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(GMT+08:00) 2007-05-17 17:36:09    
कोचिन में चङ हो की याद

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चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं । दोनों देशों के बीच आवाजाही का इतिहास बहुत पुराना है । ईस्वी पंद्रह शताब्दी में महान चीनी समुद्री यात्री चङ हो ने सात बार मिन राजवंश के व्यापारिक जहाज़ों का नेतृत्व कर अटलांटिक महासागर की यात्रा की थी, जिस से चीन और इस क्षेत्र के विभिन्न देशों के बीच व्यापारिक व सांस्कृतिक आवाजाही बढ़ी।इन देशों में भारत भी शामिल है। चङ हो और उस का जहाज़ दल कई बार भारत से गुजरा, भारत में चीन की शांतिपूर्ण नीति का प्रसार-प्रचार किया और व्यापार किया । इस से चीन-भारत संबंधों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय भी जुड़ा । दक्षिण पश्चिम भारत स्थित बंदरगाह कोचिन का महान चीनी यात्री चङ हो के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है । कोचिन की यात्रा के दौरान मैंने चङ हो की छवि की खोज की ।

कोचिन के समुद्रतटीय क्षेत्र में बड़े-बड़े छाते जैसे जाल तने हुए दिखाई पड़ते हैं । ये जाल तीस मीटर ऊंची लकड़ी के सहारे खड़े हैं । शाम को समुद्र तट से सूर्यास्त बहुत सुन्दर लगता है । इन जालों को कोचिन में चीनी फीशिंग नेट यानी चीनी मछुआ जाल कहा जाता है । कहा जाता है कि जब चङ हो के नेतृत्व में जहाज़ दल कोचिन पहुंचा तो उस समय ही चीनी मछुआगिरी की तकनीक स्थानीय लोगों को पता चली, इस लिए इन जालों को चीनी फिशिंग नेट कहा जाता है । स्थनीय मछुआ जेम्स ने मछुआ जाल को कैसे प्रयोग करते हैं ,हमें बताया, "मछुआ जाल पर काम करने के लिए पांच पुरूष चाहिएं । पांच व्यक्ति एक साथ डोर पकड़कर मछुआ जाल को पानी में फैंकते हैं । इस के दो तीन मिनट के बाद जब इसे पानी से निकालते हैं तो जाल में मछली, झींगे और केकड़े आदि मिल जाते हैं । आम तौर पर स्थानीय लोग सुबह छ बजे से शाम को छ बजे तक काम करते हैं और एक दिन में कोई दो सौ से ज्यादा बार मछुआ जाल को पानी में फैंका या निकाला जाता है ।"

नार्वे से आए एक पर्यटक चाइनिज़ फिशिंग नेट यानी चीनी मछुआ जाल देखने के लिए विशेष तौर पर कोचिन आए । उन के विचार में मछुआ जाल होने के कारण यह जगह बहुत दिलचस्प है । इस नार्वे पर्यटक का कहना है,"मैं मछुआरों को इन जालों का प्रयोग कर मछलियों का शिकार करते देखने के लिए सुबह ही यहां आ गयी । मैं ने उन की सहायता करने की कोशिश भी की ।मुझे लगता है कि यह बहुत थका देने वाला काम होने के बावजूद बहुत अनोखा भी है । मैं इन मछुआ जालों को पसंद करती हूँ । देखने में ये जाल बहुत सुन्दर हैं, और समुद्र तट की सजावट भी हैं ।"
कोचिन भारत के पश्चिमी समुद्र तटीय क्षेत्र में स्थित शहर है , जो मुम्बई के बाद भारत की दूसरी बड़ी महत्वपूर्ण बंदरगाह है । यह बंदरगाह मशहूर चीनी यात्री चङ हो और उस के जहाज़ दल के ठहरने वाली जगह भी है । यहां चङ हो और चीनी जहाज़ दल व्यापार करने और यात्रा के लिए आपूर्ति करने का स्थल भी है । चीनी पेइचिंग विश्वविद्यालय के प्रोफैसर कङ यिन चङ ने कहा कि चङ हो के जहाज़ दल कभी कभार कोचिन में कई महीने तक ठहरता था । उन का कहना है ,"चङ हो ने वर्ष 1405 से 1433 तक सात बार अटलांटिक महासागर की यात्रा की । हर बार की यात्रा के दौरान वे भारत के पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तटीय क्षेत्रों तक पहुंचे थे । अपनी दूसरी बार की यात्रा के दौरान चङ हो कोचिन और कालीकट पहुंचे । पहली तीन बार की यात्राओं में चङ हो और उन के जहाज़ दल कालीकट पहुंचने के बाद वापस लौटे। लेकिन चौथी से सातवीं बार की यात्रा में वे कालीकट में कई महीने ठहर कर अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी समुद्र तटीय क्षेत्र की ओर रवाना हुए ।"

