वर्ष 907-960 के इसी दौरान दक्षिण चीन में क्रमशः ऊ, दक्षिणी थाङ, ऊय्वे, मिन, छू, नानफिङ, पर्वकालीन शू, उत्तरकालीन शू और दक्षिणी हान राज्यों का उदय हुआ।
इतिहास में इन नौ राज्यों तथा उत्तरी हान राज्य (वर्तमान शानशी के मध्यवर्ती भाग में स्थित) का उल्लेख दस राज्यों के रूप में किया जाता है।
पांच राजवंशों और दस राज्यों के काल में लगातार युद्ध होते रहने के कारण जनता तबाह हो गई तथा उसकी कष्टों की कोई सीमा न रही।
आखिरकार सुङ राजवंश की स्थापना से इन अलग-अलग राज्यों का अस्तित्व समाप्त हुआ और चीन के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी भाग का एकीकरण पूर्ण हो गया।
स्वेइ-थाङ काल में बौद्धधर्म ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी। लेकिन थाङ राजवंश के अन्तिम काल में बौद्ध-विरोधी आन्दोलन का उदय हुआ।
बौद्ध-विरोधी नेताओं में हान य्वी और फू ई प्रमुख थे।
इस काल के ऐसे विचारकों में, जिनका झुकाव भौतिकवाद की ओर था, ल्यू चुङय्वान (773-819) और ल्यू य्वीशी (772-842) के नाम उल्लेखनीय हैं। इन दोनों ने प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों को भौतिकवादी दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया।
थाङ काल का साहित्य विकास के एक नए उच्च शिखर पर पहुंच गया था। थाङ काव्य उस काल के चीनी समाज का दर्पण है।
वह विश्व-साहित्य की एक मूल्यवान निधि भी है।
उस काल में लिखि गई कविताओं में से लगभग 50,000 आज भी उपलब्ध हैं। इनकी रचना 2,200 से अधिक कवियों द्वारा की गई थी, जिन में ली पाए, तू फू और पाए च्वीई नामक सुप्रसिद्ध कवित्रय उल्लेखनीय हैं।
ली पाए (701-862) के काव्य में हमें कल्पना की उन्मुक्त उड़ान देखने को मिलती है। उन्होंने अपनी कविताओं में मातृभूमि के अनुपम सौन्दर्य का ओजपूर्ण गुणगान किया है। वे काव्य में स्वच्छंदतावाद के सिद्धहस्त चितेरे थे।
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