प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ का जन्म वर्ष 1945 में हुआ था। वर्ष 1969 में वे चीन के मशहूर विश्वविद्यालय पेइचिंग विश्वविद्यालय से स्नातक हुए और वर्ष 1982 में उन्होंने चीनी सामाजिक व वैज्ञानिक अकादमी के दक्षिण एशियाई विभाग में एम ए डिग्री प्राप्त की। अब तक वे भारत और चीन की संस्कृति से संबंधित बीसियों पुस्तकें लिख चुके हैं, जिन में बौद्ध धर्म व चीनी संस्कृति, चीन व दक्षिण एशियाई देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का इतिहास, चीन व भारत की संस्कृति की भिन्नता और चीन व भारत की सांस्कृतिक आवाजाही का इतिहास आदि शामिल हैं।
हालांकि इस वर्ष उन की उम्र 63 वर्ष की हो चुकी है, फिर भी वे भारत और चीन के संस्कृति संबंधी अनुसंधान में जुटे हुए हैं। कभी-कभी वे विश्वविद्यालय जाकर लेक्चर भी देते हैं। हाल ही में हमारी संवाददाता ने चीन व भारत के बीच विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान को लेकर प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ के साथ साक्षात्कार किया।
हमारी बातचीत भारत की यात्रा से शुरु हुई। प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने बताया कि उन्होंने भारत की अनेक बार यात्रा की है। उन की प्रथम भारत यात्रा वर्ष 1987 में हुई थी। वे भारत की राजधानी नयी दिल्ली स्थित चीनी दूतावास में काम करते थे। उस समय भारत इतना विकसित नहीं था। लेकिन, पिछले 20 वर्षों में भारत का बड़ा विकास हुआ है। प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने कहा, भारत में वे जहां- जहां गये हैं, सब जगहों में बड़ा परिवर्तन आया है। उन की नजर में भारतीय लोग बुद्धिमान व मेहनती हैं। आज भारत स्थिरता से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि हर बार जब वे भारत जाते हैं, तो भारत में हुई प्रगति देखते हैं। दक्षिणी भारत के बंगलौर जैसे शहरों की कई मशहूर उच्च तकनीकी कंपनियों के दौरे से उन्हें पता लगा कि ये कंपनियां भारत की बेहतरीन निर्यात कंपनियां हैं। ये आज के भारत का गौरव और कल की उसकी आशा प्रतिबिंबित करती हैं। एक जानकारी के अनुसार, भारत मूल्य, कार्य वातावरण और बौद्धिक श्रम आदि क्षेत्रों में विश्व में खासी बढ़त लिये हुए है।बंगलौर, चैन्नई, हैदराबाद, मुंबई और नयी दिल्ली आदि लगभग 20 भारतीय शहरों की कोई 10 हजार सॉफ्टवेयर कंपनियां अमरीकी उच्च तकनीक उत्पादों से आउटसोर्सिंग के जरिए जुड़ी हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में भारत विश्व का सब से बड़ा कार्यालय बन गया है। भारत की सूचना तकनीक क्षेत्र की अधिकतर प्रतिभाएं बंगलौर में एकत्र हैं। इस तरह, अमरीका के उच्च तकनीक व्यवसाय भारत में स्थानांतरित हो रहे हैं। विश्व बैंक के कंप्यूटर उत्पाद व सॉफ्टवेयर निर्यातक देशों के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय सॉफ्टवेयर स्तर, गुणवत्ता और मूल्य जैसे सभी मापदंडों पर विश्व में प्रथम स्थान पर है।
उपभोक्ताओं की कंप्यूटर उत्पादों व सॉफ्टवेयरों की बढ़ती मांग के चलते विश्व बाजार के लगभग 20 प्रतिशत पर भारत का नियंत्रण हो गया है। इस तरह भारत अमरीका के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर निर्माता देश बन गया है।
