• हिन्दी सेवा• चाइना रेडियो इंटरनेशनल
China Radio International
चीन की खबरें
विश्व समाचार
  आर्थिक समाचार
  संस्कृति
  विज्ञान व तकनीक
  खेल
  समाज

कारोबार-व्यापार

खेल और खिलाडी

चीन की अल्पसंख्यक जाति

विज्ञान, शिक्षा व स्वास्थ्य

सांस्कृतिक जीवन
(GMT+08:00) 2007-06-15 08:17:16    
जातीय प्रेस कार्यकर्ता श्री दाली .मातिहुक्साल

cri

सिन्चांग के पामीर पठार पर रहने वाली चीन की अल्पसंख्यक जाति – ताजिक जाति सुर्य वंश के नाम से मशहूर है । इस जाति की अपनी विरल परम्परागत जातीय संस्कृति होती है , जो अभी तक अपने मूलभूत रूप में सुरक्षित है । वर्ष 1987 के जून माह में सिन्चांग की ताशकुलकन काऊंटी के रेडियो व टीवी ब्यूरो के पूर्व उप डायरेक्टर , ताजिक जाति के प्रेस कार्यकर्ता श्री दाली .मातिहुक्साल ने वर्षों की तैयारी के बाद बुजुर्ग लोक कलाकारों से ताजिक जाति की लुप्तप्राय लोक संस्कृति की सामग्रियों को सहेजने बटोरने तथा संकलित करने का काम आरंभ किया । ताशकुलकन काऊंटी का क्षेत्रफल विशाल है , पठारी भू स्थिति दुर्गम है और निरजन भूभाग बड़ा है , इसलिए बुजुर्ग लोक कलाकारों की तलाश करना एक मुश्किल काम है । बुजुर्ग लोक कलाकारों की तलाश करने के लिए श्री दाली .मातिहुक्साल को अकसर दौड़ धूप करना पड़ा और उन के जूते भी घिसा करते थे और समय पर नये नहीं मिल पाने और फटे जूते पहनने के कारण उन के दोनों पांव भी रेत व नुकली कंकरी से घिस कर लहुलुहान हो जाते थे । एक बार असाधारण मूसलाधार वर्षा से भयंकर बाढ़ आयी ,जिस से वे एक निरजन छोटी झोंपड़ी में घिरे गए और ठंड व भूख के मारे उन का पूरा शरीर थरथर पड़ा और दूसरे दिन तक जब बाढ़ थम गयी और दूसरों की मदद से वे सुरक्षित जगह आ पहुंचे ।

पूरे छै महीनों की अवधि में श्री दाली .मातिहुक्साल ने अपनी जान को हथेली पर रख कर 13 समुद्र सतह से 5000 मीटर ऊंची हिमनदियों को पार कर अपने इस काम को पूरा किया । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

मुझे इतनी कड़ी मेहनत पर पशचात्ताप नहीं हुआ , क्यों कि इस काम के दौरान मैं ने बहुत कुछ सीखे हैं और बड़ी मात्रा में विरल जातीय सांस्कृतिक विरासतों को बचाया और संरक्षित किया है , यह काम अल्प संख्यक जाकि के लिए एक बड़ा योगदान है ।

जातीय सांस्कृतिक धरोहरों को संगृहित करने के दौरान श्री दाली . मातिहुक्साल में ताजिक जाति की प्राचीन संस्कृति के बारे में ज्यादा जानकारी और गहरी समझ प्राप्त हुई है । उन के विचार में मूल रूप की जातीय संस्कृति किसी प्राचीन अल्पसंख्यक जाति की आत्मा है । दाली .मातिहुक्साल ने अपने द्वारा जुटाए लोक संस्कृति से संबद्ध सामग्रियों को वेवूर भाषा में अनुवादित कर उन्हें किताब का रूप भी दिया , निरंतर अथक कोशिशों से उन की तीन पुस्तकें ताशकुलकन की लोक कथाएं , ताजिक जातीय लोक नृत्य और ताजिक जातीय लोक गीत प्रकाशित हुईं ।

ताजिक जातीय संस्कृति को सहेजने तथा संरक्षित करने के अलावा श्री दाली .मातिहुक्साल ने ताजिक जातीय संस्कृति को विश्व के अन्य स्थानों से अवगत कराने की भी कोशिश की , यह उन का एक दीर्घकालीन लक्ष्य है ।

वर्ष 1996 के जून माह में सिन्चांग टीवी स्टेशन ने ताजिक जातीय परम्परागत संस्कृति पर सुर्य वंश शीर्षक में एक टीवी कार्यक्रम बनाया, इस के सलाहकार श्री दाली .मातिहुक्साल है । इस टीवी कार्यक्रम के निर्माण के दौरान एक दिन टीवी कार्य दल तेज आंधि में फंस पड़ा , श्री दाली .मातिहुक्साल ने जान के खतरे में पड़ने की परवाह न कर कार्यदल के एक हान जातीय सहयोगी को बचाया । श्री दाली .मातिहुक्साल का कहना है कि ताजिक जाति की संस्कृति को विश्व के विभिन्न स्थानों में प्रसारित करना उन का वर्षों का सपना है , इस के लिए वे किसी भी खतरे से भी नहीं डरते हैं ।

