जैसा कि आप जानते हैं चीन में कुल 56 जातियों के लोग बसे हुए हैं और उन की अपनी-अपनी विशेष परंपरागत संस्कृति है। हाल ही में हमारे संवाददाता ने मध्य चीन के हूपे प्रांत की छांग-यांग काऊंटी का दौरा किया और इस थू जाति बहुल क्षेत्र की रंगबिरंगी लोक संस्कृति व उस के संरक्षण की स्थिति के बारे में जानकारी हासिल की।
ज़ी-छ्यो कस्बा थू जाति की इस काऊंटी का हरा-भरा पहाड़ी कस्बा है। अभी आप जो गीत सी आवाज सुन रहे थे,वह "सा यर ह" नामक थू जाति की एक अद्बुत शैली वाला गायन है। स्थानीय लोग उसे "अंतिम संस्कार की खुशी का गायन" कहते हैं। अजीबोगरीब मत मानिए। थू जाति के लोग जीवन के प्रति उदार रवैया अपनाते हैं। उन की नजर में इंसान के जीवन औऱ मरण से ज्यादा इस संसार में कोई दूसरी महत्व की बात नहीं है। इस संसार से विदा होने के बाद इंसान की आत्मा दूसरे लोक मे जाती है। इसलिए मृतकों के अंतिम संस्कारों को खुशी से आयोजित किया जाना चाहिए। इस अवधारणा से थू जाति के लोग अपने संबंधियों के अंतिम संस्कारों को "सा यर ह" गाना गाते और नृत्य करते हुए पूरा करते हैं। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार थू जाति की यह परंपरा कई हजार वर्ष पुरानी है। स्थानीय सांस्कृतिक मंडली कभी कभार "सा यर ह" को अभिनय-कार्यक्रम के रूप मे दर्शकों के सामने प्रस्तुत करती है। इस मंडली के एक बुजुर्ग कलाकार थ्यान जंग-क्वो ने कहाः
"हम लोक कलाकार हैं। हमारे नाचगान अपने मूलरूप में ही हैं,जिन की लयें,बोलियां और अंगभंगिमाएं परंपरा के मूलरूप पर आधारित हैं और जिन में ज़रा भी फेरबदल नहीं किया गया है।`सा यर ह` पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रहा है। हम ने किसी से सीखकर नहीं बल्कि बचपन से बुजुर्गों के प्रभाव में आकर सहजता से इस आदिम कला पर महारत हासिल की है।शादी-ब्याह के मुहूर्त पर भी हम यह अभिनय प्रस्तुत करते हैं।"
"सा यर ह" थू जाति की परंपरागत संस्कृति का प्रतिनिधि करने वाली तीन प्रमुख विरासतों में से एक है। अन्य दो विरासतें हैं सवाल-जवाब के रूप में पहाडी गीत और दक्षिणी गीत।
पहाड़ी गीतों की धुनें ऊंची एवं सीधी-सादी हैं और दक्षिणी गीतों की धुनें नम्र एवं भावभीनी हैं।
अन्य अभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की ही तरह थू जाति की इन तीन प्रमुख विरासतों को भी विलुप्त होने के संकट का सामना करना पड़ रहा है। अभी यह संकट पहले जितना गंभीर तो नहीं है,पर फिर भी मौजूद तो है ही। थू जाति के युवा लोग बड़ी संख्या में रोजगार के लिए अपना जन्मस्थान छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में चले गए हैं जिस से इन विरासतों के उत्तराधिकारियों में कमी आई है। इस के अलावा विविध बाहरी संस्कृतियों विशषकर आधुनिक कला ने परंपरागत संस्कृति व कला के सामने तरह-तरह की चुनौतियां खड़ी की हैं और ग्रामीण जातीय क्षेत्र में लोगों के जीवन में बड़ा सुधार आने के साथ-साथ नाचगान को आदान-प्रदान का एक मूल तरीका मानने वाले वातावरण में भी बिगाड़ आया है। लेकिन इधर के कुछ वर्षों में चीन सरकार ने जातीय लोक संस्कृति व कला के संरक्षण को भारी महत्व दिया है। थू जाति का ज़ी-छ्यो कस्बा स्थानीय सरकार द्वारा कायम 9 परंपरागत संस्कृति वाले पारिस्थितिकी क्षेत्रों में से एक है। स्थानीय सरकार ने लोक कलाकारों को आर्थिक सहायता देने और रिकार्डिंग करने, वीडियो बनाने व कलम से नोट करने के तरीकों से रहन-सहन व रीति-रिवाजों की दृष्टि से जातीय लोक संस्कृति व कला को सुरक्षित करने की बडी कोशिश की है। स्थानीय स्कूलों ने भी लोक कलाकारों के साथ लोक संगीत कक्षाएं चलाने के अनुबंध किए हैं। इन सब सकारात्मक तरीकों से ज़ी-छ्यो कस्बे को चीनी केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा " चीन का लोककला कस्बा" की संज्ञा दी गई। कुछ ही समय पहले थू जाति की "सा यर ह" अभिनय कला चीनी राजकीय अभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की सूची में शामिल की गई है।
थू जाति के उद्गम-स्थान होने के नाते छांग-यांग काऊंटी में अभौतिक सांस्कृतिक अवशेष या लोक संस्कृति के अलावा भौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की भी बहुतायत है। वहां पाया गया श्यांग लू-शी नामक एक प्रसिद्ध प्राचीन स्थल का अवशेष 3 या 4 हजार साल पहले की तांबे वाली संस्कृति का प्रतिनिधि है। पिछली सदी के अंत में वहां हुई खुदाई में प्रस्तर,मिट्टी,हड्डियों और तांबे के करीब 10 हजार बर्तन पाए गए थे। इस के अतिरिक्त यह काऊंटी दक्षिणी चीन में ऐसा एक स्थान भी है,जहां हुई खुदाई में प्राप्त प्राचीन चीनी शब्द अंकित कछुए के कवचों की संख्या सर्वाधिक है।
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