
प्रिय दोस्तो , चीन की राजधानी पेइचिंग की आधुनिकता के बारे में आप बहुत कुछ जानते हैं, और मेरा मानना है कि इस बहुत प्राचीन शहर के इतिहास और सांस्कृतिक परम्परा की जानकारी पाने में भी आप की रुचि होगी ही। तो आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम निकते हैं पेइचिंग की एक प्रसिद्ध सड़क ल्यू ली छांग के दौरे पर। यह दौरा आपसे पेइचिंग का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक शोध करवायेगा।
ल्यू ली छांग सांस्कृतिक सड़क चीनी की राजधानी पेइचिंग शहर के थ्येन आन मन चौंक के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित हो फिंग गेट के बाहर अवस्थित है , पेइचिंग शहर के केंद्र में स्थित थ्येन आन मन चौंक से कार पर सवार होकर यहां पहुंचने में केवल बारह पंद्रह मिनट लगती है । यह सड़क पेइचिंग शहर की सब से रौनकदार सांस्कृतिक सड़कों में से एक है , चीन की जितनी भी प्राचीन मूल्यवान कलात्मक कृतियां इसी सांस्कृतिक सड़क पर देखी जा सकती हैं । श्री चन वन एक मीडिल स्कूल का एक अध्यापक हैं और वे इस सड़क पर दसियों सालों तक रह चुके हैं । इसलिये वे इस प्रसिद्ध सांस्कृतिक सड़क से बिल्कुल वाकिफ हैं । उन्हों ने इस सड़क के इतिहास का परिचय देते हुए कहा कि क्योंकि शुरू में यहां पर पत्थर की एक भट्टी थी , इसलिये इस सड़क का नाम इसी भट्टी में तैयार खपरैल के नाम से लिया गया और अभी तक इसी नाम से नामी रही है ।
हमारे परिवार की कई पीढ़ियां इसी सड़क पर रहते आयी हैं । बुजुर्गों से सुना जाता है कि यह सड़क छिंग राजवंश के समय बनी । तब यहां पत्थर की भट्टी थी , जो विशेष तौर पर राजमहल के लिये ल्यू ली नामक रंगीन खपरैल तैयार करती थी । छिंग राजवंश के शुरू में यह भट्टी पेइचिंग के पश्चिम उपनगर में स्थानांतरित हो गयी , जब कि इस सड़क को कदम ब कदम चीनी लिपि व चित्र कलात्मक कृतियों और कीमती पत्थरों जैसी दुर्लभ वस्तुएं बेचने वाली सांस्कृतिक सड़क का रूप दिया गया ।
असल में ल्यू ली छांग सड़क का पुराना नाम हाई वांग था , यह एक बहुत छोटा सा गांव था , 13वीं शताब्दी में य्वान राजवंश के समय शाही परिवार ने इसी जगह ल्यू ली खपरैल बनवाने के लिए जो भट्टी स्थापित की, वह काफी छोटी थी।
उस समय यहां पर तैयार रंगीन ल्यू ली खपरैलों का प्रयोग राजमहल के निर्माण में किया जाता ही नहीं , बल्कि बाद में बहुत से मंदिरों , मठों और कुलीन खानदानों में भी इसी प्रकार के खपरैलों का इस्तेमाल होने लगा , इसलिये इस जगह ने शीघ्र ही चहल पहल सड़क का रूप लिया और ल्यू ली नामक खपरैलों के व्यापार पर अपना विशेष रंग जमा लिया । तत्कालीन छिंग राजवंश की सरकार ने फिर पारम्परिक दीप उत्सव की खुशियां मनाने की गतिविधियां इसी सड़क पर चलाने दे दीं , अतः यह सड़क फिर क्रमशः लोगों को आकर्षित करने लगी , खासकर दीप उत्सव के उपलक्ष में आसपास के वासियों की भीड़ खुशियां मनाने के लिये इसी सकड़ की ओर उमड़ते हुए नजर आती थीं ।17वीं शताब्दी में पेइचिंग के विस्तार के बाद यह क्षेत्र शहर में विलीन हो गया और खपरैल भट्टी को पेइचिंग के बाहर ले जाया गया, लेकिन इस क्षेत्र ने अपना पुराना नाम फिर भी बरकरार रखा।
खैर इस ने पेइचिंग की प्रसिद्ध सांस्कृतिक सड़क का रूप कैसे धारण किया आइए अब करें इस कारण की चर्चा।
17वीं शताब्दी में छिंग राजवंश के दौरान ल्यू ली छांग क्षेत्र कई शाही अधिकारियों का निवासस्थल था। इसके राजमहल के नजदीक होने से शाही परीक्षा में शामिल होने वाले युवक भी यहां ठहरना पसंद करते थे। ये शाही अधिकारी व पढ़े-लिखे युवक पुस्तक और अन्य सांस्कृतिक सामग्री खरीदने के शौकीन थे। इसे ध्यान में रखकर देश के अनेक क्षेत्रों के पुस्तकविक्रेता यहां एकत्रित हुए और पुस्तक भंडारों के लिए सुंदर मकान भी बनवाने लगे। धीरे-धीरे यहां पेइचिंग का सब से बड़ा पुस्तक बाजार सामने आया और पुस्तकों से संबंधित स्याही, कागज, कूची के अलावा मूल्यवान पत्थर, चित्र आदि सांस्कृतिक व कलात्मक कृतियां भी बिकने लगीं।
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