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(GMT+08:00) 2007-05-10 15:22:02    
बोओ एशिया मंच में पूर्वी एशियाई देशों से ऊर्जा सहयोग को मज़बूत करने की अपील की गई

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कुछ दिन पहले समाप्त बोओ एशियाई मंच के वार्षिक सम्मेलन में पूर्वी एशिया के ऊर्जा सुरक्षा पर सम्मेलन में उपस्थित व्यक्तियों का ध्यान केंद्रित हुआ । पूर्वी एशिया के अनेक देशों के अधिकारी व उद्यमियों का विचार है कि वर्तमान में एशिया में तेल संसाधन का भंडारण कम है , पर तेल की मांग बहुत अधिक है , इसलिये विश्व में ऊर्जा का दाम उच्च होने की स्थिति में पूर्वी एशियाई देशों को सहयोग करना चहिए, ताकि क्षेत्रीय ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी की जा सके ।

वर्तमान में पूर्वी एशिया विश्व में तेल व प्राकृतिक गैस के सब से बड़े उपभोक्ता क्षेत्रों में से एक है, लेकिन यहां ऊर्जा का भंडारण सीमित है और ऊर्जा के आयात पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है । विश्व में सब से बड़ी प्रबंधन परामर्श संस्था डेलोइटे एंड तोउचे द्वारा हाल में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार एशिया व प्रशांत क्षेत्र में ऊर्जा की मांग कुल विश्व की मांग का तीस प्रतिशत है , जबकि आपूर्ति सिर्फ़ दस प्रतिशत है । तेज़ आर्थिक विकास के चलते पूर्वी एशिया को कम पावर की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इस तरह ऊर्जा सुरक्षा पूर्वी एशियाई देशों के सामने मौजूद सब से महत्वपूर्ण सवाल बन गया है ।

चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार समिति के उप निदेशक श्री छङ द मिंग ने बोओ एशिया मंच में अपील की कि पूर्वी एशियाई देश कारगर ऊर्जा सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना करें और ऊर्जा सुरक्षा सवाल का समान रुप से मुकाबला करें । उन का कहना है

"हमें आपसी लाभ वाली नयी ऊर्जा सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना करनी चाहिए । चीन को इस में भाग लेना चाहिए । अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा सहयोग में संसाधन के समान विकास के अलावा स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग और ऊर्जा की क्षमता की उन्नति का समान अनुसंधान करना और सरकारों के बीच द्विपक्षीय व बहुपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करना व इन पर विचार-विमर्श करना आदि शामिल हैं ।"

सूत्रों के अनुसार चीन अमरीका के बाद विश्व में दूसरा बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और साथ ही तीसरा बड़ा तेल का आयात करने वाला देश भी । वर्ष 2001 के बाद से लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय तेल का दाम लगातार बढ़ने और चीनी अर्थतंत्र के तेज विकास की पृष्ठभूमि में चीन में ऊर्जा की आपूर्ति तनावपूर्ण स्थिति में फंस गयी है ।

श्री छङ द मिंग ने कहा कि अनेक देशों की तरह चीन आपात स्थिति के मुकाबले के लिए रणनीतिक तेल भंडार की स्थापना करेगा । उन्होंने संकेत किया कि वर्ष 2010 तक चीन तीस दिन की आयातित मात्रा के बराबर तेल रणनीतिक भंडार की स्थापना करेगा । यह मात्रा जापान और कोरिया गणराज्य जैसे देशों द्वारा किए गए 90 दिन की आयातित मात्रा के बराबर रणनीतिक तेल भंडार से बहुत कम है । सूत्रों के अनुसार चीन में तेल भंडार कार्यालय की स्थापना की गई है और चार रणनीतिक तेल भंडार केंद्रों के निर्माण की योजना बनायी जा रही है ।

श्री छङ द मिंग ने कहा कि घरेलू ऊर्जा की आपूर्ति की तनावपूर्ण स्थिति में चीन की आशा है कि पूर्वी एशियाई देशों के साथ ऊर्जा सहयोग को मज़बूत किया जाए । मसलन चीन की नाभिकीय बिजली विकास परियोजना के अनुसार 2020 में चीनी नाभिकीय बिजली जनरेटरों की क्षमता चार करोड़ किलोवाट होगी, जो वर्तमान की तुलना में छ गुना अधिक होगी । लेकिन चीन में नाभिकीय बिजली के विकास के सामने नाभिकीय संसाधन की कमी और नाभिकीय कूड़े के निपटारे के अनुभव का अभाव आदि सवाल मौजूद हैं , इस तरह चीन को इन क्षेत्रों में पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग करने की भारी आवश्यकता है।

