थाङ काल में पश्चिम एशिया, योरप और अफ्रिका के अनेक देशों के साथ भी चीन के संबंधों का विकास हुआ। फारस, ताचि और पूर्वी रोमन साम्राज्य के सद्भावना प्रतिनिधिमण्डल समय-समय पर चीन-यात्रा पर आते रहे।
651 से 798 तक केवल ताचि राज्य के 30 से अधिक सद्भावना प्रतिनिधिमण्डलों ने चीन की यात्रा की थी।
फारस और अरब देशों के व्यापारी , विद्यार्थी ,कलाकार और धर्म-प्रचारक थाङकालीन चीन के अनेक सुप्रसिद्ध नगरों में रहने के लिए आते रहते थे।
उनमें से अनेक व्यापारी, जो रेशम और आभूषणों का व्यापार करते ते, तथा बहुत से विद्यार्थी चीन में स्थाई रूप से बस गए थे।
केवल याङचओ नगर में ही कई हजार फारसी और अरबी व्यापारी रहा करते थे। कहा जाता है कि क्वाङचओ नगर में उनकी संख्या दसियों हजार तक पहुंच गई थी।
थाङकाल में ही पारसी धर्म, मानिकीवाद, नेस्टोरियनवाद और इसलाम का चीन में प्रवेश हुआ। विदेशी नृत्य, संगीत और नटकला भी इसी काल में चीन पहुंची।
हाल के वर्षों में , शेनशी प्रान्त की शीआन शहर के हच्या गांव में खुदाई से फारस की रजतमुद्राएं, पूर्वी रोमन साम्राज्य की स्वर्णमुद्राएं और विदेशी मूल के अन्य अवशेष प्राप्त हुए हैं, जिस से पता चलता है कि थाङ काल में चीनी जनता और पश्चिम एशिया तथा योरपीय देशों की जनता के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध कायम हो चुके थे।
चीन से भी रेशम, दस्तकारी वस्तुएं तथा अन्य मूल्यवान सांस्कृतिक वस्तुएं पश्चिम एशिया और योरप के देशों को रेशम मार्ग के जरिए बड़ी मात्रा में निर्यात की जाती थीं ।
कागज बनाने , रेशम की बुनाई करने तथा दस्तकारी वस्तुओं का निर्माण करने की तकनीक ताचि के रास्ते चीन से अफ्रीका और योरप पहुंची। चीन की संस्कृति के समावेश से संबंधित देशों की संस्कृति समृद्ध हुई।
पांच राजवंशों के जमाने में सामन्ती शक्तियों के बीच की निरन्तर लड़ाइयों के कारण सामाजिक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा था।
960 में उत्तरकालीन चओ राजवंश के शाही रक्षकों के कमांडर चाओ ख्वाङइन (927-976) ने एक सशस्त्र राजविप्लव कर स्वयं को सम्राट घोषित कर दिया और अपने राज्य का नाम सुङ रखा, जो इतिहास में उत्तरी सुङ राज्य (960-1126) के नाम से मशहूर हुआ।
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