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(GMT+08:00) 2007-04-12 12:48:23    
झूलते मंदिर के ऊपर बाहर निकली हुई विशाल चट्टान गिरने का आभास देती है

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प्रिय दोस्तो , आप को याद हुआ होगा कि चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम अब तक शानशी प्रांत की राजधानी थाइय्वान और इस प्रांत के दूसरे क्षेत्रों के पुराने चारदीवारी वाले खानदानी घरों में हो आये हैं। इन जगहों की विशेष रीतियों और वास्तुशैलियों की भी आप को याद होगी। चलिए आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में चलें शानशी के धार्मिक तीर्थ स्थल झूलते मंदिर का मज़ा लेने।

झूलते मंदिर का निर्माण ईस्वीं 491 में हुआ था यानी आज से कोई एक हजार पांच सौ वर्ष पहले । यह झूलता मंदिर शानशी प्रांत की हुन य्वान कांऊटी की एक गहरी पहाड़ी घाटी में अवस्थित है । इस पहाड़ी घाटी के दोनों ओर सौ मीटर से ऊंचे पर्वत खड़े हुए नजर आते हैं , जबकि यह झूलता मंदिर एक ऊंचे पर्वत के धंसे हुए भाग पर निर्मित है , जमीन से लगभग 50 मीटर की ऊंचाई पर खड़ा हुआ यह झूलता मंदिर देखने में एक सीधी चट्टान से चिपका जान पड़ता है । क्योंकि यह झूलता मंदिर ऊंचे पर्वत के धंसे हुए भाग पर खड़ा हुआ है , इसलिये पिछले हजार वर्षों में वह हवा व वर्षा के थपेड़े सहते हुए भी अच्छी तरह सुरक्षित है।

इस झूलते मंदिर का मुख्य भवन लकड़ी से बना हुआ है । उस का कुल क्षेत्रफल 152.5 वर्गमीटर है , जो आधे बास्केटबाल मैदान से कुछ छोटा है । इस मुख्य भवन में कुल 40 छोटे-बड़े कमरे भी हैं । दूर से देखा जाये ,तो सीढ़ीनुमा मुख्य भवन और मंडप लकड़ी के दसियों खंभों पर टिका हुए जान पड़ता है । जब कि इस झूलते मंदिर के ऊपर बाहर निकली हुई विशाल चट्टान गिरने का आभास देती है ।

देशी-विदेशी पर्यटक यह अद्भुत दृश्य देखकर दांतों तले उंगली दबाये बिना नहीं रह सकते । कमाल की बात यह भी है कि विभिन्न मंडपों के बीच लकड़ियों से संकरे रास्ते भी निर्मित हुए हैं । प्रत्यक्ष रूप से सीधी खड़ी चट्टान पर निर्मित ये रास्ते इतने संकरे हैं कि एक बार में सिर्फ एक आदमी उसे पार कर सकता है । जब हरेक पर्यटक इस संकरे रास्ते पर पैर रखता हुआ आगे बढ़ता है, तो वह स्वभावतः बड़ी सावधानी से एक- एक पांव उठाता है। क्योंकि यह 1500 वर्ष पुराना छोटा सा मंदिर एक खड़ी सीधी चट्टान पर झूलता नजर आता है और देखने में गिरता सा जान पड़ता है। आम पर्यटकों को डर रहता है कि कहीं भारी कदम रखने से यह झूलता मंदिर चट्टान से अलग होकर न गिर जाये । लिन य्यू नाम की एक पर्यटक ने अभी-अभी इस संकरे रास्ते को पार किया है । उन्हों ने अपना अनुभव बताते हुए हम से कहा कि बहुत ऊंचा है , मैंने अपने आप को आकाश में झूलते हुए महसूस किया। इस छोटे से मंदिर के मुख्य भवन तक पहुंचने के लिए जोखिम भरे संकरे रास्ते पर चलते समय मैंने हर एक कदम हिम्मत बटोर कर बड़ी सावधानी से रखा। तब भी मुझे यही डर सता रहा था कि मैं गिरकर इस झूलते मंदिर के साथ झूलता आदमी न बन जाऊं।

हुन य्वान कांऊटी में यह कहावत प्रचलित है कि अर्ध आकाश पर झूलता मंदिर घोड़े की पूंछ के तीन बालों पर टिका हुआ है । घोड़े की पूंछ के तीन बालों का अर्थ इस झूलते मंदिर के नीचे दिखाई देने वाले तीन पतले पतले लकड़ी के खंभे ही हैं । देखने में सीधी चट्टानों पर खड़े ये तीन पतले खंभे इस झूलते मंदिर का आधार जान पड़ते हैं ।

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