गरीबी, बेकारी, और निरक्षरता, आज देश के कई लोगों के लिए एक प्कार का विक्लांग बना हुआ है। पिछले वर्ष के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, जो एस साल जारी किया गया, विक्लांगों को एक आम आदमी के तुलना में शिक्षा पाने में काफी कठिनाई होती हैं। कोई आशचर्य की बात नहीं है की पर केपिटा आधार पर ऐसे परिवारों का आय औसतम आय का आधा भाग है।
विक्लांगता जन्म से ही ऐसे लोगों के लिए एक भारी समस्या बन जाती है और पूरा जीवन छाये की तरह उनका पीछा नहीं छोड़ता। आज चीन में विक्लांग बच्चों में से 63.19 प्रति शत लोग , यानि 2.46 मिलियन बच्चे ही स्कूल जा पाते हैं। आम बच्चों के साथ अगर तुलना किया जाय तो विक्लांग बच्चों का स्कूल जा कर शिक्षा ग्रहण करने वालों की संख्या काफी कम है। आम तौर पर आम बच्चों में स्कूल जाने की दर 97 प्रति शत है। विक्लांगों में केवल 1.13 प्रति शत कालेज शिक्षा ले पाते हैं, जो कि राष्ट्रिय 5.18 प्रति शत का पांचवा भाग है।
कई सरकारी कोशिशों के बावजूद आज कई सारे विक्लांग जिनमें, बच्चे और युवा शामिल हैं कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसका नतीजा है आम बच्चों और विक्लांग बच्चों में आत्म-विशवास, कार्य-कुशलता, मानसिक संतुलन में दिन प्रति दिन अंतर बढ़ता चला जा रहा है। ऐसे अनुकूल स्थितियों में शिक्षा ही शारिरीक और मानसिक विक्लांग बच्चों का जीवन स्थर बढ़ाने का सर्वोत्तम माध्यम है। लेकिन पंद्रह वर्ष से ऊपर के उम्र वाले निरक्षर विक्लांगों की संख्या 35.91 मिलियन, यानि राष्ट्रिय निरक्षरता का 43.29 प्रतिशत है।
जब निरक्षरता, मानसिक और शारिरीक विक्लांगता से जुड़ जाती है तो विक्लांग बच्चों के आत्म-विशवास को काफी ठेस पहुँचती है और वे अपने आप को समाज के ऊपर एक बोझ मानते हैं। इसके अलावा आम लोगों का विक्लांगों के प्रति नजरिया भी बदलना चाहिए।आम लोगों के सहायता औऱ प्रोत्साहन के जरिये वे अपने में छुपी खूबियों को जान सकते हैं और अपने हुनरों को वास्तविक रुप प्रदान कर सकते हैं। चीन के 75 प्रति शत विक्लांग ग्रामीण श्रेत्रों में वास करते हैं और इस वजह से इंटरनेट और टी वी के जरिये दूर शिक्षा प्रदान की जा सकती हैं।
विक्लांगों की बेकारी की समस्या से निपटने के लिए उनके विक्लांगता के आधार पर उनको काम दिया जाना चाहिए। शारिरीक विक्लांगता से ग्रस्थ लोगों को सामाजिक और राष्ट्रिय मुख्यधारा में लाने के लिए सकारात्मक कदम उठाना चाहिए।
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