थाङ राजवंश चिकित्साशास्त्र की उपलब्धियों के लिए भी प्रसिद्ध है। थाङ शाही चिकित्सा संस्थान में चिकित्साकार्य का विशेषीकरण इस सीमा तक हो चुका था कि औषधीय चिकित्सा, एक्यूपंक्चर , मालिश आदि की अलग-अलग शाखाएं और विभाग थे। प्रत्येक विभाग के अपने अलग प्राध्यापक और विद्यार्थी होते थे।
औषधीय चिकित्सा विभाग के अन्तर्गत औषधीय चिकित्सा और शल्यचिकित्सा सहित पांच उपविभाग थे। इस काल के चिकित्साग्रन्थों में एक हजार अचूक नुसखे, एक हजार पूरक अचूक नुसखे , संक्रामक रोगों का गूढ़ ज्ञान और थाङ राजवंश का नवीन औषधिग्रन्ध उल्लेखनीय हैं।
सुन सिम्याओ द्वारा लिखित पहले दो ग्रन्थों में विभिन्न रोगों के लक्षणों और प्राचीन नुसखों की जानकारी दी गई है। बाङ थाओ द्वारा लिखित संक्रामक रोगों का गूढ़ ज्ञान, जिससे 21 प्रकार के संक्रामक रोगों का विवरण दिया गया है, चीन के इतिहास में अपनी तरह का पहला ग्रन्थ था।
सू चिङ तथा अन्य चिकित्सकों द्वारा संकलित नवीन औषधिग्रन्थ में 84 प्रकार की चिकित्सोपयोगी जड़ी-बूटियों का वर्णन करने के साथ-साथ कुछ अन्य चिकित्साग्रन्थों में पाई गई गलतियों को सुधार भी लिया गया था।
थाङ राजवंशकाल में आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक प्रगति और आवागमनसुविधाओं में वृद्धि से तत्कालीन चीन और अन्य एशियाई देशों के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढावा मिला।
थाङ राजवंश की राजधानी छाङआन में न केवल विभिन्न देशों के राजदूत बल्कि विदेशी व्यापारी, विद्यार्थी ,भिक्षु, विद्वान, कलाकार और अफसर भी रहा करते थे।
उन के साथ ही उन के देश की संस्कृतियों का भी चीन में आगमन हुआ, जिन के समन्वय से थाङ संस्कृति और समृद्ध व दीप्तिमान हो उठी। साथ ही, थाङकालीन चीन के पास दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए जो कुछ भी था उस का उन्होंने अध्ययन किया, उसे ग्रहण किया और इस प्रकार खुद अपनी संस्कृतियों के विकास में सहायता की।
जिस समय चीन में थाङ राजवंश का शासन अपने प्रारम्भिक दौर में था, कोरियाई प्रायद्वीप में तीन राज्य थे:उत्तर में कोकुली, दक्षीण-पश्चिम में पाएकची और दक्षिणपूर्व में सिल्ला।
चीन में सम्राट श्वेन चुङ के शासन के दौरान, सिल्ला राज्य ने कोरियाई प्रायद्वीप का एकीकरण किया और थाङ राजवंश के साथ मेत्रीपूर्ण संबंध कायम रखे तथा कोरियाई विद्यार्थी पढ़ने के लिए चीन भेजे। केवल 840 में ही सिल्ला राज्य के 105 विद्यार्थी चीन में अपना अध्ययन समाप्त कर कोरिया लौटे थे।
स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने चीनी संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। थाङकालीन चीन और कोरिया के बीच आर्थिक आदान-प्रदान भी लगातार होता रहता था। कोरिया से घोड़े , मवेशी , कपड़ा , जूट , औषधि और मुड़वां पंखे जैसी चीजें चीन भेजी जाती थीं और बदले में चीन से रेशम, चाय, चीनीमिट्टी के बरतन तथा कसीदाकारी की वस्तुएं कोरिया जाती थीं।
कोरियाई संगीत, नृत्य तथा संगीतवाद्य भी चीन आए, और इन सब ने थाङ जनता के जीवन को समृद्ध बनाया।
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