सम्राट श्वेनचुङ के शासनकाल के उत्तरार्ध के कवि तू फू (712-770) ने अपने जीवनकाल में थाङ राजवंश को समृद्धि और वैभव से ह्रास और पराभन में संक्रमण करते हुए देखा था। अतः उनकी कविता में उस काल के सामाजिक अन्तरविरोधों और जनसाधारण के दुखों की अभिव्यक्ति हुई है।
वे काव्य में यथार्थवादी चित्रण प्रतिभा के धनी थे तथा यथार्थवादी कविता के विकास पर उन का गहरा असर पड़ा था। चीनी साहित्य के इतिहास में वे उतने ही प्रसिद्ध हैं जितने कि लि पाए।
पाए च्वीई (772-846) चीन के साहित्य-क्षितिज पर उस काल में उदित हुए जबकि थाङ राजवंश का अपकर्ष हो चुका था। उनकी कविताओं पर अपने पूर्वकालीन कवि तू फू का गहरा प्रभाव दिखाई देता है तथा वे संत्रस्त जनता के प्रति गहरी संवेदना व सहानुभूति से परिपूर्ण हैं।
उन्होंने अपनी अनेक कविताओं में चीनी समाज के कालिमामय पक्ष को भी चित्रित किया है। सरल-सुबोध भाषा में लिखित किन्तु गहन भाव लिए उनकी कविताएं हमेशा से लोकप्रिय रही हैं।
थाङ राजवंश अपने गद्य साहित्य के लिए भी उतना ही मशहर है। वेइ-चिन काल से लेकर प्रारम्भिक थाङ काल तक पद्यमय गद्य सर्वाधिक लोकप्रिय रहा, जिस में वाक्यांशों और शब्दों के समानान्तर प्रयोग के साथ-साथ स्वरारोह और तुकान्तता में उचित समन्वय भी अपेक्षित होता था। यह देखने में तो परिष्कुत व सुन्दर था, किन्तु विषयवस्तु की दृष्टि से सामान्यतया निस्सार ।
अतः अधिकांश विद्वान और साहित्यिक इस से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने चओ, छिन व हान राजवंश काल में प्रचलित गद्यलेखन की पुरानी शैली को पुनः अपनाने पर जोर दिया। थाङ राजवंश के मध्यकाल के बाद, गद्यरचना की परंपरागत शैली को पुनर्स्थापित करने का आन्दोलन तेजी से विकसित हुआ।
इस आन्दोलन में हान य्वी (768-824) औक ल्यू चुङय्वान का योगदान सबसे अधिक था तथा उन के ही समर्थन से प्राचीन शैली धीरे-धीरे गद्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा बन गई।
थाङ काल में इतिहास-लेखन ने प्रगति की । सम्राट थाएचुङ के आदेश पर एक इतिहास संस्थान कायम किया गया तथा उसे थाङ राजवंश और उसके पूर्ववर्ती राजवंशों के इतिहास लेखन व संकलन का कार्य सौंपा गया।
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