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(GMT+08:00) 2007-06-25 17:10:42    
चीन की प्राचीन कविताओं को गाने वाली सुप्रसिद्ध गायिका सुश्री वांग सू-फन

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चीन में प्राचीन कविताएं अपनी विशेष शैली के कारण परंपरागत संस्कृति के खजाने में सुरक्षित एक रत्न की तरह मानी गई हैं। प्राचीन चीनी कविताओं की मूलतः अपनी-अपनी धुनें होती थी,सो वे गाई जा सकती थीं। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ उन की धुनें विलुप्त हो गईं औऱ अंत में वे गाए जाने के बजाए पढ़कर सुनाई जाने लगीं। इधर के कुछ वर्षों में चीन के कई संगीतकारों ने खुदाई में प्राप्त संबंधित सामग्री के अनुसार इन कविताओं की धुनें संयोजित कर इन्हें फिर से गाना शुरू किया है।आज के पॉप-गीत संगीत के दौर में विलक्षण धुनों में प्राचीन कविताएं सुनना अपने आप में एक आनन्ददायक अनुभव है।

62 वर्षीय वांग सु-फन चीनी संगीत प्रतिष्ठान में प्रोफेसर हैं।वह बचपन से ही गाना गाने में विशेष रूचि लेती रही हैं। प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के दौरान ही उन्हों ने अपने मन में एक श्रेष्ठ गायिका बनने का सपना संजो लिया था।उन्हों ने कहाः

"मेरी मां को भी गीत गाने से लगाव है। उन की खुली और भरी हुई आवाज है।उन के जीन ग्रहण करने की वजह से मुझे भी अच्छा गला मिला है। इसलिए बाल्यावस्था से ही मैंने भी गीत गाना शुरु कर दिया था।प्राइमरी स्कूल में संगीत अध्यापक मुझे गाना गाने का विशेष प्रशिक्षण दिया करते थे "

1961 में वांग सू-फन संबंधित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर चीनी संगीत प्रतिष्ठान के अधीनस्थ मीडिल स्कूल में भर्ती हुई। 3 सालों की विशेष गायन-संगीत शिक्षा और सख्त ट्रेनिंग पाने के बाद उन्हें 1964 में बिना किसी परीक्षा में भाग लिए सीधे चीनी संगीत-प्रतिष्ठान में दाखिला मिल गया और उन्हों ने यूरोपीय गायन शैली का अध्ययन शुरू किया। प्रतिष्ठान की एक छात्रा होने के दौरान भी उन्हें तत्कालीन मशहूर चीनी गायकों व गायिकाओं के साथ कई यूरोपीय गीतनाटकों में अभिनय करने के मौके मिलते रहे। प्रतिष्ठान में अध्ययन के तीसरे वर्ष में वह अपने प्रोफेसर की सलाह पर दक्षिणी संगीत सीखने के लिए दक्षिण पूर्वी चीन के फूचान प्रांत चली गईं।

दक्षिणी संगीत चीन में आज तक अच्छी तरह सुरक्षित एक प्रकार का प्राचीन चीनी संगीत है,जो मुख्यतः चीन के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित फूचान प्रांत के प्राचीन नगर छ्वानचो में प्रचलित है और इस में प्राचीन कविताओं को संयोजित किया जाता है। इस संगीत की धुनों में ज्यादा नम्रता और लचाव-घुमाव है। इस से जुडे गीत गाने का तरीका यूरोपीय गायन शैली से बिल्कुल भिन्न है।यह वांग सु-फंग के लिए एक चुनौती था।उन्हों ने कहाः

"छ्वानचो की दक्षिणी संगीत मंडली देश भर में काफी प्रसिद्ध है। उस के नेता समेत सभी सदस्यों ने हमारा वहां जाने पर बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया।मंडली के एक सुप्रसिद्ध गायक मेरे अध्यापक बने।उन्हों ने राष्ट्र के इस विरल संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए पूरे मन से मुझे सिखाना शुरू किया और मैं ने बड़ी जिज्ञासा और एकाग्रता से सीखना शुरू किया।एक महीने में ही मैं ने इस संगीत में महारथ हासिल कर ली।"

वर्ष 1984 में छ्वानचो शहर में दक्षिणी संगीत पर एक अंतर्राष्ट्रीय संगीत समारोह आयोजित हुआ,जिस में मलेशिया,सिंगापुर,हांगकांग,मकाओ औऱ थाइवान आदि देशों व क्षेत्रों के बड़ी संख्या में संगीतकारों ने हिस्सा लिया। वांग सु-फन ने अपने विशुद्ध और परिपूर्ण गायन से समारोह में धूम मचा दी।तब से उन्हें दक्षिणी संगीत की रानी की संज्ञा मिली।

प्राचीन चीनी कविताओं को और अच्छी तरह प्रस्तुत करने के लिए उन्हों ने प्राचीन चीनी कविताओं के अनुसंधान में कामयाबी हासिल कर लगभग सभी विशेषज्ञों को अपने अध्यापक बनाया और कई किस्मों के चीनी ऑपेरा के उस्तादों से विशेष गायन-शैलियां सीखीं।जो उन्हें श्रेष्ठ लगा ,उन्हों ने उसे अपने गायन-अभिनय में शामिल कर दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। उन की विशेष गायन-शैली को विशेषज्ञों और दर्शकों की खूब प्रशंसा मिली है।

पिछले कोई 20 वर्षों में वांग सु-फन ने चीनी संगीत प्रतिष्ठान में अध्यापन का काम करने के साथ-साथ करीब 200 प्राचीन चीनी कविताओं का मंचन भी किया है। वह प्रतिवर्ष अपने एक निजी संगीत-समारोह का आयोजन करती हैं और हर बार अपनी नयी रचनाओं से दर्शकों को ताजगी का एहसास करवाती हैं।समाज के विभिन्न जगतों ने उन्हें सच्ची कलाकार कहकर उन्हें सराहा है।

वांग सु-फन का विचार है कि प्राचीन चीनी कविताएं चीनी राष्ट्र की सांस्कृतिक संपत्ति है।उस की रक्षा और विकास करने का खासा महत्व है।उन का कहना है कि वह प्राचीन चीनी कविताओं को विद्यार्थियों को अच्छी तरह सिखाकर अपने शिक्षा-कार्य को बखूबी अंजाम देना चाहती हैं।ये कविताएं अपने विशाल आध्यात्मिक निहितार्थ होने के कारण दिलों को कहीं गहराई में जाकर छूती हैं। इसलिए वह समझती हैं कि इस तरह के गीत-संगीत को विरासत के रूप में ग्रहण और विकसित न करना चीनी सांस्कृतिक इतिहास में कलंक लगाने जैसा अपराध है।इस से कोई भी कलाकार और शिक्षक हमेशा परहेज करेगा।