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(GMT+08:00) 2007-06-19 14:10:58    
महान पोताला महल के संरक्षक

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दक्षिण पश्चिमी चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा शहर के केन्द्र में स्थित लाल पहाड़ी पर विश्वविख्यात पोताला महल खड़ा हुआ है । तिब्बती जाति के दिल में विराजमान इस पवित्र महल का संरक्षण करने और विश्व के सभी लोगों को महल की महानता व पवित्रता देखने आकृष्ट करने के लिए वर्षों से बेशुमार लोगों ने निरंतर काम किए और अब भी इस के लिए क्रियाशील रहे हैं । विशेष कर पोताला महल के प्रबंधन कार्यालय के कर्मचारियों और महल के भिक्षुओं ने पिछले दसियों वर्षों में अपना असाधारण योगदान किया है । आज के इस लेख में हम आप को बताएंगे पोताला महल के इन संरक्षकों की कहानी ।

पोताला महल तिब्बत के विभिन्न पीढ़ियों के दलाई लामा का निवास स्थान होने के साथ साथ तिब्बत का राजनीतिक और धार्मिक गतिविधि का केंद्र भी रहा है । यह तिब्बत में सुरक्षित सब से बड़ा प्राचीन वास्तु निर्माण है । ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, पोताला महल का निर्माण सातवीं शताब्दी में तिब्बत के थुबो राजवंश के राजा सोंगकांजांबू की आज्ञा पर किया गया था। शुरू शुरू में वह लाल पर्वत महल कहलाता था । लाल पर्वत महल बहुत विशाल था। वह तीन तरफ से लम्बी मजबूत दीवारों ले घिरा हुआ था और दीवारों के भीतर हज़ारों मकान निर्मित हुए थे। तत्काल यह महल समूह थुबो राजवंश का राजनीतिक केंद्र था । नौवीं शताब्दी में थुबो राजवंश का पतन होने के बाद तिब्बत लंबे समय तक मुठभेड़ों में फंसा रहा। परिणामस्वरूप लाल पर्वत महल भी धीरे-धीरे उपेक्षा का शिकार हो कर तबाह हो गया। 17वीं शताबदी में पांचवें दलाई लामा ने इस महल का जीर्णोद्धार आरंभ करवाया । इस काम के पूरा होने में लगभग 50 वर्ष लगे। इस के बाद भी महल का लगातार विस्तार किया गया और उसे पोताला महल का आज का रूप देने में कुल तीन सौ साल से ज़्यादा का समय लगा । इस अंतराल में पोलाता महल फिर तिब्बत का राजनीतिक व धार्मिक केंद्र बना रहा । तिब्बती वास्तुशैली का प्रतिनिधित्व करने वाला यह आलीशान महल चीन के प्राचीन वास्तुओं में सर्वप्रसिद्ध है, जिस में अनगिनत ऐतिहासिक व सांस्कृतिक मुल्यवान चीज़ें उपलब्ध हैं । युनेस्को ने वर्ष 1994 में पोताला महल को विश्व सांस्कृतिक विरोसत की नामसूची में शामिल किया ।

वर्ष 1994 से लेकर अब तक के दस से ज्यादा सालों में पोताला महल की मरम्मत के लिए कई बार यहां के सांस्कृतिक अवशेषों का स्थानांतरण किया गया । बड़ी मात्रा में सांस्कृतिक अवशेषों के स्थानांतरण और ठीकठाक करना बहुत कठिन काम है । इस पर लोगों का ध्यान भी केंद्रित हुआ ।

पोताला महल के सांस्कृतिक अवशेषों के सुगम व सुरक्षित स्थानांतरण व पुनःबंदोबस्त के लिए महल के प्रबंधन कार्यालय के कर्मचारियों ने संजिगदी से चीनी सांस्कृतिक अवशेष नियमावली का अध्ययन किया और संबंधित जानकारी हासिल की । प्रबंधन कार्यालय के उप निदेशक श्री तिंग छांग चङ ने जानकारी देते हुए कहाः

"पोताला महल के सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण, प्रबंधन व अनुसंधान के लिए हमारे प्रबंधन कार्यालय ने बुनियादी कार्य पर बल दिया और अवशेषों के रोज़ाना रखरखाव कार्य को मज़बूत किया और पोताला महल के मुख्य भाग-- लाल महल की तमाम बाहरी खिड़कियों का जीर्णोद्धार किया । इस के साथ ही हम ने आंशिक भित्ति चित्रों की भी मरम्मत की और तेरहवीं दलाई लामा के स्तूप में सुरक्षित सभी बुद्ध मूर्तियों को सोने के पानी से नया रूप दिया । इन के अलावा हम ने पोताला महल के 640 बुद्ध मूर्तियों की पूर्ववर्ती रूप में मरम्मत की और 650 बौद्ध सूत्र ग्रंथों का संकलन और पंजीकरण किया ।"

पोताला महल के प्रबंधन कार्यालय के सभी कर्मचारियों व महल के भिक्षुओं ने सांस्कृतिक अवशेषों की रक्षा के लिए समान कोशिश की । गत वर्ष उन्होंने 4800 से ज्यादा बुद्ध मूर्तियों व सांस्कृतिक अवशेषों तथा एक हज़ार से ज्यादा बौध ग्रंथों को दूसरी सुरक्षित जगह पर ले गए , ताकि पोताला महल का जीर्णोद्धार काम सुभीता से चल सके । ये ग्रंथ और बुद्ध मूर्तियां अत्यंत मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहर हैं, इन के सुरक्षित स्थानांतरण के लिए मानव शक्ति से लादने उठाने का काम लिया गया । जाहिर है कि पोताला महल के प्रबंधन कार्यालय के कर्मचारियों और महल के भिक्षुओं को हर वर्ष सांस्कृतिक अवशेषों व सूत्र ग्रंथों के स्थानांतरण के लिए बहुत कड़ी मेहनत करना पड़ता है । कई सालों तक इस कार्य में जुटे हुए कर्मचारी छ्वीजा ने कहा

"हम पोताला महल के पूर्वी भवन की चीज़ों के स्थानांतरण का काम करते है । वहां के दसियों हजार ग्रंथ और सांस्कृतिक अवशेष तीन चार मंजिलों से ऊंची अलमारियों पर रखे गए थे, इतने ज्यादा पुस्तकों व सांस्कृतिक अवशेषों को दूसरी जगह उठा ले जाना एक असाधारण भारी काम है । इन चीज़ों के सैकड़ों वर्षों तक वहां रखे रहने के कारण उन पर धूलों की मोटी मोटी परतें पड़ी थीं, इस तरह उनहें उठा कर ले जाने के वक्त हमारे मूंह में धूल ही धूल घुस गए । एक नौजवान लोग को भी एक बार एक ग्रंथावली पीठ पर लादे ले जाना बहुत मुश्किल लगता है , इसलिए महल के दसियों हजार सूत्र ग्रंथों को एक-एक कदम से प्रथम मंजिल से पांच या छै मंजिल तक पहुंचाना तो और भारी मेहनत का काम है । इस काम के कारण अनेक कर्मचारियों व भिक्षुओं के पीठ या पांव के त्वचे झड़ पड़े ।"