वर्ष 2003 की गर्मियों में सिन्चांग टीवी स्टेशन ने वर्ष 1943 के ऊंटवानों की डायरी शीषर्क डाक्युमेंट्री फिल्म बनायी । इस फिल्म में वर्ष 1943 में सिन्चांग की वेवूर , ताजिक और किरगिज जातियों के ऊंटवानों द्वारा जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध का समर्थन करने के लिए हिमालय के बर्फली पहाड़ों को पार कर ऊंट काफिले हांकते हुए अग्रिम मोर्चे को सामग्री पहुंचाये जाने की कहानी वर्णित हुई है । श्री दाली . मातिहुक्साल ने इस फिल्म के रिकार्टिंग , अनुवाद तथा लोक कथा परामर्श के काम किए । फिल्म निर्माण के लिए सामग्री पहुंचाने वाले अल्प संख्यक जातीय ऊंचवानों की जरूरत है , श्री दाली . मातिहुक्साल के बहुत से ताजिक जातीय रिश्तेदारों व दोस्तों ने यह काम संभाला । इस पर दाली . मातिहुक्साल ने कहाः

फिल्म निर्माण के दौरान किसी बुजुर्ग रिश्तेदार ने मुझे तत्कालीन ऊंटवानों का सुराग बताया , इस तरह मैं ने 92 वर्षीय मेमेती . ईमिन और फिर काश्गर में एक अन्य 93 वर्षीय तत्कालीन ऊंटवान का पता चला । ऊंटवानों की डायरी फिल्माने में इन लोगों ने बड़ा काम किया , यह डाक्युमेंटरी फिल्म का बड़ा महत्व होता है , जिसे देश की पहली मई परियोजना का पुरस्कार प्राप्त हो गया ।

ऊंटवानों की डायरी फिल्म में ऊंटवानों के दल नेता मुशा की मौत का एक दृश्य है , उसे फिल्माने के लिए श्री दाली .मातिहुक्साल समुद्र तल से 6000 मीटर ऊंचे पहाड़ पर आधे दिन तक ठहरे , वे जबरदस्त पठारी रोग से पीड़ित हुए कड़ाके की सर्दी और बर्फबारी झेलते हुए काम करते रहे , जब फिल्म निर्देशक उन के काम पर संतुष्ट हो गये , तभी वे ऊंचे पहाड़ से नीचे आए ।

ऊंटवानों की डायरी फिल्म को देश का बड़ा पुरस्कार मिलने पर श्री दाली . मातिहुक्साल समेत कार्य दल के सभी सदस्यों को बड़ी खुशी हुई है । लेकिन श्री दाली . मातिहुक्साल इस संतोष तक सीमित नहीं रहे , उन्हों ने अपनी जिन्दगी में पूरी तरह ताजिक जाति की संस्कृति को खोजने , संग्रहित करने तथा संकलित करने की ठान ली , इस काम की सफलता मिलने के बाद वे पूरी तरह संतुष्ट होंगे और बड़ा गर्व महसूस करेंगे । उन्हों ने कहा कि हमारे सपने को जब मूल रूप मिला , तब हम पूरी तरह संतुष्ट होंगे और सच्चे मायने का आनंद मिल सकेगा । सिन्चांग टीवी स्टेशन के डाक्युमेंटरी फिल्म निर्देशक श्री ल्यू श्यांग छन ने कहाः

श्री दाली .मातिहुक्साल ने अपनी तमाम शक्ति को ताजिक जाति की संस्कृति के संरक्षण व विकास पर लगाया हैं । उन्हों ने ताजिक जाति के परम्परागत लोक गीतों का संग्रहण व संकलन किया है , यह एक महान योगदान है । इस काम के लिए उन की भौतिक स्थिति अच्छी नहीं थी , वे बहुत मोटा खाना खाते थे , खराब व सरल आवास में रहते थे और पहांड़ों व नदियों को पैदल पार करते थे । वे लोक गीतों से संबद्ध विभिन्न पहलुओं की सामग्री तलाशते तथा बटोरते नहीं थकते हैं , ताजिक जाति की इस प्रकार की चेतना और तमन्ना है , यह एक बड़ा सराहनीय बात है ।

सिन्चांग में बहुत सी अल्पसंख्यक जातियां रहती हैं , उन में अच्छी अच्छी मूल परम्परागत संस्कृति मौजूद है , उन की परम्परागत संस्कृति को विरासत में लेना और उन्हें युग के साथ आगे विकसित करना बहुत जरूरी और मुश्किल काम है . ऐसे काम के लिए श्री दाली .मातिहुक्साल जैसे पक्के संकल्प और कड़ी मेहनत वाले लोगों की कोशिशों की आवश्यकता है । श्री दाली .मातिहुक्साल ऐसे दूरदर्शी और मेहनती व्यक्तियों में से एक है, हमें आशा है कि और बड़ी संख्या में जातीय संस्कृति के संरक्षण व विकास में लगे लोग उभरेंगे और सिन्चांग की अल्प संख्यक जातियों की मूल संस्कृति अच्छी तरह संरक्षित व विकसित की जा सकेंगी।