प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ का अनुसंधान कहता है कि कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर के निर्यात में भारत की सफलता ने जाहिर किया है कि उसके जैसे विकासशील देश विशेष कारगर तरीकों से भूमंडलीकरण में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं। चीन-भारत संबंध पर अनुसंधान करने वाले अनेक चीनी विद्वानों की ही तरह, प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने भी कहा कि चीन व भारत एक दूसरे से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उन के अनुसार भारत ने अनेक क्षेत्रों में भारी उपलब्धियां प्राप्त की हैं। विज्ञान व तकनीक के क्षेत्रों में, खासकर आई टी, उड्डयन, रासायनिक तकनीक और समुद्र संसाधन के इस्तेमाल आदि के क्षेत्रों में भारत विश्व में ऊंचाई पर खड़ा है। इसलिए, इन क्षेत्रों में हम चीनी लोगों को भारत से सीखना चाहिए। चीन में भी अनेक चीजें भारत के सीखने योग्य हैं। उदाहरण के लिए चीन में बुनियादी संरचनाओं का निर्माण, चीन में खेल-जगत में हुआ विकास आदि-आदि।
प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने आगे बताया कि 21वीं शताब्दी में जाने के बाद चीन व भारत दो जल्द ही पुनरुत्थान वाले बड़े देश बन गये हैं। चाहे आबादी में , अर्थतंत्र में या राजनीति में वे दोनों अत्यन्त महत्वपूर्ण बड़े देश हैं। इसलिए, दुनिया में कुछ लोगों ने बताया कि 21वीं शताब्दी चीन व भारत की शताब्दी है। यदि दोनों देश एक दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, तो अवश्य ही इस का विश्व की स्थिरता पर असर पड़ेगा। इसलिए, चीन व भारत दोनों को मैत्रीपूर्ण सहअस्तित्व व सहयोग करना चाहिए। 21वीं शताब्दी में विभिन्न क्षेत्रों में दोनों का आदान-प्रदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
भारत के पास न केवल गणित, दर्शनशास्त्र और धार्मिक मूल्यों का आधार है, बल्कि लोकतंत्र, बहुपक्षीयता व उदारता की भी उस के पास मजबूत विचारधारा है। आज हल्की वस्तुओं और उच्च तकनीक को जोड़ने से भारत में अभूतपूर्व परिवर्तन आये हैं। भारत सरकार ने वर्ष 2010 में देश को सॉफ्टवेयरों के क्षेत्र में विश्व की एक बड़ी शक्ति बनाने की योजना तय की है और सूचना तकनीक के सहारे समग्र अर्थतंत्र का विकास करने का निर्णय भी लिया है।
भारत की ताजा यात्रा के बाद प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ में एक चिंता जगी है। उन्होंने इसे व्यक्त करते हुए कहा, चीन विश्व का कारखाना बनने की कोशिश कर रहा है, जबकि हमारा पड़ोसी भारत विश्व का कार्यालय बन चुका है। इस दृष्टि से चीन भारत के पीछे है। हालांकि चीन विश्व के कारखाने के रूप में बहुत पैसा कमा रहा है, पर इसके लिए उसे भारी कीमत भी देनी पड़ रही है। परम्परागत उत्पादों का निर्यात चीन की कमज़ोर पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा रहा है। चीनी लोगों को जानना चाहिए कि चीन की केवल भौतिक पूंजी भूमंडलीकरण में शरीक हुई है, जबकि भारतीय ज्ञान के माध्यम से इसमें भागीदारी कर रहे हैं। भारत विश्व को सच्चे अर्थ में भारतीयता से जोड़ने का प्रयास कर रहा है। चीन केवल निर्माण उद्योग से चीनी विशिष्टता स्थापित नहीं कर सकता । चीन की भूमंडलीकरण में भागीदारी में भारतीय भागीदारी की तुलना में विशेषता का अभाव है। प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने कहा कि अपनी भारत यात्रा से उन्होंने यही अनुभव किया कि चीन को भारत के अनुभवों से सीखने की जरूरत है। ज्ञान, विचारधारा, और मानव संसाधन का विकास चीन के सूचना तकनीक उद्योग, उच्च शिक्षा संस्थानों और आधुनिकीकरण के लिए बहुत जरूरी है।
