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(GMT+08:00) 2007-04-12 18:43:08    
लोगों के दिल में हमेशा जीवित ह्वेन्सान

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चीन भारत मैत्री वर्ष है की खुशी में चीन और भारत दोनों पक्षों ने तरह तरह की गतिविधियां कीं और दोनों देशों के बीच राजनीतिक , आर्थिक व सांस्कृतिक आवाजाही व आदान प्रदान को और अधिक विकसित कर दिया । चीन में आयोजित तीसरी अन्तरराष्ट्रीय ह्वेन्सान संबंधी अकादमिक अनुसंधान गोष्ठी मैत्री वर्ष की विभिन्न गतिविधियों का एक भाग है । तीसरी अन्तरराष्ट्रीय ह्वेन्सान संबंधी अकादमिक अनुसंधान गोष्ठी गत सितम्बर माह में दक्षिण पश्चिम चीन के सछ्वान प्रांत की राजधानी छङतू शहर में आयोजित हुई , जिस में देश विदेश के मशहूर बौद्ध आचार्यों तथा विद्वानों ने महान प्राचीन बौद्ध धर्माचार्य ह्वेन्सान द्वारा बौद्ध धर्म , प्राचीन यात्रा तथा चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के क्षेत्र में किए गए असाधारण योगदान पर विचारों का विनिमय किया और यह माना कि उन्हों ने चीन और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण आवादाही के लिए अहम भूमिका अदा की है । आज के युग में ह्नेन्सान की भावना को और अधिक विकसित करते हुए चीन और पड़ोसी देशों के संबंधों को बेहतर करने की नयी कोशिश करना निहायत जरूरी है।

चीनी वैदेशिक मैत्री जन संघ , चीनी ह्वेन्सान अनुसंधान केन्द्र तथा सछ्वान प्रांतीय बौद्ध संघ के संयुक्त तत्वावधान में तीसरी अन्तरराष्ट्रीय ह्नेन्सान अकादमिक अनुसंधान गोष्ठी 22 व 23 सितम्बर को सछ्वान प्रांत की राजधानी छङतू शहर में आयोजित हुई । भारत , नेपाल , अमरीका , थाइलैंड , दक्षिण कोरिया , जापान , बेलजियम तथा वियतनाम आदि देशों तथा चीन के भीतरी इलाके व थाईवान क्षेत्र के धार्मिक जगतों के प्रसिद्ध व्यक्तियों व विद्वानों समेत कुल 200 से ज्यादा लोगों ने गोष्ठी में भाग लिया और बौद्ध धर्म , यात्रा व राजनय आदि क्षेत्रों में ह्वेन्सान के असाधारण योगदान पर विचार विमर्श किया। चीनी वैदेशिक मैत्री जन संघ के एशिया अफ्रीका विभाग के प्रधान श्री चु छांग ब्येन ने गोष्ठी पर मैत्री संघ के प्रधान श्री छन होसु का बधाई संदेश पढ़ कर सुनायाः प्राचीन चीनी धर्माचार्य ह्वेन्सान चीन के बौध धर्म के विकास के इतिहास में एक महान व्यक्ति थे , उन्हों ने चीन व पश्चिम के सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए उत्तम योगदान किए । वे हमेशा चीन, एशिया और पूरे विश्व की जनता की याद में रह रहेंगे ।

सन् 629 में चीन के थांग राजवंश काल में धर्माचार्य ह्वेन्सान चीन से आज के पाकिस्तान व अफगानिस्तान से हो कर तीन साल के बाद भारत पहुंचे । भारत में उन्हों ने तत्कालीन बौध धर्म के केन्द्र नालंदा मठ में लगन से बौद्ध सूत्रों का गहराई में अध्ययन किया और 50 बौद्ध शास्त्रों में पारंगत दस महान पंडितों में से एक के रूप में सम्मानित हुए । ह्वेन्सान ने भारत में 17 सालों तक अध्ययन व यात्रा किए और भारत से चीन में 657 बौद्ध ग्रंथावलियां वापस लाए । उन्हों ने बौद्ध शास्त्र , संस्कृत , इतिहास , भूगोल , रीति रिवाज तथा यातायात के बारे में जो लेखन के काम किए थे , वे विश्व की सांस्कृतिक विरासत का एक अतूल्य खजाना है । उन्हों ने 1335 बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद किया और थांग राजवंश के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों की वृतांत लिखी एवं चीन में बौद्ध धर्म का विकास किया , जिस से बौद्ध धर्म चीन से आज के उत्तरी कोरिया , दक्षिण कोरिया व जापान में भी पहुंचाया गया । अपनी यात्रा के दौरान उन्हों ने चीन की संस्कृति को भारत से अवगत कराया और चीन के ताओ धर्म के मुख्य शास्त्र का भारतीय भाषा संस्कृत में अनुवाद किया , इस से उन्हों ने चीन और भारत के सांस्कृतिक आदान प्रदान में असाधारण योगदान किया ।

