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(GMT+08:00) 2007-05-15 17:04:46    
तिब्बती हास्य संवाद कला में लगे कलाकार सोलांग त्सेरन

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आवाज़----

अभी आप ने जो आवाज़ सुनी, वह तिब्बती हास्य संवाद का एक अंश है । चीन की हान जाति की हास्य संवाद कला और तिब्बत की प्राचीन वाचन कला को मिश्रित कर तिब्बती शैली का हास्य संवाद रूप ले लिया गया । अभी आप ने जो तिब्बती हास्य संवाद कला का एक अंश सुना, वह तिब्बती कलाकार सोलांग त्सेरन ने रचा है । आज के इस लेख में हम आप को परिचय देंगे, इस तिब्बती कलाकार की कहानी ।

श्री सोलांग त्सेरन आधुनिक काल में तिबब्ती भाषा में ऑपेरा व वाचन कलाकृति रचने वाले प्रथम तिब्बती कलाकार हैं । इस के साथ ही वे तिब्बती वाचन कला के क्षेत्र में विशेषज्ञ भी हैं । उन्होंने《तिब्बती जातीय हास्यसंवाद व वाचन कला》नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिस में तिब्बत के समृद्ध वाचन हास्य संवाद संस्कृति का सारांश किया गया।

62 वर्षीय सोलांग त्सेरन का जन्म तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हुआ । मिडिल स्कूल से स्नातक होने के बाद वे तिब्बती ऑपेरा मंडली के एक अभिनेता बने । लेकिन इस के बाद थोड़े समय में उन्हें महसूस हुआ कि उन की रूचि अभिनय के बजाए कला साहित्य रचने में है । इस तरह गत शताब्दी के सत्तर वाले दशक में तीस साल से ज्यादा उम्र में सोलांग त्सेरन ने कला साहित्य रचने में काम शुरू किया। इस की चर्चा में तिब्बती बंधु सोलांग त्सेरन ने कहा

"उसी समय मैं बहुत खुश था । लेकिन कला साहित्य रचना मेरे लिए मुश्किल काम भी था । कोई काम विशेष शुरू करने के बाद मुझे गहरा अनुभव हुआ कि वास्तविक स्थिति मेरी कल्पना से दूर थी । कला साहित्य के सृजन के लिए जीवन के पर्याप्त अनुभव और समृद्ध ज्ञान उपलब्ध होना चाहिए । इस तरह शुरू-शुरू में मुझे बहुत कठिन लगता था और मैं ने लघु ऑपेरा और गीत के बोल लिखने से अपना नया केरियर शुरू किया । मेरी रचनाओं को तिब्बती ऑपेरा मंडली के अभिनेता-अभिनेत्रियों द्वारा मंच पर प्रदर्शित किया जाने लगा , इस से मुझे भारी प्रेरणा मिली । धीरे-धीरे मेरे सामने कला रचना तैयार करने का द्वार खुल गया ।"

ज्यादा बेहतर कला रचनाएं लिखने के लिए सोलांग त्सेरन ने बड़ी संख्या में तिब्बती क्लासिकल ऑपेराओं का अध्ययन किया और इस के साथ ही उन्होंने विभिन्न स्थानों में जा कर लोकगीतों को इक्ट्ठा करने की कोशिश भी की । कई सालों की कोशिशों के बाद, सोलांग त्सेरन ने तिब्बत की लोक कथाओं के आधार पर एक दुखांत ऑपेरा《सिचि पिचि》लिखा । यह एक दुखांत प्रेम नाटक है, जिस में यह दर्शाया गया कि तिब्बती प्रेमी-प्रेमिका ने आधुनिक समाज में मौजूद भिन्न-भिन्न मोह व विकल्प के कारण अंत में अपने प्रेम संबंध का विच्छेद कर दिया और दोनों ने एक दूसरे को बाई-बाई कह डाला । सोलांग त्सेरन ने कहा कि उन्होंने इस ऑपेरा को रचने में भारी शक्ति लगाई । लेकिन ऑपेरा प्रस्तुत किए जाने के बाद ऑपेरा नाटक क्षेत्र में बहुत से कलाकारों ने उस की आलोचना की , जिस से उन्हें बड़ी विफलता का एहसास लगा । इस की याद करते हुए तिब्बती बंधु सोलां त्सेरन ने कहा

"यह मेरी पहली ऑपेरा रचना है , जिस में मैं ने बड़ी शक्ति लगाई थी । लेकिन ऑपेरा जगत के कई अनुभवी अध्यापकों-अध्यापिकाओं ने इस में इस तरह की कमी या उस तरह की गलति ढूंढ निकाली । उस वक्त मेरा विश्वासन और ऑपेरा रचने का उत्साह खासा क्षीण हुआ था । मैं ने सोचा कि शायद ऑपेरा रचने में मेरी प्रतिभा नहीं है ।"

लेकिन सोलांग त्सेरन ने अपने इस काम को नहीं छोड़ा तथा और ज्यादा कोशिश की । उन्होंने ऑपेरा《सिचि पिचि》में नौ बार संशोधन किया , और अंत में इस ऑपेरा को मंच पर लाया गया। ऑपेरा《सिचि पिचि》एक ऐसा ऑपेरा है , जिस में गायन , वाचन व हास्य संवाद कला का मिश्रित प्रयोग किया गया और नाटक का विषय आधुनिक जीवन से बहुत जुड़ा है । इस तरह ऑपेरा के प्रदर्शन के थोड़े समय बाद दर्शकों ने उस का जोशीला स्वागत किया, उसे प्रथम राष्ट्रीय जातीय कला साहित्य पुरस्कार हासिल हुआ ।

अपने प्रथम ऑपेरा की सफलता से सोलांग त्सेरन को भारी प्रेरणा मिली । इस के बाद, वे अकसर साधारण तिब्बती लोगों के बीच जा-जा कर तिब्बती जाति की सुन्दर अर्थपूर्ण भाषाएं व दिलकश कहानियां इक्ट्ठा करते रहे हैं । उन्होंने तिब्बती जाति की विशेषता वाली अनेक रचनाएं रचीं, जिन में से तिब्बती भाषी हास्य संवाद की रचना《गरीबी उन्मूलन》को भारी सफलता हासिल हुई । इस हास्य संवाद रचना में सुधार और खुले द्वार की नीति लागू होने के बाद तिब्बती किसानों में गरीबी से छुटकारा पाने की यथार्थ स्थिति अभिव्यक्त की गई, जो तिब्बती जनता के वास्तविक जीवन के बहुत नज़दीक है । बहुत से दर्शक विशेष तौर पर दूसरे स्थानों से इस प्रोग्राम देखने के लिए ल्हासा आते हैं ।