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(GMT+08:00) 2007-06-20 16:02:14    
तिब्बत में आर्थिक औऱ सामाजिक विकास की उम्दा स्थिति बनी रही

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चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अध्यक्ष श्री श्यांगबाफिनछो ने 20 तारीख को पेइचिंग में एक न्यूज़ ब्रीफिंग में कहा कि इधर के कई वर्षों में तिब्बत में आर्थिक और सामाजिक विकास तेजी से हुआ है और किसानों व चहवाहों के जीवन में बड़ा सुधार आया है।वर्तमान में वहां आर्थिक विकास का सब से तेज गति से हो रहा है और जनता को सर्वाधिक लाभ मिलता रहा है।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश दक्षिण पश्चिमी चीन में करीब 12 लाख वर्गकिलोमीटर विशाल भूमि पर पसरा है।उस की आबादी 28 लाख 10 हजार है,जिस का अधिकांश भाग तिबब्तियों का है।वर्ष 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना से पूर्व वहां की आर्थिक व सामाजिक स्थिति काफी पिछड़ी थी और जनजीवन बहुत कठिन था।

चीन लोक गणराज्य स्थापित होने के बाद केंद्र सरकार ने तिब्बत के विकास का जोरदार साथ दिया।केंद्र सरकार ने तिब्बत के विकास के हित में अनेक उदार नीतियां तय की हैं और संबद्ध कदम उठाए हैं,साथ ही भारी धनराशि लगाकर तिब्बत को सतत वित्तीय सहायता भी दी है।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अध्यक्ष श्री श्यांगबाफिनछो ने कहा कि केंद्र सरकार के समर्थन और तिब्बत की विभिन्न जातियों की जनता के समान प्रयासों से तिब्बत का तेज विकास हुआ है।उन का कहना हैः

"वर्ष 2006 में तिब्बत में जीडीपी 29 अरब य्वान से ज्यादा हो गया।उस में लगातार छठे वर्ष 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई।प्रतिव्यक्ति जीडीपी 10 हजार य्वान के ऊपर रहा।कहा जा सकता है कि इस समय तिब्बत में आर्थिक विकास सब से बड़ी तेजी से हो रहा है और लोगों को ठोस लाभ मिलता रहा है। "

श्री श्यांगबाफिंगछो के अनुसार वर्ष 2006 से 2010 तक के दौरान केंद्र सरकार तिब्बत में ढांचागत सुविधाएं बनाने और किसानों व चरवाहों के जीवन एवं उत्पादन के हालात को सुधारने में 70 अरब य्वान से भी अधिक पूंजी निवेश करेगी।इस से तिब्बत में नए विकास की पुख्ता नींव डाली जाएगी।

कुछ लोगों के यह कहने पर कि केंद्र सरकार द्वारा तिब्बत में पूंजीनिवेश से तिब्बती संस्कृति में परिवर्तन आएगा और तिब्बत का हान जातीयीकरण हो सकता है,श्री श्यांगबाफिंगछो ने कहा कि तिब्बत की वर्तमान जनसंख्या की प्रणाली को देखा जाए,तो 92 प्रतिशत लोग तिब्बती हैं,बाकी 3 प्रतिशत अन्य अल्पसंख्यक जातियों के और केवल 5 प्रतिशत लोग हान जाति के हैं।सो कथित तिब्बत का हान जातीयीकरण बिल्कुल बेबुनियाद है।

तिब्बत में परंपरागता उत्सव,रीति-रिवाज और रहन-सहन यतावत बरकरार हैं।तिब्बती भाषा और लिपि का आज भी तिब्बत में व्यापक तौर पर प्रयोग हो रहा है।स्कूलों में तिब्बती भाषा और हान भाषा दोनों में अध्यापन किया जा रहा है।धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता को पूर्ण संरक्षण मिला है।सारे तिब्बत में धार्मिक स्थलों की संख्या 1700 से अधिक है और मठों में रहने वाले कोई 40 हजार बौद्ध-भिक्षु विभिन्न धार्मिक गतिविधियां कर रहे हैं।केंद्र सरकार द्वारा तिब्बत में जो धनराशि लगाई गई हैं,उस का स्थानीय संस्कृति के संरक्षण में भी इस्तेमाल किया गया है।विश्व सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल पोताला महल के जीर्णौद्धार और संरक्षण में केंद्र सरकार की ओर से ही मिली मोटी रकमों का प्रयोग किया गया है।पोताला महल,लोबुलिनगा पार्क और सागा मठ जैसे मात्र 3 प्रमुख सांस्कृतिक अवशेषों के जीर्णोद्धार में केंद्र सरकार ने लगभग 30 करोड़ य्वान लगाए हैं।

तिब्बत में व्यापक किसानों और चरवाहों ने भी केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक व वित्तीय सहायता का सीधा फायदा प्राप्त किया है।श्री श्यांगबाफिनछो ने कहाः

"केंद्र सरकार के पूजीनिवेश से तिबब्त में सड़क,बिजली,शिक्षा और चिकित्सा की समस्याएं कुछ कतर दूर हो गई हैं और स्थानीय लोगों को साफ-स्वच्छ पेयजल एवं आवासीय मकान मिले हैं।तिब्बत में पिछले दशकों से कोई भी कर वसूली नहीं हुई है और इस से साधारण लोगों पर कोई भी बोझ नहीं है।"

सूत्रों के अनुसार तिब्बत में पारिस्थितिकी पर्यावरण बुहत कमजोर है।लेकिन तिब्बत अपने आर्थिक विकास के साथ पर्यावरण के संरक्षण को भी भारी महत्व देता रहा है।पर्यावरण पर बुरा असर डालने वाली सभी परियोजनाओं पर निर्माण-कार्य शुरू किया जाने से पहले तिब्बत के संबंधित विभाग को पर्यावरण की गंभीरता से समीक्षा करना अनिवार्य हो गया है।अब पूरे प्रदेश में 38 प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र कायम हो चुके हैं,जिन का कुल क्षेत्रफल 4 लाख वर्गकिलोमीटर से अधिक है।केंद्र सरकार ने तिब्बत में पठारीय पारिस्थितिकी पट्टी में सुधार लाने के लिए भी पूंजी लगाई है।इस पर श्री श्यांगबाफिनछो ने कहाः

"तिब्बत का पर्यावरण तिब्बत का ही एक सवाल नहीं है,बल्कि सारे देश से संबंध करने वाला एक सवाल भी है।कहा जा सकता है कि इस का सारे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के पारिस्थितिकी सवाल से संबंध है।इसलिए इसे केंद्र सरकार बहुत अहम मानती है।हमारे जैसे तिब्बती लोग पीढ़ी-दर-पीढी तिब्बत में जीवनयापन करते आए हैं,सो हम अपने नेत्रों की रक्षा की ही तरह इस भूमि की पारिस्थितिकी को सुरक्षित करने की कोशिश करेंगे।"