सूत्रों के अनुसार इधर के वर्षों में विश्व में ऊर्जा की तनावपूर्ण स्थिति से पूर्वी एशियाई देशों के ऊर्जा बाज़ार में खींचातानी की स्थति पैदा हो सकती है, जिस से ऊर्जा के अभाव वाले पूर्वी एशियाई देशों को आसानी से नुकसान पहुंच सकता है ।

इस के प्रति कोरिया गणराज्य के सिओल राष्ट्रीय युनिवर्सिटी के प्रोफैसर श्री श्री किम ताइयू ने कहा कि पूर्वी एशियाई देशों को ऊर्जा के दाम की स्थिरता को बनाए रखने के लिए ऊर्जा नीति को बनाने में एक एकीकृत रूप अपनाना चाहिए । उन्होंने कहा

"वर्तमान में हमारे पास एक सब से अच्छा उपाय नहीं है, परिणामस्वरूप हमारे बीच की प्रतिस्पर्द्धा से ऊर्जा का दाम दिन ब दिन बढ़ रहा है । क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा ऊर्जा सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय सहयोग के सामने सब से बड़ी चुनौती है । अगर उपभोक्ता देशों के बीच सहयोग की व्यवस्था की स्थापना की जा सके, जिस का मकसद ऊर्जा बाजार में बुरी प्रतिस्पर्द्धा से बचना हो, तो मेरा विचार है कि ऐसी व्यवस्था वर्तमान व्यवस्था से ज्यादा अच्छी होगी ।"

श्री किम ताइयू ने सुझाव पेश किया कि पूर्वी एशिया को तेल के दाम को स्थिर बनाने वाले कोष की स्थापना करनी चाहिए, जो वर्तमान ऊर्जा का स्थान लेने वाली परिहार्य ऊर्जा परियोजना के विकास व संरक्षण के लिए पूंजी व तकनीकी समर्थन प्रदान करे । इस से इस क्षेत्र में एक देश के सामने मौजूद जोखिम को कम करने में भी और एशिया के छोटे आर्थिक पैमाने वाले देशों की भागीदारी को प्रोत्साहन देने में भी मदद मिलेगी । इस तरह एशिया की ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी की जा सकेगी ।

ऊर्जा सुरक्षा को न सिर्फ़ देशों के बीच सहयोग की आवश्यकता है , कारोबारों के बीच सहयोग भी जरूरी है । चीनी समुद्री तेल कंपनी के मैनेजर श्री फ़ू छङय्वी का विचार है कि पूर्वी एशियाई देशों के कारोबारों को ऊर्जा का समान विकास करने के अलावा ऊर्जा उपभोग की क्षमता की उन्नति, ऊर्जा खपत में कमी और नई ऊर्जा का अनुसंधान व विकास आदि क्षेत्रों में भी सहयोग करना चाहिए । उन का कहना है

"हमें नयी तकनीक और नई ऊर्जा के अनुसंधान में देशों के बीच सहयोग से ले कर कारोबारों में आपसी सहयोग तक विस्तार करना चाहिए । नई ऊर्जा, परिहार्य ऊर्जा और पुरूत्पादनीय ऊर्जा के अनुसंधान तथा इस में लगाई गई वास्तविक पूंजी का विस्तार करना चाहिए । आज की कोशिश का मतलब कल की ज्यादा आपूर्ति होगी ।"

दोस्तो, वर्तमान में चीन, जापान और कोरिया गणराज्य आदि पूर्वी एशियाई देशों के कारोबारों के बीच ऊर्जा सहयोग वास्तविक दौर में प्रवेश कर गया है । अनेक पूर्वी एशियाई कारोबार समान रूप से तेल व प्राकृतिक ऊर्जा का विकास करेंगे और पुनरुत्पादनीय ऊर्जा, सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत करेंगे । बोओ एशिया मंच में भाग लेने वाले विशेषज्ञों का विचार है कि दूरगामी दृष्टि से देखा जाए तो ऊर्जा सुरक्षा के लिए सहयोग करना पूर्वी एशियाई देशों का अपरिहार्य विकल्प है ।