दौरान मुकाम संस्कृति से प्रभावित व आनन्दित होने का मौका मिल सके और मुकाम कला का व्यापक प्रचार प्रसार किया जा सके ।