पेइचिंग के चिन थाई कला दीर्घा में चीनी दृष्टि से भारत नामक एक छाया चित्र प्रदर्शनी का आयोजित रही। इन के जरिए चीनी फोटोकारों के कैमरों ने भारत की विशाल व सुन्दर भूमि, रंग बिरंगे संस्कृति तथा तेजी से विकसित हो रहे आधुनिक विज्ञान व तकनीक को प्रतिबिंबित किया औऱ विभिन्न कोणों से आज के भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदि क्षेत्रों की स्थिति दिखाने का प्रयास किया। प्रदर्शनी के एक भागीदार , चीनी कला अनुसंधान अकादमी के प्रोफेसर माओ श्याओ य्वू भारतीय दृश्यों के लिए खुब पसंदीदा हैं ।
श्री माओ श्याओ य्वू का जन्म वर्ष 1964 में मध्य-चीन के ह नान प्रांत के काईफंग शहर में हुआ। विश्विद्दालय में पढ़ने के दौरान उन की फोटो खींचने में रुचि जगी। जंगचाओ विश्विद्दालय के बाद उन्होंने चीनी कला अकादमी में अध्ययन किया, और फिर पेइचिंग की प्रसारण अकादमी के विदेशी भाषा विभाग में भी अंतरराष्ठ्रीय समाचार प्रसारण का प्रशिक्षण लिया। इस से भी फोटो ग्राफी के प्रति उन की विशेष दिलचस्पी का पता चलता है।
खैर अपनी ताजा प्रदर्शनी के आयोजन के लक्ष्य के बारे में श्री माओ ने कहा, अतीत में चीनी लोगों ने महाभिक्षु श्वेन चांग की पश्चिम की तीर्थ यात्रा के किस्मों से भारत की जानकारी प्राप्त की। यों चीनियों को भारतीय फिल्मों से भी भारत के नृत्य गान की झलक देखने को मिली। पर ऐसी जानकारी बहुत सीमित है। चीन औऱ भारत दो बड़े विकासशील देश हैं और दोनों के बीच आदान-प्रदान को मजबूत करना बहुत आवश्यक है। चीनी व भारतीय जनता की आपसी समझ बढाने और द्विपक्षीय आर्थिक व सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मजबूत करने के उद्देश्य से मैंने अपने एक सहयोगी के साथ भारत की यात्रा की। वहां की विशाल सुन्दर भूमि, रंग बिरंगी संस्कृति, और आधुनिक विज्ञान व तकनीक आदि ने आज उसे जो नयी छवि दी है। वह सब हमारे कैमरे में आ गया।
श्री माओ दो बार भारत गए । वर्ष 1996 से 1997 के बीच , उन्होंने चीन भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान परियोजना के तहत एक भारतविद की हैसियत से भारत के पूणे विश्विद्दालय में भारतीय कला का गहन अनुसंधान किया। इस दौरान, उन्होंने भारत के अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेष देखे और उन की तस्वीरें उतारीं। स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने भारत के बारे में किताबें भी लिखीं। उन की "भारतीय मूर्तिशिल्प", "भारतीय भित्ति चित्र", "भारतीय कला "और "भारतीय वास्तु कला "जैसी किताबें प्रकाशित भी हो चुकी। वर्ष 2002 के जनवरी माह में वे भारत सरकार के निमंत्रण पर फिर एक बार भारत की यात्रा पर निमंत्रित थे। इस बार एक फोटोग्राफर की हैसियत से उन्होंने दिल्ली, जयपुर, बंगलौर, आगरा, हैदराबाद और मुम्बेई आदि शहरों का दौरा किया। और एक चीनी की दृष्टि से आज के भारत को अपने कैमरे में कैद किया।
श्री माओ की नजर में भारत एक गहन संस्कृति संपन्न देश है। हालांकि उस के विकास में इस -उस तरह की समस्याएं जरुर हैं , फिर भी अपनी दो भारत यात्राओं में उन्हें दिखा कि पिछले केवल छ सात वर्षों में वहां भारी परिवर्तन हुए हैं। श्री माओ ने बताया, चीन व भारत की संस्कृति में समानताएं भी हैं और असमानताएं भी। हमारी जड़ समान है। चीनी संस्कृति के तीन प्रमुख आधारभूत स्तंभों में से एक बौद्ध संस्कृति भारत से यहां आई। बौद्ध धर्म हमारे जीवन में मिला हुआ है। भारत का अनुसंधान करने के लिए मशहूर चीनी विद्वान 季羡林 का कहना है कि यदि आप को पूर्वी हान राजवंश के बाद के चीन की संस्कृति जाननी हो, तो पहले भारत की संस्कृति को जानें । श्री जी श्येन लीन का कथन इस बात का भी द्दोतक है कि भारत एक ऐसा देश है, जिस का धर्म में अदूर का विश्वास है। कह सकते हैं कि धर्म भारतीय जनता के जीवन में घुला हुआ है।
