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आज के इस कार्यक्रम में मऊ नाथभंजन उत्तर प्रदेश के दरखशां खातूल,राशिद इर्शाद अंसारी,शमशाद अहमद अंसारी,आफ़ताब अहमद,जाहिदा खातून अंसारी, बिलासपुर छत्तीसगढ के चुन्नीलाल कैवर्त,दरभंगा बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू मेहती और मुकेश कुमार के पत्र शामिल हैं।
मऊ नाथ भंजन उत्तर प्रदेश के दरखशां खातूल,राशिद इर्शाद अंसारी,शमशाद अहमद अंसारी,आफ़ताब अहमद,जाहिदा खातून अंसारी और बिलासपुर छत्तीसगढ के चुन्नीलाल कैवर्त तथा दरभंगा बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर, राम बाबू मेहती और मुकेश कुमार ने अलग-अलग तौर पर प्रश्न पूछे हैं कि चीन में हर वर्ष कितनी फिल्में बनती हैं? क्या यहां भी फिल्म सेंसर बोर्ड है ? किस निर्देशक और कलाकार को अधिक लोकप्रियता हासिल है?
दरभंगा बिहार के प्रहलाद कुमार ठाकुर,राम बाबू मेहती,मुकेश कुमार के सवाल हैं कि चीन के चलचित्र उद्योग के विकास का संक्षिप्त इतिहास क्या है ? सब से लोकप्रिय अभिनेता व अभिनेत्री कौन-कौन हैं? उन्हें एक फिल्म के लिए कितना पैसा मिलता है और क्या अब तक किसी चीनी फिल्म अभिनेता को ऑस्कर पुरस्कार मिला है?
चीनी फिल्म उद्योग का इतिहास काफी पुराना है.1905 में पहली चीनी फिल्म बनी थी.यह था पेइचिंग के एक फोटाग्राफर रन चिनफंग द्वारा निर्मित देश का पहला मूक वृतचित्र,जो पेइचिंग ऑपेरा तिनचुंग पहाड़ी पर आधारित था.1908 में चीन का पहला सिनेमा घर स्थापित हुआ,जिस का मालिक एक स्पेनी था.1911 में शांघाई शहर में पहला मूक कथाचित्र येन रवेनशान की कहानी बना औऱ 1934 में फीचर फिल्म कालेज स्टूडेंट्स से चीन में बोलती फिल्मों का युग शुरू हुआ.1948 में चीनियों को देश की पहली रंगीन फिल्म देखने का मौका मिला.यह पेइचिंग ऑपेरा जीवन औऱ मरण का फिल्मी रूपांतर था.जब दुनिया में 35 मिलीमीटर की फिल्म बननी शुरू हुई.तो 1962 में चीन ने ऐसी पहली फिल्म जादूगर नाम से बनाई.चीन अपने फिल्म उद्योग के विकास को काफी महत्व देता रहा है.पिछले शताब्दी के 50 वाले दशक के शुरू में ही पेइचिंग में फिल्म प्रतिष्ठान कायम हुआ.चीन के बहुत से प्रसिद्ध निर्देशक-फिल्मकार इसी में तैयार हुए हैं,चीन के बड़े-बड़े फिल्म स्टूडियो पेइचिंग के अलावा उत्तर-पूर्वी चीन के छांगछुंग शहर,पूर्वी चीन के शांघाई शहर.दक्षिणी चीन के क्वांगचो शहर और दक्षिण पश्चिमी चीन के छुंगतु शहर में स्थित हैं.
चीन में प्रतिवर्ष औसत 100 फिल्में बनाई जाती हैं.कम फिल्में बनने का कारण यह बताया जा रहा है कि टीवी,वीसीडी और डीवीडी सिनेमा से दर्शकों की छीनाझपटी करने में विजय पा गए है.दूसरा कारण यह कि फिल्मों के टिकटों के दाम काफी ऊंचे हो गए हैं,जो वेतनभोगियों की जेब पर भारी पड़ते हैं.इस के चलते कुछ सिनेमाघरों में टिकटों के दाम घटा दिए गए हैं.पर तीसरा और सब से बड़ा कारण यह है कि ऐसी बढ़िया फिल्में इधर ज्यादा बनी नहीं है,जिन्हें देखकर दर्शक सिनेमाघर से खुशी-खुशी वापस लौट सकें,उन में ज्यादातर लोग निराश ही निकलते दिखाई दिए हैं.यों पिछले कुछ सालों में यह हालत कुछ बदली है.फिर भी लगता है कि फिल्मकारों को दर्शकों को सिनेमाघरों में वापस खींचने के लिए अब भी बहुत सारे काम करने बाकी हैं.इस समय चीनी दर्शक आम तौर पर तब सिनेमाघर जाते हैं,जब वहां हालीवुड या किसी यूरोपीय देश से आयात नामी फिल्म या मशहूर चीनी व विदेशी फिल्मकारों द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित फिल्म दिखाई जा रही हो.
चीन में भी फिल्म सेंसर बोर्ड है. वह भी भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड की तरह अपनी भूमिका निभाता है.चीन में प्रसिद्ध व लोकप्रिय फिल्म-निर्देशक चांग ई-मो,छन खाई-क,फंग श्याओ-कांग,ह-फिंग आदि हैं,जिन में से चांग ई-मो और छन खाई-क विश्वप्रसिद्ध हैं और इन दोनों की फिल्मों को कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं. सब से लोकप्रिय अभिनेता व अभिनेत्री आजकल क्रमश: ल्यू-ये और चांग ज़ी-ई हैं.उन के बाद और कुछ युवा अभिनेता और अभिनेत्रियां भी लोकप्रिय हैं.अभिनेत्री चांग ज़ी-ई देश में भी नहीं,अंतरराष्ट्रीय फिल्मजगत में भी बहुत सक्रिय हैं.उन्हों ने हालीवुड के प्रसिद्ध निर्देशक एन.ली के "Crouching Tiger, Hidden Dragon" और मशहूर चीनी निर्दशक चांग ई-मौ के " शी म्यान माई फू " में मुख्य भूमिकाएं निभाईं हैं.
जहां तक चीनी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के वेतन का सवाल है,वह उन की श्रेष्ठता पर निर्भर करता है.आम तौर पर वे अन्य पेशों में लगे लोगों की अपेक्षा ज्यादा पैसा कमाते हैं.भारत में भी शायद यही स्थिति है.
अफसोस की बात है कि अब तक किसी चीनी फिल्म अभिनेता को ऑस्कर पुरस्कार नहीं मिला है,लेकिन चीनी अभिनेत्री चांग ज़ी-ई को 2006 के शुरू में हालीवुड की एक फिल्म में अपने सशक्त अभिनय के कारण ऑस्कर की सब से श्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए नामित किया गया था.

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