चाइनिस फिशिंग नेट यानी चीनी मछुआ जाल को चीनी यात्री चङ के जहाज़ दल के कोचिन और कालीकट आदि क्षेत्रों में गतिविधियां चलाने के प्रतीक के रुप में देखा जाता है । स्थानीय लोगों की जुबान पर चीनी यात्री चङहो का नाम परिचित नाम है । भारतीय इन्जीनियर श्री तिलकन ने कहा ,"यह चाइनिस फिशिंग नेट चीन से भारत तक पहुंचने का इतिहास कोई छ सौ वर्ष से अधिक पुराना है । हमारे यहां एक किताब है, जिसमें
उल्लिखित है कि चङ हो का जहाज़ दल कोचिन आया था । इस से जाहिर है कि कम से कम छ सौ से ज्यादा वर्ष पूर्व चीन और भारत का संबंध बहुत घनिष्ठ था । कोचिन का मछुआ जाल ऐसे घनिष्ठ संबंध का मज़बूत सबूत है ।"

चीनी यात्री चङ हो की चर्चा में श्री तिलकन ने कहा ,"लगभग छ सौ वर्ष से अधिक पूर्व चङ हो कोचिन आए थे, और उन्होंने कालेरा प्रांत की सभ्यता और कोचिन में अपने जहाज़ दल की गतिविधियों को अंकित किया । मैं ने चङ हो के बारे में यह किताब पढ़ी और अच्छा लगा । इस किताब में तत्कालीन भारत की सभ्यता व कालेरा की सभ्यता के बारे में बताया गया है । मैं ने चालीस वर्ष पूर्व से भी अधिक पहले यह किताब पढ़ी थी और अब तक मुझे इस के विषय याद हैं ।"

वास्तव में कोचिन में चीनी यात्री चङ हो के बारे में जानकारी रखने वाले व्यक्ति ज्यादा नहीं हैं । क्योंकि चङ हो की यादों के अनेक अवशेष अब खंडहर बन गए हैं । लेकिन कोचिन की यात्रा के दौरान हम ने देखा कि यहां चङ हो के संदर्भ में कोई न कोई चिन्ह्न मौजूद है । उदाहरण के लिए कोचिन के तट पर चीनी शैली की नाव दिखाई पड़ती हैं , यहां हर साल नाव प्रतियोगिता चलायी जाती है, जो दक्षिण चीन में होने वाली नाव प्रतियोगिता जैसी ही है . कोचिन के ऐसे रीति-रिवाज़ भारत की अन्य जगहों में मौजूद नहीं हैं । इस के साथ ही कोचिन के भारत पुर्तगाल संग्रहालय में आज तक चीन के प्राचीन मिट्टी के बर्तन आदि सांस्कृतिक अवशेष अभी भी सुरक्षित हैं ।

भारतीय इन्जिनियर श्री तिलकन का विचार है कि वास्तव में चाइनिश फिशिंग नेट यानी चीनी मछुआ जाल चङ हो के जहाज़ दल के साथ चीन से आया था या नहीं, यह महत्वपूर्ण बात नहीं है । महत्वपूर्ण बात यह है कि चीन और भारत की जनता को पारस्परिक समझ व मैत्री को बढ़ाने के लिए ज्यादा कोशिशें करनी चाहिएं । उन का कहना है ,"चीन और भारत के बीच एक जैसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है ,दोनों प्राचीन सभ्यताएं हैं । इस तरह हम दोनों देशों को पारस्परिक आवाजाही को आगे बढ़ाना चाहिए । मेरी आशा है कि ज्यादा से ज्यादा चीनी लोग भारत आएंगे और अधिक से अधिक भारतीय लोग चीन जाएंगे । इस तरह हम दोनों देश एक दूसरे से सीख सकते हैं और पारस्परिक समझ व मैत्री को मज़बूत कर सकते हैं ।"