इधर के वर्षों में चीन व भारत के संबंध बहुत अच्छी तरह विकसित हो रहे हैं। चीन व भारत ने पेइचिंग में दोनों देशों के जाने-माने व्यक्तियों के एक मंच का आयोजन किया, जिस में चीन व भारत के अनेक सुप्रसिद्ध अधिकारियों व विद्वानों ने भाग लिया। नीचे आप पढ़ पाते हैं चीनी विद्वान, प्रोफेसर मा जा ली की कुछ जानकारी।
प्रोफेसर मा जा ली चीन के आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संबंध अनुसंधान संस्थान के दक्षिणी एशिया अनुसंधान केंद्र के प्रधान हैं। वे तीस वर्षों से चीन व भारत के राजनीतिक संबंधों का अनुसंधान कर रहे हैं। श्री मा जा ली के अनुसार, चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना होने के बाद पिछले 54 वर्षों में चीन-भारत संबंध कई सोपानों से गुजरे। वर्ष 1950 के अप्रैल माह में चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना हुई, जिस से इन दो देशों के उच्चाधिकारियों के बीच आवाजाही शुरु हुई। श्री मा जा ली कहते हैं, 1950 के दशक में चीन व भारत के संबंध इतिहास के सब से अच्छे काल में थे। दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने तब एक-दूसरे के यहां की अनेक यात्राएं कीं और उनकी जनता के बीच भी खासी आवाजाही रही। दोनों देशों के बीच तब घनिष्ठ राजनीतिक संबंध थे। लेकिन, 1960 के दशक में चीन व भारत के संबंध अपने सब से शीत काल में प्रवेश कर गये। 70 के दशक के मध्य तक वे शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। चीन-भारत संबंधों में शैथिल्य आया तो दोनों देशों की सरकारों के उभय प्रयासों से दोनों के बीच फिर एक बार राजदूत स्तर के राजनयिक संबंधों की बहाली हुई।
1980 के दशक से 1990 के दशक के मध्य तक चीन व भारत के संबंधों में गर्माहट आ चुकी थी। दोनों के बीच इसके बाद न केवल राजनीतिक आवाजाही बढ़ी, आर्थिक व व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि हुई और सीमा समस्या पर वार्ता का आयोजन भी किया गया। अब चीन-भारत संबंध एक नये काल में प्रवेश कर चुके हैं। इसमें प्रमुख बात यह है कि गत वर्ष भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की।
उन्होंने चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणा पत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय संबंध एक अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय संबंधों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया। चीन व भारत के संबंध पुरानी नींव पर और उन्नत हो रहे हैं।
गत वर्ष चीन व भारत के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आवाजाही बढ़ी। प्रोफेसर मा जा ली ने कहा, गत वर्ष की शुरुआत से चीन व भारत के बीच आवाजाही में वृद्धि आयी है। पूर्व भारतीय रक्षा मंत्री फर्नांडीस ने चीन की यात्रा की और समान रुचि वाली समस्याओं विशेषकर सुरक्षा समस्या के हल की अच्छी नींव तैयार की । गत वर्ष जून में श्री वाजपेयी की चीन यात्रा ने भी एक अच्छी नींव डाली । चीनी नेता जा छिंग लिन ने भी इस बीच भारत की यात्रा की। जा छिंग लिन चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की स्थायी कमेटी के अध्यक्ष हैं। उन की भारत यात्रा ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में भारी भूमिका अदा की । इस के अलावा, चीन व भारत में अनेक अवसरों पर राजनीतिक संपर्क भी हुए। मिसाल के लिए, संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस, चीन व भारत के नेताओं की भेंटवार्ताएं हुईं। चीन व भारत के बीच राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ हुआ। अब चीन व भारत भविष्य की उच्चस्तरीय यात्राओं की तैयारी कर रहे हैं। गत वर्ष चीनी प्रधानमंत्री वन चा पाओ व भारतीय प्रधान मंत्री वाजपेयी की सहमति पर, दोनों देशों ने सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किये। अब सीमा वार्ता के दो चरण आयोजित भी हो चुके हैं। ये वार्ताएं अच्छी रही हैं।
चीन की नयी सरकार की दक्षिण एशिया नीति की विशेषता बताते हुए श्री मा जा ली बोले, चीन की विदेश नीति सतत है। इधर के कोई बीस वर्षों में चीन की विदेश नीति में परिवर्तन नहीं हुआ है। चीन पड़ोसी देशों के साथ अच्छे पड़ोसी जैसे मैत्रीपूर्ण संबंध बरकरार रखे हुए है। चीन की नयी सरकार ने दक्षिणी एशिया के देशों के साथ स्वस्थ व अच्छे पड़ोसी जैसे संबंधों के विकास के लिए सक्रिय कदम उठाये हैं। चीन-भारत संबंधों के विकास का चीन सरकार का विश्वास पक्का व संकल्प मजबूत है।गत वर्ष पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की सफल यात्रा की। चीन व भारत ने चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। चीन व उसे पड़ोसी देशों के राजनयिक संबंधों के इतिहास में ऐसे घोषणापत्र कम ही जारी हुए हैं।
घोषणापत्र में दोनों पक्षों ने कई प्रमुख क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों में और क्षेत्रीय समस्याओं यहां तक कि विश्वव्यापी समस्याओं पर मतैक्य प्राप्त किया। इस घोषणापत्र का अत्यन्त महत्व है। इस ने चीन व भारत के नेताओं का साहस प्रतिबिंबित किया। चीन व भारत के बीच सीमा समस्या लम्बे अरसे से अनसुलझी रही है। 1980 और 1990 के दशक में इस पर अनेक चरणों की वार्ता हुई, लेकिन उसमें कोई भारी प्रगति प्राप्त न हो सकी। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच सम्पन्न ज्ञापन में दोनों देशों ने और साहसिक नीतियां अपनायी हैं, जिन में सीमा समस्या पर वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि को नियुक्त करना और सीमा समस्या का राजनीतिक समाधान खोजना आदि शामिल हैं। चीन और भारत के इस घोषणापत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का एक अभिन्न और अखंड भाग है। ऐसा पहली बार हुआ कि तिब्बत समस्या पर भारत ने अपना स्पष्ट रुख एक दस्तावेज में दर्ज किया।
चीन-भारत संबंधों के भविष्य की चर्चा में प्रोफेसर मा जा ली ने कहा, भविष्य में चीन-भारत संबंध और स्वस्थ होंगे और और अच्छे तरीके से आगे विकसित होंगे । आज हम देख सकते हैं कि चीन व भारत के संबंध लगतार विकसित हो रहे हैं। यह दोनों देशों की सरकारों की समान अभिलाषा भी है। दोनों पक्ष आपसी संबंधों को और गहन रूप से विकसित करने को तैयार हैं। लेकिन, हम यह भी देख सकते हैं कि चीन व भारत के संबंधों के विकास में सीमा समस्या समेत कुछ अनसुलझी समस्याएं भी हैं। दोनों देशों की सरकारें इन्हें सुलझाने के प्रयास कर रही हैं। मुझे विश्वास है कि चीन-भारत संबंध अवश्य ही और स्वस्थ व मैत्रीपूर्ण होंगे और एक रचनात्मक साझेदारी का रूप लेंगे।
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