चीनी ह्वेन्सान अध्ययन केन्द्र के प्रधान श्री ह्वांग शिनछ्वान ने कहा कि ह्वेन्सान विश्वविख्यात बौद्ध आचार्य , दार्शनिक , महान यात्री , अनुवादक तथा सांस्कृतिक आदान प्रदान के अग्रदूत थे । उन की कहानी चीन में ही नहीं , पूर्वी एशिया और विश्व के अन्य स्थानों में भी अत्यन्त मशहूर है । उन के योगदान और मूल्य को युग के विकास के साथ साथ उत्तरोत्तर गहराई से समझे गए और उन का तहेदिल से सम्मान किया जा रहा है । श्री ह्वांग ने कहाः "ह्वेन्सान ने गहराई से बौद्ध सिद्धांतों का अध्ययन किया और भारत के बौद्ध शास्त्रों व अन्य ज्ञानों को चीन को परिचित किया और चीन के सांस्कृतिक ज्ञानों को भारतीय जनता तक पहुंचाया । उन की रचना थांग राजवंश के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों की वृतांत दक्षिण एशिया व मध्य एशिया के विभिन्न एतिहासिक कालों की स्थितियों पर अध्ययन के लिए एक दुर्लभ ग्रंथावली है और भारत व मध्य एशिया के बहुत से अहम ऐतिहासिक स्थलों की पुरातत्वीय खोज के लिए मजबूत आधार भी है ।" 

भारत का नालंदा कभी भारत के बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा और एक बड़ा नामी नगर था । ह्वेन्सान चीन से विशेष तौर पर नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आए । उन्हों ने अपनी रचना थांग राजवंश के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों की वृत्तांत में उस काल के नालंदा की विकसित स्थिति का वर्णन किया । नालंदा 12 वीं शताब्दी में खंडहर बन गया । बाद में ह्वेन्सान की इस रचना के आधार पर ही नालंदा खंडहर का पता लगाया गया है ।

ह्नेन्सान ने बौद्ध शास्त्रों का चीनी भाषा में और चीन के प्राचीन ग्रंथों का संस्कृत में अनुवाद किया था , जिस ने दोनों देशों की जनता में परस्पर समझ बढ़ायी थी । उन के इस महान योगदान की चर्चा में सछ्वान प्रांत के बौध संघ के उपाध्याक्ष धर्माचार्य चुंगश्येन ने कहाः "भारत और चीन दोनों विश्व के प्राचीन सभ्यता व परम्परा युक्त देश हैं , दोनों मैत्रीपूर्ण पड़ोसी देश भी हैं । दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही और आदान प्रदान सदियों से चलती आ रही है । धर्माचार्य ह्नेन्सान चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान के लम्बे पुराने इतिहास में एक महान व्यक्ति और अग्रदूत हैं ।"

चीन स्थित भारतीय दूतावास के मिनिस्टर स्तरीय कौंसुलर श्री रावत ने मौजूदा गोष्ठी की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि ह्नेन्सान का चीन भारत सांस्कृतिक आदान प्रदान में अतूल्य स्थान रहा है । आज हम इसलिए उन की याद करते हैं, क्योंकि हमें सच्चाई की खोज में उन की अद्मय भावना विकसित कर चीन भारत मैत्री को और अधिक बढाने की कोशिश करना चाहिए । उन्हों ने कहाः ह्वेन्सान की पश्चिम यात्रा एक सचे मायने की सांस्कृतिक यात्रा थी , रास्ते में वे अनेकों देशों व क्षेत्रों से गुजरे थे । वे नेपाल भी पहुंचे थे और उन की रचना में नेपाल के इतिहास व संस्कृति का उल्लेख किया गया । चीन स्थित नेपाली कौंसुलर श्री सरेस्ता ने कहा कि ह्नेन्सान की रचना थांग राजवंश के पश्चिम में स्थित क्षेत्रों की वृत्तांत में नेपाल का विस्तार से वर्णन किया गया है और तत्कालीन नेपाल के रीति रिवाजों व प्रथाओं का उल्लेख किया गया ,ये सभी मूल्यवान सांस्कृतिक रिकार्ड है , जो तत्कानील नेपाल के सामाजित दशा पर अध्ययन के लिए मददगार है । इस से यह भी जाहिर हुआ है कि चीन और नेपाल के बीच सदियों से ज्यादा पुराना आवाजाही बनी रही है । हम हमेशा उन के आभारी रहेंगे । श्री सरेस्ता ने कहाः "आज हम महान धर्माचार्य ह्वेन्सान की समृत्ति में अकादमिक गोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं और बौद्ध धर्म , इतिहास व भूगोल के बारे में उन के अध्ययन को सुव्यवस्थित कर रहे हैं , जिस से विश्व संस्कृति के लिए उन के योगदान की पुष्टि की जाती है । यह नेपालियों के लिए भी एक बड़ा महत्व का काम है।" 

चाहे भारत हो , या नेपाल और पाकिस्तान हो , ह्नेन्सान की यात्रा ने चीन को दक्षिण एशिया के इन सभी देशों की सभ्यता के साथ जोड़ दिया । आदान प्रदान में सांस्कृतिक आवाजाही अग्रिम है । युगयुगांतर व सामाजिक प्रगति से कदम मिलाते हुए ह्वेन्सान की अध्ययनशीलता व अद्मय भावान से सीखते हुए सांस्कृतिक आदान प्रदान के जरिए आर्थिक व राजनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए , इसी प्रकार के काम से सचे मायने में अपार स्नेह , सुलह और मैल मिलाप का लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा ।