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(GMT+08:00) 2007-05-31 19:21:34    
चीन और भारत के बीच पुल सा काम करना चाहता हूं , श्री बल्लभ

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श्री बल्लभ एक जाने-माने व्यक्ति नहीं हैं, फिर भी वे अनेक चीनी लोगों के लिए प्रचलित हैं। वर्ष 1956 में वे प्रथम बार चीन आये और उन्होंने पांच वर्षों के लिए चीनी विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में काम किया।उन की मदद से प्रथम हिन्दी भाषावाली जन सचित्र पत्रिका प्रकाशित की गयी। साथ ही उन्होंने चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी-सेवा खोलने में भी मदद की। तत्कालीन चीनी नेता च्यो अन लाई ने उन्हें मैत्री पुरस्कार का पदक दे कर सम्मानित भी किया। 

प्रिय श्राताओं, श्री बल्लभ का जन्म वर्ष 1930 में उत्तरी भारत के हिमाचल पहाड़ के दक्षिणी भाग में स्थित एक भारतीय किसान के घर में हुआ। बचपन में उन का घर बहुत गरीब था। लेकिन, उन्होंने अपनी मेहनत से दिल्ली विश्वविद्यालय में भरती हो कर हिन्दी भाषा में एम ए डिग्री प्राप्त की। स्नातक होने के बाद,उन्होंने क्रमशः भारतीय अखबार पाईनियर और पत्रिका वीक में काम किया। लम्बे समय तक अंतरराष्ट्रीय विभाग में काम करने के कारण उन की रुचि भारत के पड़ोसी देश चीन के प्रति भी हुई। वे अक्सर अखबार में चीन के मुक्ति युद्ध पर टिपण्णी लिखते थे और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करते थे। उसी वक्त श्री बल्लभ ने स्नो द्वारा लिखी गयी पुस्तक पश्चिमी यात्रा पढ़ी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को जानने लगे।पांचवें दशक की शुरुआत में ब्रिटेन ने अंग्रेजी भाषा में माओ ज तुंग लेख संग्रह प्रकाशित किया और श्री बल्लभ ने भी भारत में यह संग्रह पढ़ा। उन्होंने न केवल खुद ये दोनों पुस्तकें पढ़ीं , बल्कि अपने मित्रों को भी ये दो पुस्तकें पढ़ने को कहा। उन्हें याद है उस समय भारत के अनेक लोग श्री माओ ज तुंग को चीन का वीरपुरुष मानते थे।

वर्ष 1950 की पहली अप्रैल को, भारत चीन के साथ राजनयिक संबंध  स्थापित करने वाला प्रथम गैर समाजवादी देश बना। वर्ष 1951 में भारत ने एक प्रथम मैत्री प्रतिनिधि मंडल चीन भेजा। इस प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष, जिस का नाम पंडित सुंदरलाल था, स्वदेश वापस लौटने के बाद भारत के विभिन्न स्थलों में अपनी चीन यात्रा के बारे में भाषण दिया। बाद में उन्होंने भारत-चीन मैत्री संघ की स्थापना की। श्री बल्लभ जल्द ही इस संघ के एक सदस्य बन गये और सुंदरलाल के अच्छे मित्र भी।
पिछली शताब्दी के पांचवें दशक में, चीन व भारत का घनिष्ठ संबंध था। वर्ष 1954 में चीन व भारत के प्रधान मंत्रियों ने एक दूसरे देश की यात्रा की और संयुक्त रुप से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पंचशील सिद्धांत प्रस्तुत किए। वर्ष 1956 में चीन ने कुछ भारतीय विशेषज्ञों को चीन में काम करने के लिए आमंत्रित किया। भारत-चीन मैत्री संघ के महा सचिव श्री सुंदरलाल ने श्री बल्लभ को चुना। श्री बल्लभ ने कहा कि मैं बिना हिचकिचाहट तुरंत नौकरी छोड़कर चीन आ गया।

चूंकि वे चीन से बहुत प्रेम करते थे, इसलिए, चीन आने के बाद उन्हें कठिनाई नहीं हुई। उन्हें पेइचिंग विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में काम करना भी अच्छा लगा। शुरु में वे चीन की राजनीति, इतिहास व संस्कृति के क्षेत्रों में पुस्तकों का अनुवाद करते थे। चूंकि श्री बल्लभ को चीनी नहीं आती थी, इसलिए, उन्हें अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करना होता था। इस के बाद प्रकाशन गृह में चीनी कर्मचारी चीनी भाषा की पुस्तक के अनुसार संशोधन करते थे।

प्रथम हिन्दी भाषी जन सचित्र पत्रिका के प्रकाशन के लिए उन्होंने अनेक तैयारी कार्य किया। वर्ष 1959 के मार्च में चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिन्दी सेवा औपचारिक रुप से खोली गयी, इस में श्री बल्लभ ने भी योगदान दिया था। उस समय, वे दिन में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह में काम करते थे, और रात को रेडियो में काम करते थे। हालांकि वे व्यस्त थे, फिर भी खुश थे।श्री बल्लभ ने माओ ज तुंग लेख संग्रह का अनुवाद भी किया। श्री बल्लभ और उन के सहकर्मियों द्वारा अनुवादित पुस्तकों के भारत में अनेक पाठक भी थे। जन-सचित्र भी भारतीय लोगों में प्रिय थी।वर्ष 1961 के नवम्बर में चीन सकार ने श्री बल्लभ को मैत्री के पदक से सम्मानित किया। यह चीन-भारत मैत्री का द्योतक था , और उन के योगदान की मान्यता भी।

वर्ष 1959 में तिब्बत में सशस्त्र विप्लव होने के बाद चीन-भारत संबंध खराब होने लगे। वर्ष 1961 में भारतीय सरकार ने श्री बल्लभ से स्वदेश वापस लौटने की मांग की। हालांकि वे चीन में रहना चाहते थे, फिर भी विवश होकर चीन से वापिस गये ।भारत वापस लौटने के बाद श्री बल्लभ बेरोजगार बन गये। भारतीय सरकार यह मानती थी कि श्री बल्लभ चीन का समर्थन करते थे ।इसलिए, भारतीय सरकार श्री बल्लभ के दैनिक जीवन की निगरानी करती थी।इसी स्थिति में भारत स्थित चीनी दूतावास ने उन्हें सहायता दी और उन्होंने दूतावास में अनुवाद व संपादन का काम करना शुरु किया।

वर्ष 1976 में चीन व भारत ने एक दूसरे के यहां पुनः राजदूत भेजना शुरु किया। श्री बल्लभ को भी पुनः विदेशी प्रकाशन गृह और चाइना रेडियो इंटरनेशनल में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1990 की मई में वे चीन वापस लौटे और चाइना रेडियो इंटरनेशनल में काम करने लगे। उस समय, रेडियो की हिन्दी सेवा में कोई भी विशेषज्ञ नहीं था, इसलिए वे अक्सर दिन-रात काम करते थे। एक महीने के बाद उन का स्वास्थ्य खराब हो गया और काम करना संभव नहीं रह गया। विवश होकर वे भारत वापस लौट गये। स्वदेश वापस लौटने के बाद, वे लम्बे अरसे तक भारत-चीन मैत्री संघ के महा सचिव रहे, जिस के दौरान, उन्होंने चीन व भारत दोनों देशों की गैरसरकारी आवाजाही के लिए अनेक लाभदायक काम किये।

वर्ष 2003 में स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने संघ के महा सचिव का पद छोड़ दिया, फिर भी भारत-चीन मैत्री संघ ने उन्हें वरिष्ठ सहायक का पद दिया।श्री बल्लभ का छोटा बेटा पांच वर्ष पहले भारतीय उद्योग व वाणिज्य संघ के चीनी मामलात का कार्यकारिणी निदेशक बना। वर्ष 2004 की मई से श्री बल्लभ और उन की पत्नी शर्मा पेइचिंग में रहने लगीं। सुश्री शर्मा भी चाइना रेडियो इंटरनेशनल में हिन्दी एनाउंसर थीं। उन का बड़ा बेटा तो अब सिंगापुर में काम करता है। श्री बल्लभ और उन की पत्नि कभी सिंगापुर में बड़े बेटे के पास और कभी चीन में रहते हैं। लेकिन, उन्होंने कहा कि उन दोनों को चीन और पेइचिंग ज्यादा पसंद है।हमारी संवाददाता के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि यह वर्ष चीन-भारत मैत्री वर्ष है। वे भी आशा करते हैं कि दोनों देशों की मैत्री के लिए कुछ न कुछ काम कर सकेंगे।