प्रिय मित्रो , क्या आप को मालूम है कि चीन के आन ह्वी प्रांत में स्थित चियु ह्वा पर्वत चीन के चार प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक पर्वतों में से एक माना जाता है । चियु ह्वा पर्वत पर बहुत से मंदिर हैं और उस की चोटी खिले हुए कमल के फूल सी लगती है , इसलिये चियु ह्वा पर्वत कमल फूल के दूसरे नाम से भी जाना जाता है । आज के चीन के भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को इसी सुप्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक पर्वत के दौरे पर ले चलते हैं ।
चियु ह्वा पर्वत मध्य चीन में स्थित आन ह्वी प्रांत में अवस्थित है । उस का कुल क्षेत्रफल 120 वर्ग किलोमीटर है । चियु ह्वा पर्वत में चोटियों की भरमार है और सभी चोटियां बहुत खूबसूरत दिखायी देती हैं । चियु ह्वा पर्वत पर्यटन विकास कम्पनी के महा निदेशक श्री क्वे लिन ने इस का परिचय देते हुए कहा कि प्राचीन काल से ही चियु ह्वा पर्वत चीन के प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक पर्वतों में से एक रहा है और वह चीन के अहम प्राकृतिक रमणीक पर्यटन स्थलों में भी एक है ।
उन का कहना है कि चियु ह्वा पर्वत चीन के चार सुप्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक पर्वतों में से एक रहा है। चियु ह्वा पर्वत प्राकृतिक रमणीक पर्यटन स्थल के कारण भी बहुत प्रसिद्ध है । इस पर्वत पर कुल 99 गगनचुम्बी अनोखी चोटियां हैं। चियु ह्वा पर्वत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पर्वत भी है । इस पर्वत पर छोटे बड़े मंदिरों की कुल संख्या 94 है । साल भर में इन प्राचीन छोटे-बड़े मंदिरों में घंटियों की आवाजें सुनाई पड़ती रहती हैं, धूप बत्तियों का धूआं ऊपर उठता दिखाई नजर आता है और पूजा करने वाले बौद्ध अनुयायियों और पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है ।
श्री क्वी लिन ने आगे कहा कि चियु ह्वा पर्वत के प्रसिद्ध होने का कारण इस के अद्भुत मनोहर प्राकृतिक दृश्य के अलावा इस की समृद्ध प्राचीन बौद्ध धार्मिक संस्कृति भी है । कहा जाता है कि चियु ह्वा पर्वत कसितिगर्भ बौधिसत्व का सूत्र सुनाने का स्थल है । क्सितिगर्भ चीनी बौद्ध धर्म के चार प्रमुख बौधिसत्वों में से एक है। बौद्ध धर्म के अनुसार उन में भूमि की तरह बेशुमार दयालु बीज गर्भित हैं । पर चियु ह्वा पर्वत क्सितिगर्भ बौधिसत्व का सूत्र पढ़ने और सुनाने का स्थल कैसे बना । चियु ह्वा पर्वत बौद्ध धार्मिक कालेज के प्रोफेसर श्री फी य्ये छाओ ने इस संदर्भ में एक कहानी सुनाते हुए कहा कि कहा जाता है कि ईस्वी 719 में एक भिक्षु चियु ह्वा पर्वत पर आ पहुंचे । वे तत्कालीन कोरियाई प्रायद्वीप के सिन लो राज्य के राजकुमार थे और उन का नाम था किम चिओ चो । वे बचपन से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा प्राप्त करने लगे थे। बाद में उन्हों ने बड़ी मुश्किल से समुद्र पार कर चीन के अनेक प्रसिद्ध रमणीक पर्वतों व नदियों का दौरा किया और अंत में सूत्र सुनाने के स्थल के रूप में चियु ह्वा पर्वत को चुना । वे चियु ह्वा पर्वत पर 75 साल तक बौद्ध धर्म का अध्ययन करने में जुटे रहे और 99 साल की उम्र में उन्होंने निर्वाण ले लिया । प्रोफेसर फी ने कहा कि उन के निर्वाण के बाद लोगों को पता चला कि उन का शरीर सड़ने के बजाए अच्छी तरह से सुरक्षित हो गया है । यह बड़े कमाल की बात है । उन के शिष्यों को उन का सन्यास लेने और बौद्ध सूत्रों का अध्ययन करने के तौर तरीकों तथा उन की रचनाओं पर अनुसंधान करने के बाद यह पता चला कि वे बौद्ध सूत्रों में वर्णित क्सितिगर्भ बौधिसत्व से पूरी तरह मेल खाते हैं । बौद्ध सूत्रों में यह वर्णित है कि क्सितिगर्भ बौधिसत्व हमारी दुनिया में है , और तो और उन की कसम और क्सितिगर्भ सूत्र में अंकित क्सितिगर्भ बौधिसत्व की कसम एकदम समान है। इसलिये लोगों का मानना है कि वे क्सितिगर्भ बौधिसत्व का अवतार ही हैं । इस तरह हमारा चियु ह्वा पर्वत स्वभावतः क्सितिगर्भ बौधिसत्व का सूत्र पढ़ने और सुनाने का स्थल बन गया ।
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