श्री अयुब सिन्चांग के ऊरूमुची शहर के दक्षिण आरताओछो बाजार में खुले एक रेस्ट्रां के मालिक हैं । उन के रेस्ट्रां की खाने की चीजें सस्ती हैं और स्वादिष्ट होती हैं । इस के लिए अयुब का रेस्ट्रां शहर में बहुत मशहूर और लोकप्रिय रहा है । श्री अयुब उदार , उत्साहपूर्ण और दूसरों की मदद करना बहुत पसंद करते हैं । जब कभी रेस्ट्रां में भोजन करने आए ग्राहक के पास बिल भुगतान के लिए पैसा काफी नहीं है , तो अयुब अपने पैसे से उस का बिल भर देते है । उन का कहना है कि दूसरों की मदद करना हरेक लोग के जीवन का एक अहम अंग है ।
श्री अयुब ने कहा कि बचपन में मेरे मां बाप हम भाइयों को यह शिक्षा देते थे कि हम किसी भी प्रकार का बुरा काम न करें और दूसरों के साथ व्यवहार के समय उन्हें नुकसान न पहुंचा दें । उस समय मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी , घर के तीन भाई अकसर भूखों से परेशान होते थे । हालांकि घर बहुत गरीब था, पर हम तीनों भाई मां बाप की हिदायत को हमेशा याद की गिरफ्त में रखते थे और कितनी भी बड़ी मुश्किल क्यों न आयी , तो भी हम महज अपने परिश्रम से जीवन को सुधारने की कोशिश करते थे ।
श्री अयुब ने अपनी दसेक साल की उम्र में घर से बाहर चल कर मजदूरी करना शुरू किया , कड़ी मेहनत से वे धनी बने , धनी होने के बाद भी वे अपने गांव वासियों को नहीं भूले और अकसर उन्हें पैसा कमाने में मदद देते रहे । यदि किसी के जीवन में कठिनाई आयी , तो वे जरूर मदद देने के लिए पेश आए । वे हमेशा दूसरों को पैसा और सामग्री उधार देने को तैयार है । वर्ष 1989 में एक बार उन्हें पता चला कि उस के बेटे के स्कूल ऊरूमुची शहर के नम्बर 28 प्राइमरी स्कूल ने शिक्षा के लिए एक 70 हजार य्वान का उपकरण खरीदना चाहा , लेकिन 20 हजार य्वान की कमी के कारण खरीद नहीं पाया , तो अयुब ने तुरंत दो हजार य्वान का चंदा दिया और 18 हजार य्वान उधार के रूप में मुहैया किया । बेटे के इस स्कूल से स्नातक होने के बाद भी अयुब स्कूल के साथ संपर्क कायम रखे हुए है और हर साल इस स्कूल को चंदे के रूप में पैसा और साज सामान प्रदान करते है। वे गरीब छात्रों को मदद देने में भी हर वक्त सामने आते हैं। उन्हों ने कहाः
यह बहुत खराब बात है कि किसी भी जाति के पास शिक्षा का अभाव होता है । यह बड़ी खेद की बात है कि बच्चे घर की गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाता । मैं घर का चिराग कहने वाले बच्चों को अनपढ़ होने नहीं दूंगा । मेरी अपनी शिक्षा का स्तर नीचा है , मैं कम शिक्षा मिलने की हानि जानता हूं , इसलिए मैं गरीब बच्चों को स्कूल जाने के लिए मदद देने की हर संभव कोशिश करता हूं ।
पिछले साल की गर्मियों में ऊरूमुची के नम्बर 38 मीडिल स्कूल के अध्यापकों ने अयुब को बताया कि स्कूल के दो भाइयों , जिन के मां बाप दोनों स्वर्गवास चले गए है , के लिए छुट्टी के दौरान ठहरने की जगह नहीं है , तो अयुब तुरंत दोनों भाइयों को अपने घर ले आए और घर में उन के रहन सहन का बंदोबस्त किया । जब स्कूल का नया सत्र शुरू हुआ , तब दोनों बच्चे स्कूल के बोर्डिंग छात्रवास में रहने के लिए दाखिला किए गए ।
एक बात थी कि हाई स्कूल में पढ़ने वाले बेटे ने पिता अयुब को बताया कि उस के एक सहपाठी के परिवार के छै सदस्य कार्बन मोनोक्सिड से विषाक्त हो गए और सभी अस्पताल में भर्ती किए गए । यह खबर मिलने के बाद श्री अयुब हर रोज खाद्य पदार्थ ले कर उन्हें देखने अस्पताल जाया करते थे और कभी कभी चीजें खरीदने के लिए उन्हें कुछ पैसा छोड़ कर देते थे । इस पर श्री अयुब ने कहाः