इधर के 20 वर्षों में हालांकि चीन ने आर्थिक क्षेत्र में भारी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, औऱ भारत में चीनी कंपनियों के उत्पादन भी नजर आ रहे है, पर चीनी सांस्कृतिक संपत्ति के अच्छे रख रखाव में हम असमर्थ रहे है। श्री माओ ने यह चिंता इस तरह व्यक्त की। पिछले साल, चीन के एक मशहूर विद्वान ने भारत की यात्रा की, स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने अपने लेखों में जो विचार प्रकट किए, उन में भारत की असली स्थिति को टेढ़ा मेढ़ा करके पेश किया गया था । उन लेखों ने चीनी लोगों पर बुरा प्रभाव डाला। उन का विचार है कि भारत गरीब है औऱ भारत सरकार का प्रशासनिक प्रबंध भी ढीला है। श्री माओ के विचार में भारत का प्रशासनिक प्रबंध देखने में ढीला है। पर वास्त्व में उस के पास उच्च गुणवत्ता वाली सरकार है। भारत सरकार के अधिकांश अधिकारी ऐसे युवा हैं, जिन्हें ऊंची डिग्री प्राप्त हैं । चीनी लोगों को इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए।
इस के अलावा, भारत में कुछ जगहें दिखती टूटी फूटी हैं, पर यदि ऐतिहासिक संरक्षण की दृष्टि से देखें , तो पता चलेगा कि भारत ने अपने ऐतिहासिक अवशेषों का बहुत अच्छी तरह संरक्षण किया है। परिवर्तन चीनी लोगों के लिए सामान्य बात बन गयी है, परन्तु परिवर्तन न होना शायद औऱ अनोखी बात हो। श्री माओ ने बताया भारत की प्राचीन सभ्यता एवं श्रेष्ठ संस्कृति व संपत्ति को देखकर मुझे उस के प्रगाढ़ सांस्कृतिक माहौल का अनुभव हुआ । और भारत के आधुनिक विज्ञान व तकनीक के विकास को देखकर एक प्राचीन देश में जीवंतता का एहसास हुआ। भारत में अनेक जातियां व भाषाएं हैं और वह चीन की ही तरह विशाल भी है। भारत का जलवायु बहुत शुद्ध है। उस का प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षण बहुत अच्छा है। भारत की रहस्यमयता ने श्री माओ को उसे तस्वीरों में उतारने की प्रेरणा दी ।
उन की प्रदर्शनी में प्रदर्शित अधिकांश तस्वीरों ने भारत के सामाजिक सौन्दर्य को प्रतिबिंबित किया । अपने सब से प्रिये छायाचित्रों की चर्चा में श्री माओ ने कहा , गंगा पर सूर्योदय और इंटिया गैट नामक दो तस्वीरे मुझे सब से ज्यादा पसंद है। पहले हम ने प्राचीन भारत की संस्कृति को जानने की कोशिश की, अब हमें आधुनिक भारत की जानकारी प्राप्त करने की भी कोशिश करनी चाहिए।
भारत में पर्यटन की चर्चा में श्री माओ ने बताया, भारत के एक छोटे से गांव खजुराहौल ने मुझ पर बड़ी गहरी छाप छोड़ी । यह भारतीय राज्य मध्य प्रदेश में स्थित है, इस में हिन्दू धर्म के 40 से ज्यादा मंदिर हैं, और अनेक तरह की धार्मिक मूर्तियां हैं। यह एक बहुत अच्छा पर्यटन का स्थल है। प्राकृतिक सौन्दर्य के अलावा, इस के पर्यटन साधन भी परिपक्व हैं। इस गांव में बहुत अच्छे पारिवारिक होटल हैं। इतना ही नहीं, यहां हवाई अड्डा भी है, जिस पर बोईन 737 यात्री विमान उतर सकता है। श्री माओ के चीनी पर्यटकों के लिए दो सुझाव हैं। एक उन्हें खजुराहौल की यात्रा जरुर करनी चाहिए। और दो, वहां की समुद्री उपजों के झींगा मछली और केकड़े का स्वाद भी लेना चाही। श्री माओ का मानना है कि चीन व भारत के बीच पर्यटन संबंधी ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने से भारत की यात्रा करने वाले चीनी पर्यटकों की संस्था करेगी।
श्री माओ दो बार भारत हो आए हैं, तो असे भी चेन्नेई समेत भारत की दर्शनीय जगहें छूट गई। उन का विचार भविष्य में भारत के कुछ विशेष विष्यों पर फोटो खींचने का है। मिसाल के लिए वे "पहिये पर राज महल" नामक रेल गाड़ी को एक विष्य मानने हैं। इस से चीनी पर्यटकों को भारत की विलास यात्रा की प्रेरणा मिलेगी । कामना है कि भविष्य में श्री माओ और अच्छे फोटो खींचेंगे तथा चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उन का योगदान जारी रहेगा।
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