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(GMT+08:00) 2007-04-27 14:59:43    
सीमावर्ती क्षेत्र की शिक्षा को निस्वार्थ सेवा देने वाला शिक्षक वु खछिन

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वर्ष 2006 के शरद काल में दक्षिण सिन्चांग के पामीर पठार पर 40 सालों तक शिक्षा कार्य में लगे हान जातीय शिक्षक श्री वु खछिन का देहांत हुआ , वहां के काश्गर व कजलेसू किरगिज जातीय स्वायत्त प्रिफैक्चर के वेवूर , हान , किरगिज जातियों के शिक्षकों और छात्रों ने विभिन्न रूपों में इस चल बसे बुजुर्ग शिक्षक को श्रृद्धांजलि अर्पित की और सिन्चांग की विभिन्न जातियों के छात्रों के लिए उन की निस्वार्थ सेवा का सिन्हावलोकन किया ।

श्री वु खछिन का वर्ष 1941 में सिन्चांग के काश्गर में जन्म हुआ , आठ साल की उम्र में वे पढ़ने के लिए पेइचिंग भेजे गए । दस साल के बाद उन्हों ने पेइचिंग के उच्च शिक्षालय चुनने के बजाए स्वेच्छे से सिन्चांग के ऊरूमुची प्रथम नार्मल कालेज को वेवूर भाषा सीखने के लिए चुना । वहां से स्नातक होने के बाद श्री वु खछिन ने फिर पामीर पठार में पढ़ाने जाने का निश्चय किया । अपने जीवन काल में श्री वु अकसर कहा करते थे कि अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्रों की बुनियादी शिक्षा के लिए सांस्कृतिक ज्ञान के साथ साथ विभिन्न जातियों के बीच भाषाओं की जानकारी की भी जरूरत है । विभिन्न जातियों की भाषाओं पर प्राप्त ज्ञान अल्प संख्यक जातियों के छात्रों के लिए सिन्चांग से निकल कर देश के अन्य स्थानों में काम व जीवन हेतु अनिवार्य आधार है। इसलिए वे सिन्चांग के वेवूर व किरगिज जातियों के छात्रों से मांग करते थे कि वे आपस में चीन की मुख्य हान जाति की भाषा को अच्छी तरह सीखें और आपस में बातचीत करने की कोशिश करें । वे हमेशा अपनी इस मांग पर डटे रहते थे । उन के एक छात्र ने इस बात की याद करते हुए कहाः

मुझे लगता है कि अध्यापक वु बड़ी निस्वार्थ भावना के साथ काम करते थे और अपने कामकाज में कभी कसर नहीं रहने देते थे । वे संजिदगी से हरेक छात्र को पढ़ाते थे , विशेष कर पढ़ाई में कम अच्छे निकले छात्रों का ख्याल करते थे । वे अलग समय निकाल कर ऐसे छात्रों को मदद भी करते थे ।

कजलेसू में शिक्षा कार्य के बीस से ज्यादा सालों के दौरान उन्हों ने अलग अलग ढंग के छात्रों को पढ़ाने में अलग अलग तरीके अपनाते थे । उन के हान भाषा पाठ विभिन्न जातियों के छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे और उन की पढ़ाई में प्राप्त अंक भी दक्षिण सिन्चांग में पहले स्थान पर थे।

वु के साथ दस से ज्यादा सालों तक साथ साथ पढ़ाने वाले कजलेसू प्रिफेक्चर के प्रथम मीडिल स्कूल के कुलपति श्री आजी ने श्री वु खछिन के कार्यकर्तव्य की याद करते हुए कहाः

अध्यापक वु के दिल में जातीय शिक्षा के प्रति गहरा प्यार संजोए हुआ था , वे छात्रों को प्यार करते थे और अध्यापन काम को पसंद करते थे और उन्हें अध्यापन का प्रचूर अच्छा अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ था । वे बहुत मेहनत करते थे और काम में बड़ी निस्वार्थ भावना रखते थे । इसलिए हान व अन्य जातियों के अध्यापक और छात्र उन्हें बहुत प्यार करते थे । वे हमेशा छात्रों की विशेषता को ध्यान में रख कर उन्हें पढ़ाते थे ।

गत शताब्दी के अस्सी वाले दशक के मध्य में श्री वु खछिन काश्गर नार्मल कालेज में स्थानांतरित हुए । उस के हान और वेवूर भाषा के स्तर बहुत ऊंचे थे , बहुत से प्रशासनिक विभाग उन्हें अपनी संस्था में नेतृत्व का काम करने आना चाहते थे , लेकिन उन्हों ने उन सभी के निमंत्रण से इनकार किया । उन का कहना था कि वे जिंदगी भर सीमावर्ती इलाके में शिक्षा का काम करना चाहते हैं , ताकि अधिक से अधिक अल्प संख्यक जातीय छात्र हान भाषा पर अधिकार कर सकें और हान जाति के छात्र अल्प संख्यक जातियों की भाषा जान सकें । उन की पत्नी लु पोचन ने कहाः 

मैं ने उन से कहा कि स्वायत्त प्रिफैक्चर चाहते हैं कि आप प्रिफैक्चर के नेतृत्वकारी कार्यकर्ता बनें , नेतृत्व का पद हमारी संतानों और रिश्तेदारों के लिए लाभदायक है । लेकिन उन्हों ने इस बात को ले कर मेरे साथ झगड़ा किया और उन्हों ने तलाक करने तक की भी धमकी दी। उन्हों ने कहा कि मैं शिक्षा का काम करता हूं , मेरा कर्तव्य छात्रों की सेवा करना है , मैं केवल अपने परिवार जनों का ख्याल नहीं कर सकता । यह कोई खास हर्ज नहीं है कि हमारे छोटे घर को कुछ न कुछ क्षति पहुंचे ।

