चीन और जापान के संबंध, जिनकी शुरुआत हान राजवंशकाल में हुई थी, बिना किसी व्यवधान के निरन्तर विकसित होते रहे। 630 से लेकर 838 तक के लगभग दो सौ वर्षों के दौरान जापान द्वारा अपने तेरह प्रतिनिधिमंडल चीन भेजे गए।
इन प्रतिनिधिमण्डलों में कम से कम 250 और ज्यादा से ज्यादा 600 तक सदस्य होते थे, तथा उनमें राजनयिक दूतों, सेवकों और नाविकों के अलावा विद्यार्थी, विद्वान, भिक्षु, चिकित्सक, चित्रकार, संगीतज्ञ और शिल्पी भी शामिल होते थे।
ये लोग चीनी राजनीतिशास्त्र, विधिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, बौद्धधर्म, कला-साहित्य, खगोलविज्ञान, पंचांगशास्त्र, चिकित्साशास्त्र , स्थापत्य और हस्तशिल्प का अध्ययन करने चीन आते थे।
जापान की राजनीति समाज और संस्कृति पर इनका गहरा प्रभाव पड़ा।
चीन और जापान के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में विद्यार्थियों और बौद्धभिक्षुओं की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही। किबीनो मकीबी नामक जापानी विद्यार्थी ने चीन में रहकर 17 वर्षों (717-734) तक अध्ययन किया और शास्त्रीय अध्ययन, इतिहास, कानून व तकनालाजी के क्षेत्रों में सराहनीय योगदान किया। वह स्वदेश लौटते समय अपने साथ बहुत-सी चीनी किताबों भी ले गया।
उस ने जापानी रीतियों , पंचांग-निर्माण और संगीत के विकास में योगदान किया। अबेनो नाकामारो नामक एक अन्य जापानी विद्यार्थी 717 में चीन आया और यहां उसने चीनी नाम छाओ हङ ग्रहण कर लिया।
वह 770 में अपने निधन तक थाङ राजदरबार के एक अफसर के रूप में काम करता रहा। थाङकालीन कवियों वाङ वेइ और ली पाए के साथ उसके घनिष्ठ संबंध थे।
थाङ राजवंशकाल में बहुत-से चीनियों ने भी जापान की यात्रा की, जिनमें प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान च्येन चन का नाम सबसे पहले आता है। 743 में उसे जापानी भिक्षुओं द्वारा जापान की यात्रा करने के लिए आमंत्रित किया गया।
उसने 10 वर्षों में छै बार समुद्री मार्ग से जापान पहुंचने का प्रयास किया और अन्ततः754 में वहां पहुंचने में सफल हुआ। उस समय उस की अवस्था 67 वर्ष थी। वह अपने साथ बहुत से बौद्धग्रन्थ भी जापान ले गया।
जापान पहुंचकर उसने औषधीय उपयोग की अनेक जड़ी-बूटियों का पता लगाया और उपचार के गूढ़ नुसखे नामक पुस्तिका लिखी। जापान की तत्कालीन राजधानी नारा में च्येन चन के निर्देशन में तोसोदई मन्दिर का निर्माण किया गया। इस मन्दिर में अनेक बौद्घ प्रतिमाएं हैं।
इसी मन्दिर से च्येन चन ने चीनी स्थापत्य और मूर्तिकला का जापान में प्रचार किया। उसके शिष्यों द्वारा निर्मित उसकी खुद की प्रतिमा आज भी इस मन्दिर में सुरक्षित रखी हुई है। तोशोदाई मन्दिर और उसमें रखी च्येन चन की प्रतिमा चीन और जापान के मैत्रीपूर्ण संबंधों के प्रतीक हैं।
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