किसी भी को कठिनाई झेलना पड़ता है . कठिनाइयों से ग्रस्त वक्त उसे दूसरों की मदद की जरूरत है । पैसा सब कुछ नहीं है , अहम बात सदभाव और भाइचारी है , लोगों के लिए आत्मीयता सब से महत्वपूर्ण होती है ।
चीन के परम्परागत वसंत त्यौहार हो , या मुस्लिम पर्व कुर्बान और ईद हो , हर पर्व त्यौहार के मौके पर श्री अयुब अपने रिहाइशी बस्ती के कार्यालय को चावल , आटा और खाद्य तेल मुफ्त मुहैया करते हैं , ताकि कार्यालय के लोग इन चीजों को बस्ती के गरीब परिवारों में बांट दें और गरीब परिवार खुशी से त्यौहार मना सकें । इस पर श्री अयुब ने कहाः
त्यौहार पर्व के समय गरीब पड़ोसी परिवारों को कुछ न कुछ रोजमर्रे की चीजें देना मेरी आदद बन गया है , बस्ती के कार्यालय के लोग बस्ती वासियों से परिचित रहते हैं , उन के माध्यम से गरीब लोगों को कुछ मदद देना आसान काम है । जब दूसरे को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , तो उसे मदद देने आगे आना मानव की एक जन्मगात भावना है , हमें दूसरों की मदद करने के लिए थोड़ी शक्ति अर्पित करना चाहिए ।
ऊरूमुची शहर के ह फिंग मोहल्ले के कार्यालय के तहत कुय्वानकांग बस्ती के मुखिया श्री ओस्मान वर्ष 2001 में बस्ती कार्यालय में नियुक्त होने के बाद श्री अयुब से परिचित हुऐ , वे श्री अयुब की दूसरों को मदद देने की भावना के प्रशंसक हैं , उन की चर्चा में श्री ओस्मन ने कहाः
वर्ष 2001 में मैं इस बस्ती के कार्यालय में काम करने आया था , बस्ती कार्यालय के कामकाज के कारण मैं श्री अयुब से मिला और सुपरिचित भी हो गया । इधर के सालों में हर त्यौहार के समय वे जरूर अपने कुछ पैसे निकाल कर या चावल , आटा और खाद्य तेल खरीद कर बस्ती कार्यालय के यहां लाते है और कार्यालय के कर्मचारियों के माध्यम से मदद के जरूरी लोगों को दिलाते हैं । वे खुद मदद लेने वालों के घर नहीं जाते हैं और हम लोगों के माध्यम से यह काम करवाते है , इसलिए मदद मिलने वालों को पता नहीं चला कि अखिरकार किस ने उन्हें मदद दी है । श्री अयुब हमारी बस्ती के आदर्श निवासी हैं और हमारे लिए सीखने लायक हैं ।
श्री अयुब के साथ एक ही बस्ती में रहने वाली ह्वी जाति की महिला सुश्री मिहाईयान ने उन के बारे में कहाः
वर्ष 2004 के वसंत त्यौहार व कुर्बान पर्व के समय हमें अयुब की सहायता से चावल , आटा और खाद्यतेल मिला , हमें बड़ी खुशी हुई । हर साल बस्ती का कार्यालय और श्री अयुब हमें मदद देने आते हैं , पहले हम उन से नहीं मिल पाते थे , लेकिन उन की दयालु भावना के हम बहुत आभारी हैं ।
अयुब के बच्चे भी उन की भावना से प्रभावित हो कर दूसरों को मदद देना पसंद करते हैं । अयुब के बस्ती में 80 वर्षीय नेत्रहीन बुजुर्ग श्री माइमट रहते है , वे बहुत गरीब है और जीवन में बहुत सी कठिनाइयां होती हैं । अयुब अपने तीन बेटों को बारी बारी से इस बुजुर्ग नेत्रहीन व्यक्ति को मदद देने के लिए भेजते हैं और उन्हें खाना भेजते है , यह मदद रोज होती है , इस बुजुर्ग के बस्ती से चले जाने तक यह मदद जारी रही ।
अपने पति की दूसरों को मदद देने के निस्वार्थ भावना का उन की पत्नी नरुहान बराबर समर्थन करती आयी है । उन्हों ने कहाः
हमें शादी हुए तीस से ज्यादा साल गुजरे हैं । उन्होंने बेशुमार लोगों को मदद दी है , वे एक दयालु आदमी है , इस प्रकार के परोपकार पति पर मैं बहुत संतुष्ट हूं . उन की भांति मैं भी दूसरों को मदद देती हूं और उन के काम में हाथ बांटती हूं । दूसरों को मदद देने से मुझे बड़ा आनंद मिलता है ।
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