प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ के विचार में केवल सरकार स्तरीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान आवश्यक नहीं है। गैरसरकारी आवाजाही भी बहुत जरुरी है। उन के अनुसार अभी तक हम मुख्य तौर पर सरकार के स्तर पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान देखते हैं। मीडिया दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित सांस्कृतिक आदान-प्रदान समझौते के कार्यान्वयन के अनुसार रिपोर्टें देता है।वास्तव में अनेक क्षेत्रों में चीन व भारत के बीच गैरसरकारी आदान-प्रदान भी हो रहा है। मिसाल के लिए , वाणिज्य आदान-प्रदान, खास तौर पर अनेक पर्यटक एक दूसरे के देश की यात्रा करते हैं। दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क भी हो रहा है। दोनों पक्षों के बीच संपर्क करते समय एक दूसरे की समझ बढ़ती है। यह एक सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी है। इस के अलावा, गैरसरकारी संगठनों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी ज्यादा है। गत वर्ष चीन द्वारा आयोजित थांग राजवंश के महाभिक्षु श्वेनचांग के रास्ते पर पुनः चलने की गतिविधि इन में से एक है।आम नागरिकों के बीच इस तरह के आदान-प्रदान से जनता के स्तर पर सच्चे माइने में एक दूसरे को समझने में मदद मिलती है , जिस का महत्वपूर्ण अर्थ है।
प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ की नजर में चीन-भारत मैत्री किसी भी अन्य चीजों के हस्तक्षेप से प्रभावित नहीं की जा सकती है। चीन व भारत के बीच 2000 से ज्यादा वर्षों का पुराना इतिहास है। चीन-भारत मैत्री भविष्य में हमारे समान विकास की एक प्रबल शक्ति व आधार भी है।
चीन-भारत संबंध के भविष्य के प्रति प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ बहुत आशावान हैं। उन्होंने कहा, पिछली शताब्दी के शीत युद्ध की समाप्ति के बाद चीन व भारत के नेताओं ने सहयोग की महत्ता को जाना । यह सहयोग व समान उदार की महत्ता है। दोनों नेताओं ने सीमा समस्या को ताक पर रखकर धीरे-धीरे विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया। इस प्रक्रिया में हमें किस तरह आदान-प्रदान करना है। मेरे विचार में अब चीन व भारत की जनता के बीच समझ परिपक्व नहीं है, इसलिए, हमें इस तरह की आवाजाही का विस्तार करना चाहिए और जनता के बीच आपसी समझ को बढ़ाना चाहिए। हम सब लोगों को दोनों के बीच मैत्री का विकास करने की महत्ता को जानना चाहिए। केवल इसी तरह 21 शताब्दी सच्चे माइने में चीन व भारत की शताब्दी होगी।
आजकल पश्चिमी देशों के अनेक लोग आशा करते हैं कि चीन व भारत के बीच प्रतिस्पर्द्धा अवश्यंभावी है। लेकिन, प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने बताया कि हमारे दो देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा विवेकपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा है और समान उदार की खोज करने की प्रतिस्पर्द्धा है।प्रोफेसर श्वेई ख छ्याओ ने कहा, चीन व भारत के सहयोग का उज्ज्वल भविष्य है। इधर के दो वर्षों में आर्थिक व व्यापारिक संबंधों में बड़ा सुधार आया है, आपसी निर्यात व आयात की रक्म भी निरंतर बढ़ रही है। खासकर वर्ष 2002 के बाद दोनों देशों ने उड़ानें शुरु कीं और समुद्री यातायात शुरु किया। दोनों देशों के संबंधों के स्थिर विकास और सहयोग का उज्ज्वल भविष्य है।यदि चीन व भारत मैत्रीपूर्ण सहयोग करते हैं, तो अवश्य ही 21वीं शताब्दी में सुन्दर भविष्य जीतेंगे।
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