इसी तरह श्री वुखछिन अपने साधारण कार्य पद पर असाधारण योगदान करते रहे । वर्ष 1999 में वे रिटायर हो गए और उन के सामने शांगहाई में आरामदेश वृद्धकालीन जीवन बिताने का मौका भी था , लेकिन उन्हों ने काश्गर में आगे हान व वेवूर भाषा पढ़ाने के लिए चुना और दो स्कूलों का आमंत्रण स्वीकार किया ।

छात्रों की सेवा के लिए श्री वु खछिन बहुत कम घर का कामकाज करते थे । एक साल उन की पत्नी शांगहाई में बीमार पड़ी और स्थिति बहुत नाजुक भी थी । पत्नी की देखभाल के लिए श्री वु को मजबूर हो कर शांगहाई जाना पड़ा । जब पत्नी की स्थिति सुधर गयी ,तो सिन्चांग के छात्रों की याद ने फिर उन्हें खासा सताया , उस की इस भावना से पत्नी का दिल पिघल गया और शांगहाई के खुशहाल जीवन को छोड़ कर उन के साथ सिन्चांग लौटी । 40 साल से ज्यादा अवधि में श्री वु खछिन छात्रों को पढ़ाने के काम को सब से महत्वपूर्ण समझते थे । उन के एक छात्र ये चिंगरुए की याद में एक बात कभी नहीं मिट सकती । यानी एक दिन की शाम भारी वर्षा के साथ मुसलाधार ओले भी गिरे , सभी छात्र समझते थे कि अध्यापक वु पढ़ाने के लिए नहीं आएंगे , किन्तु सबों की सोच के विपरीत वे ऐन समय पर कक्षा आ पहुंचे। ये चिंगरूए ने कहाः

पानी से अध्यापक वु का पतलुन पूरी तरह भीगा हुआ था , ओले की वर्षा थम गयी , कक्षा शुरू हुई , सभी छात्र बहुत प्रभावित हो गए , कक्षा इतना शांत हुई , मानो उस में कोई भी मानव नहीं रहा हो । अध्यापक वु की तबीयत ठीक नहीं थी , उन्हें रोज काम शुरू करने से पहले दवा लेनी पड़ती थी । इतने खराब मौसम में भी वे पढ़ाने आ पहुंचे , इसलिए सभी छात्र और कड़ी मेहनत से पढ़ने लगे ।

वर्षों से श्री वु ख छिन कजलेसू किरगिज स्वायत्त प्रिफेक्चर के इतिहास संपादन कार्यालय तथा प्राचीन ग्रंथ संकलन कार्यालय के लिए सामग्रियों का अनुवाद भी करते थे , उन के द्वारा अनुवादित लोक कविताओं की लाइन दस हजार से भी अधिक थी । उन के देहांत से पहले ही उन्हों ने किरगिज जाति के वीर गाथा मानास के हान भाषी अनुवाद को संवारने का काम किया था । उन के साथी श्री ह चीहोंग ने इस की याद करते हुए कहाः

किरगिज जाति का महाकाव्य मानास और वेवूर जाति का महाकाव्य बारह मकाम चीन की अल्पसंख्यक जातियों का शानदार सांस्कृतिक धरोहर है , लेकिन वे सभी अल्पसंख्यक जाति की भाषा और लिपि में है , उन्हें विदेशियों से अवगत कराने के लिए विदेशी भाषाओं में अनुवादित करने की आवश्यकता है । अध्यापक वु ने इन दो महा काव्यों का अनुवाद करने के लिए बहुत से काम किए थे ।

लेकिन बड़ी अफसोस की बात है कि उन का अनुवाद पूरा भी नहीं हुआ है कि वे इस दुनिया से चल बसे । उन के देहांत के दिन भी वे छात्रों को पढ़ाने पर गए , उन की तबीयत अच्छी नहीं थी , पत्नी ने उन्हें घर पर थोड़ा विश्राम करने को कहा , लेकिन उन्हों ने नहीं माना और पढ़ाने के लिए चल गए , इसी दिन , वे चले गए, तो सदा के लिए चल बसे । उन की पत्नी लु पोजन ने संवाददाताओं को बताया कि श्री वु के देहांत पर वे बहुत दुखी हुई थी , किन्तु जब देखा कि उन के छात्र सभी सुयोग्य व्यक्ति बन गए , तो श्रीमती लु पो जन को बड़ी राहत प्राप्त हुई और उन्हें अपने पति की कामयाबी पर बहुत गर्व महसूस हुआ है । उन का कहना हैः

वे जिन्दगी भर मेहनत , संजिदगी, लगन और कार्यपरायणता के साथ काम करते थे और अपनी पूरी जिन्दगी को जीवन के इस सिद्धांत पर अर्पित किया था । उन का हृद्य रोग से ग्रस्त था , मैं उन्हें पढ़ाने जाने नहीं देती थी , लेकिन उन्हों ने कहा कि छात्रों के लिए 45 मिनट का एक क्लास है , इस के लिए मैं ने चार पांच घंटे की तैयारी की है , यह पाठ काफी उपयोगी है , छात्रों के लिए फायदामंद सिद्ध होगी । उन्हें नहीं पढ़ाने से उन्हें हानि पहुंचेगी ।

श्री वु खछिन अब इस दुनिया से चल बसे है, लेकिन उन्हों ने सिन्चांग के विभिन्न जातियों के छात्रों की शिक्षा के लिए जो भारी योगदान किया था , वह हमेशी उन की याद में बंधा रहेगा ।